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Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by Shivendra on Sat, 09/13/2014 - 10:28
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Ganga
मैं आया नहीं हूं; मुझे गंगा मां ने बुलाया है, नमामि गंगे व नीली क्रांति जैसे शब्द तथा स्व. श्री दीनदयाल उपाध्याय की जन्म तिथि पर जल संरक्षण की नई योजना का शुभारंभ की घोषणा से लेकर पूर्व में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने तक; निःसंदेह प्रतीक महत्वपूर्ण हैं। किंतु जो प्रतीक स्वयं को ही प्रेरित न कर सकें, उनका क्या महत्व? झाड़ू उठाकर सफाई करते हुए किसी एक दिन फोटो खिंचवाने वाले स्वयंसेवी साथियों, जिलाधीशों व नेताओं से मैं कई बार यह कहने को मजबूर हुआ हूं। मजबूर मैं आज फिर हूं।

मुझे याद है कि जगद्गुरू शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती की अगुवाई में गए दल के कहने पर पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया था। हालांकि, तत्कालीन पर्यावरण मंत्री श्री जयराम रमेश की पहल पर उन्होंने गंगोत्री से उत्तरकाशी जिले के 135 किलोमीटर लंबे भगीरथी क्षेत्र को संवेदनशील घोषित किया; तीन पनबिजली परियोजनाएं रद्द की और कुछ फैक्टरियों पर भी कार्रवाई की; किंतु जगद्गुरू और स्वयं पूर्व प्रधानमंत्री राष्ट्रीय नदी के सम्मान की रक्षा के लिए प्रदूषकों, शोषकों और अविरलता में बाधकों के खिलाफ निर्णायक जंग का ऐलान कभी नहीं कर सके।

जयराम रमेश को भी पर्यावरण मंत्री के पद से मनमोहन सिंह जी ने ही हटाया। वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने गंगा की निर्मलता को अपनी पहली प्राथमिकता बताने वाले बयान कई बार दिए हैं। किंतु ऐसा लगता है कि प्रदूषकों, शोषकों और गंगा अविरलता में बाधकों के खिलाफ निर्णायक जंग का ऐलान करने की हिम्मत वह भी नहीं जुटा पा रहे। उंगली अब उनके गंगा संकल्प पर भी उठती दिखाई दे रही है।

उच्च स्तरीय समिति : नई बैठक, बासी बयान
आठ सितंबर, दिन सोमवार! गंगा को लेकर पहली उच्च स्तरीय समिति की बैठक हुई। बैठक से पूर्व इसी दिन एक अखबार में सूत्रों के हवाले से खबर आई कि श्री मोदी ने श्री नितिन गडकरी की गंगा जलमार्ग योजना को नकार दिया है। वे गंगा के व्यावसायिक दोहन के विरुद्ध हैं। उन्होंने कहा है कि अब हम गंगा से कुछ लेंगे नहीं, सिर्फ देंगे ही देंगे। हमने सोचा कि शायद यह सुप्रीम कोर्ट की डांट अथवा प्रधानमंत्री जी की अंतरात्मा से आई किसी आवाज का असर हो।

इस खबर को देश के कई नामी नदी अध्ययनकर्ताओें और कार्यकर्ताओं ने शुभ बताया। किंतु बैठक के बाद भारत सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा जारी विज्ञप्ति ने इस शुभ को नकार दिया।विज्ञप्ति में पूर्व प्रकाशित खबर जैसा निर्णायक कुछ नहीं था। आश्चर्यचकित करता है कि प्रत्येक घटना, दुर्घटना व व्यक्ति को एक लाभदायक अवसर में तब्दील कर देने की कला में माहिर श्री मोदी ने गंगा पर पहली उच्च स्तरीय बैठक को कैसे निरर्थक जाने दिया!

नमामि गंगा : नई बोतल में पेश पुराना पेय
गौरतलब है कि विज्ञप्ति में श्री मोदी द्वारा गंगा को पहली प्राथमिकता बताने, जनभागीदारी का आह्वान और गंगा हेतु दुनिया के दूसरे देशों से मदद, तकनीक व ध्यान को आकर्षित करने संबंधी वही पुराना घिसा-पिटा बयान दर्ज था। श्री मोदी ने पीपीपी के जरिए ही देश के 500 शहरों के ठोस कचरा व गंदे जल के प्रबंधन की बात भी कही। कहा कि इस कार्य में गंगा किनारे के शहरों को प्राथमिकता पर रखेंगे।

याद कीजिए कि लगभग डेढ़ साल पहले द्वारा गंगा प्रबंधन योजना दस्तावेज निर्माण की समन्वयक आईआईटी, कानपुर के नई दिल्ली सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि श्री मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने भी यही कहा था। जलापूर्ति के क्षेत्र में पीपीपी को लेकर खुलते घोटाले और विरोध के बाद उन्होंने भी कचरा से पैसा कमाने की परियोजनाओं में पीपीपी लाने की बात कही थी। गंगा स्वच्छता के लिए जनता-जनार्दन को जोड़ने के मोदी आह्वान में क्या नया है?

गंगा कार्य योजना का शुभारंभ करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने भी यही आह्वान किया था। जनता कैसे विश्वास करे कि यह सरकार गंगा निर्मलता के लिए कुछ नया और नायाब करने वाली है?

विरोधाभासी कदम यह है कि मोदी सरकार गंगा के लिए जनांदोलन का आह्वान तो कर रही है, किंतु पनबिजली परियोजनाओं और गंगा जलमार्ग परियोजना के विरोध में उठे जनांदोलनकारियों से चर्चा करने से भी बच रही है। श्री मनमोहन सिंह भी राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की बैठक बुलाने से कतराते रहे; श्री मोदी भी कतरा रहे हैं।

गंगा पर कार्यक्रम निर्माण से पहले गंगा और शेष नदियों की अविरलता-निर्मलता से जुड़े विवादित मसलों पर एक अलग निर्णायक नीति व कानूनों के निर्माण की मांग पिछले डेढ़ दशक से उठती रही है।

न अटल सरकार ने यह हौसला दिखाया और न मनमोहन सरकार ने। प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का पालन न करने वाली कंपनियों के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानूनी मदद के आश्वासन के बावजूद उच्च स्तरीय समिति नीति व कानून निर्माण के मसले पर कुछ ऐलान नहीं कर सकी।

100 दिन की घोषणाएं नहीं करती आश्वस्त
बजटीय प्रावधानों के अलावा अब तक संबंधित मंत्रालय ने गंगा की ऑनलाइन निगरानी की घोषणा की। सर्वेक्षण शुरू किया। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पूर्व में चिन्हित 764 औद्योगिक इकाइयों का आंकड़ा सदन में रखा। ये ऐसे इकाइयां हैं, जो प्रतिदिन 50 करोड़ लीटर से अधिक गंदा प्रदूषित जल गंगा में डाल रही हैं। 165 को नोटिस जारी किए। 48 को बंद करने के आदेश जारी किए। राज्यों को मलशोधन संयंत्रों को सुचारु रूप से चलाने के निर्देश दिए।

एसपीएमजी में कर्मचारियों तथा समन्वय की कमी की ओर ध्यान दिलाया। उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने गंगा सफाई परियोजनाओं के आंतरिक ऑडिट की बात कही। लगभग सभी राज्यों ने स्थानीय निकायों के पास धनाभाव का रोना रोया। केंद्र ने भी राज्यों को हरसंभव सहयोग की रटी-रटाई बात कही।

गंगा जलमार्ग, घाट निर्माण व सौंदर्यीकरण, रेणुका बांध निर्माण और गंगा प्रदूषण मुक्ति के नाम पर ऑनलाइन निगरानी जैसे ऐलान जारी किए गए। ऐसे में तो वाकई अगले 200 साल में भी गंगा साफ होने से रही। यदि वाकई गंगा की सेहत सुधारनी है तो जरूरी है कि सरकार नीतिगत निर्णयों को अपनी प्राथमिकता बनाए। वरना देखना झेलम-चिनाब की तरह किसी दिन गंगा भी तट तोड़कर निकल पड़ेगी-खुद अपना इलाज ढूंढ़ने।

इसके अलावा केन्द्र सरकार ने बिहार में कोसी-मेची और बूढ़ी गंडक-नून बाया नदी जोड़ परियोजनाओं को मंजूरी दी। गंगा जलमार्ग परियोजना को लेकर विश्व बैंक का दौरा कराया। किसी डेनिश कंपनी से करार करने की बात सामने आई। नदी सफाई को लेकर जर्मनी, ऑस्ट्रेलियाई अनुभवों से लाभ लेने की बात कही।

गंगा को लेकर कोर्ट के समक्ष 29 पन्नों का हलफनामा पेश किया; फिर भी सरकार 29 बड़े, 23 छोटे और 48 उपनगरों से गुजरने वाली गंगा की सफाई को कोई ठोस-समयबद्ध खाका पेश नहीं कर पाई। लिहाजा, गंगा को अपनी पहली प्राथमिकता बताने वाली सरकार ने देश की सबसे बड़ी अदालत से डांट खाई।

विरोध पर चुप्पी
भूलने की बात यह भी नहीं कि 4200 करोड़ की गंगा जलमार्ग परियोजना के खतरों को लेकर देश के तमाम अखबारों में खूब चर्चा हुई है और विरोध में बैठकें भी। इस बाबत एक 10 सदस्यीय समूह ने तमाम वैज्ञानिक पहलुओं को सामने रखते हुए सरकार को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में मिसीसिपी नदी और फरक्का बैराज के अनुभवों को सामने रखते हुए उसके डिज़ाइन में भी बदलाव की मांग रखी गई है। किंतु सरकार चुप है।

नीतिगत निर्णयों से भागती सरकार
जम्मू-कश्मीर में जल के जलजले का मंजर हमारे सामने है ही। उत्तराखंड में बाढ़ से लगातार तबाही के अनुभव हर साल हमें चेताते ही हैं। पनबिजली परियोजना बांध के कारण डूबने के बाद अपने स्थान से हटाई गई धारी देवी प्रतिमा के प्रति उमाजी की आस्था जगजाहिर है।

विष्णु प्रयाग, लखवार बयासी से लेकर रेणुका बांध परियोजना तक विवाद-ही-विवाद हैं। फिर भी उमाजी सटीक निर्णय लेने की बजाए जाने किस बीच के रास्ते की तलाश कर रही है? मैं नहीं कहते कि पनबिजली परियोजनाओं बंद हों या चलने दी जाएं। किंतु बांधों को लेकर सरकार एक बार नीतिगत निर्णय का हौसला तो दिखाए।

परियोजनाओं की पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया को त्वरित बनाने के नाम पर वन एवं पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर ने मंजूरी प्रकिया को ध्वस्त करते हुए जिस तरह कोल परियोजनाओं की मंजूरी में जनसुनवाइयों की बाध्यता समाप्त करने का दुस्साहस किया है;

गुजरात मुख्यमंत्री रहते हुए श्री मोदी ने जिस तरह कई बार सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की मांग की; यदि इसी तरह नीतिगत तौर पर एक बार यह तय कर लेने का भी दुस्साहस दिखा दें कि उनकी सरकार बड़े और ऊंचे बांधों की पक्षधर है; तो यह गफलत तो न रहे कि अविरल-निर्मल गंगा, सरकार की प्राथमिकता है।

अनुभवों से कब सबक लेगी सरकार?
यहां मौलिक प्रश्न यह है कि क्या गंगा को अपनी प्राथमिकता बताने वाली नई सरकार और पर्यावरण एवं वन से निकलकर जलमंत्रालय में शामिल हुए गंगा पुनरोद्धार के नियोजकों ने गंगा कार्ययोजना के अनुभवों से कुछ सीखने की कोशिश की है? क्या यह सरकार यह समझ पाई है कि पिछले कुछ सालों में विश्व बैंक समेत भिन्न कारपोरेट सहायकों द्वारा जलापूर्ति और नदी संबंधी जिन प्रस्तावों को आगे बढ़ाया गया है, उनमें भारत के पानी और नदी माई की सेहत से ज्यादा कंपनियों की कमाई का लालच छिपा है?

गंगा माई की सेहत सुधारने के काम में डॉक्टर यदि साधारण फीस कमा ले, तो समझ में आता है। यहां तो लक्ष्य सिर्फ कमाई-ही-कमाई नजर आ रहा है। अब यदि मोदी सरकार भी गंगा से कमाई को ही आगे रखना चाहती है, तो गंगा को माई मानने वाले श्रद्धालुजन भारत सरकार के कंपनी कमाई कार्यक्रमों से क्यों जुड़ें?

ऐसे तो साफ हो चुकी गंगा
पिछले 100 दिन के मोदी कार्यकाल से स्पष्ट है कि सरकार ही नहीं, स्वयं प्रधानमंत्री महोदय भी गंगा कार्य योजना की लापरवाही और गलतियों से कुछ सीखने को तैयार नहीं है। गंगा जलमार्ग, घाट निर्माण व सौंदर्यीकरण, रेणुका बांध निर्माण और गंगा प्रदूषण मुक्ति के नाम पर ऑनलाइन निगरानी जैसे ऐलान तथा जारी किए गए औपचारिक नोटिस गंगा की कोई मदद नहीं कर सकते। ऐसे तो वाकई अगले 200 साल में भी गंगा साफ होने से रही।

यदि वाकई गंगा की सेहत सुधारनी है, तो जरूरी है कि सरकार नीतिगत निर्णयों को अपनी प्राथमिकता बनाए; वरना देखना, झेलम-चिनाब की तरह किसी दिन गंगा भी तट तोड़कर निकल पड़ेगी खुद अपना इलाज ढूंढने।

Submitted by Shivendra on Tue, 09/09/2014 - 09:58
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यथावत, सितंबर 2014
pond
'तालाब बनाओ लाभ पाओ' का नारा महोबा में असर दिखाने लगा है। वर्षा जल संचयन और पानी के परंपरागत स्रोतों की तरफ यहां के लोगों का रुझान बढ़ा है। उनमें एक उम्मीद और विश्वास का भाव जगा है। वे यह मानने लगे हैं कि बुंदेलखंड का यह क्षेत्र उनके सार्थक पहल से पानी की कमी पूरी कर सकता है। चौपाल-गोष्ठियों में इस
Submitted by Shivendra on Mon, 09/08/2014 - 11:55
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जल, जंगल और जमीन - उलट-पुलट पर्यावरण (2013) पुस्तक से साभार

गर्मी की तीव्रता से मनुष्यों और जानवरों का जीना मुहाल हो गया है। कुएं, तालाब और नदियों के जल स्तर में कमी आ रही है। ये संकट मनुष्य ने खुद पैदा किए हैं। बदल चुकी जीवन शैली की वजह से कृत्रिम तौर पर संकट पैदा हुआ है। दिल्ली में कभी 350 से ज्यादा तालाब हुआ करते थे लेकिन आज शायद तीन भी मुश्किल से मिलेंगे।

सच तो यह है कि यह संकट मौसम चक्र में आ रहे बदलावों के नतीजे हैं। गर्मी का मौसम चार महीने का होता था अब आठ महीने या नौ महीने गर्मी पड़ने लगी है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ये बदलाव कृत्रिम तौर पर पैदा किए गए संकटों से हुए हैं। अन्यथा मौसम चक्र से चीजें चलती रहती तो संभव है कि कभी कोई बड़ा संकट नहीं पैदा होता।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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गंगा को प्रतीक नहीं, परिणाम का इंतजार

Submitted by Shivendra on Sat, 09/13/2014 - 10:28
Author
अरुण तिवारी
Ganga
.मैं आया नहीं हूं; मुझे गंगा मां ने बुलाया है, नमामि गंगे व नीली क्रांति जैसे शब्द तथा स्व. श्री दीनदयाल उपाध्याय की जन्म तिथि पर जल संरक्षण की नई योजना का शुभारंभ की घोषणा से लेकर पूर्व में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने तक; निःसंदेह प्रतीक महत्वपूर्ण हैं। किंतु जो प्रतीक स्वयं को ही प्रेरित न कर सकें, उनका क्या महत्व? झाड़ू उठाकर सफाई करते हुए किसी एक दिन फोटो खिंचवाने वाले स्वयंसेवी साथियों, जिलाधीशों व नेताओं से मैं कई बार यह कहने को मजबूर हुआ हूं। मजबूर मैं आज फिर हूं।

मुझे याद है कि जगद्गुरू शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती की अगुवाई में गए दल के कहने पर पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया था। हालांकि, तत्कालीन पर्यावरण मंत्री श्री जयराम रमेश की पहल पर उन्होंने गंगोत्री से उत्तरकाशी जिले के 135 किलोमीटर लंबे भगीरथी क्षेत्र को संवेदनशील घोषित किया; तीन पनबिजली परियोजनाएं रद्द की और कुछ फैक्टरियों पर भी कार्रवाई की; किंतु जगद्गुरू और स्वयं पूर्व प्रधानमंत्री राष्ट्रीय नदी के सम्मान की रक्षा के लिए प्रदूषकों, शोषकों और अविरलता में बाधकों के खिलाफ निर्णायक जंग का ऐलान कभी नहीं कर सके।

जयराम रमेश को भी पर्यावरण मंत्री के पद से मनमोहन सिंह जी ने ही हटाया। वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने गंगा की निर्मलता को अपनी पहली प्राथमिकता बताने वाले बयान कई बार दिए हैं। किंतु ऐसा लगता है कि प्रदूषकों, शोषकों और गंगा अविरलता में बाधकों के खिलाफ निर्णायक जंग का ऐलान करने की हिम्मत वह भी नहीं जुटा पा रहे। उंगली अब उनके गंगा संकल्प पर भी उठती दिखाई दे रही है।

उच्च स्तरीय समिति : नई बैठक, बासी बयान


आठ सितंबर, दिन सोमवार! गंगा को लेकर पहली उच्च स्तरीय समिति की बैठक हुई। बैठक से पूर्व इसी दिन एक अखबार में सूत्रों के हवाले से खबर आई कि श्री मोदी ने श्री नितिन गडकरी की गंगा जलमार्ग योजना को नकार दिया है। वे गंगा के व्यावसायिक दोहन के विरुद्ध हैं। उन्होंने कहा है कि अब हम गंगा से कुछ लेंगे नहीं, सिर्फ देंगे ही देंगे। हमने सोचा कि शायद यह सुप्रीम कोर्ट की डांट अथवा प्रधानमंत्री जी की अंतरात्मा से आई किसी आवाज का असर हो।

इस खबर को देश के कई नामी नदी अध्ययनकर्ताओें और कार्यकर्ताओं ने शुभ बताया। किंतु बैठक के बाद भारत सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा जारी विज्ञप्ति ने इस शुभ को नकार दिया।विज्ञप्ति में पूर्व प्रकाशित खबर जैसा निर्णायक कुछ नहीं था। आश्चर्यचकित करता है कि प्रत्येक घटना, दुर्घटना व व्यक्ति को एक लाभदायक अवसर में तब्दील कर देने की कला में माहिर श्री मोदी ने गंगा पर पहली उच्च स्तरीय बैठक को कैसे निरर्थक जाने दिया!

नमामि गंगा : नई बोतल में पेश पुराना पेय


गौरतलब है कि विज्ञप्ति में श्री मोदी द्वारा गंगा को पहली प्राथमिकता बताने, जनभागीदारी का आह्वान और गंगा हेतु दुनिया के दूसरे देशों से मदद, तकनीक व ध्यान को आकर्षित करने संबंधी वही पुराना घिसा-पिटा बयान दर्ज था। श्री मोदी ने पीपीपी के जरिए ही देश के 500 शहरों के ठोस कचरा व गंदे जल के प्रबंधन की बात भी कही। कहा कि इस कार्य में गंगा किनारे के शहरों को प्राथमिकता पर रखेंगे।

याद कीजिए कि लगभग डेढ़ साल पहले द्वारा गंगा प्रबंधन योजना दस्तावेज निर्माण की समन्वयक आईआईटी, कानपुर के नई दिल्ली सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि श्री मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने भी यही कहा था। जलापूर्ति के क्षेत्र में पीपीपी को लेकर खुलते घोटाले और विरोध के बाद उन्होंने भी कचरा से पैसा कमाने की परियोजनाओं में पीपीपी लाने की बात कही थी। गंगा स्वच्छता के लिए जनता-जनार्दन को जोड़ने के मोदी आह्वान में क्या नया है?

गंगा कार्य योजना का शुभारंभ करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने भी यही आह्वान किया था। जनता कैसे विश्वास करे कि यह सरकार गंगा निर्मलता के लिए कुछ नया और नायाब करने वाली है?

विरोधाभासी कदम यह है कि मोदी सरकार गंगा के लिए जनांदोलन का आह्वान तो कर रही है, किंतु पनबिजली परियोजनाओं और गंगा जलमार्ग परियोजना के विरोध में उठे जनांदोलनकारियों से चर्चा करने से भी बच रही है। श्री मनमोहन सिंह भी राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की बैठक बुलाने से कतराते रहे; श्री मोदी भी कतरा रहे हैं।

गंगा पर कार्यक्रम निर्माण से पहले गंगा और शेष नदियों की अविरलता-निर्मलता से जुड़े विवादित मसलों पर एक अलग निर्णायक नीति व कानूनों के निर्माण की मांग पिछले डेढ़ दशक से उठती रही है।

न अटल सरकार ने यह हौसला दिखाया और न मनमोहन सरकार ने। प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का पालन न करने वाली कंपनियों के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानूनी मदद के आश्वासन के बावजूद उच्च स्तरीय समिति नीति व कानून निर्माण के मसले पर कुछ ऐलान नहीं कर सकी।

100 दिन की घोषणाएं नहीं करती आश्वस्त


बजटीय प्रावधानों के अलावा अब तक संबंधित मंत्रालय ने गंगा की ऑनलाइन निगरानी की घोषणा की। सर्वेक्षण शुरू किया। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पूर्व में चिन्हित 764 औद्योगिक इकाइयों का आंकड़ा सदन में रखा। ये ऐसे इकाइयां हैं, जो प्रतिदिन 50 करोड़ लीटर से अधिक गंदा प्रदूषित जल गंगा में डाल रही हैं। 165 को नोटिस जारी किए। 48 को बंद करने के आदेश जारी किए। राज्यों को मलशोधन संयंत्रों को सुचारु रूप से चलाने के निर्देश दिए।

एसपीएमजी में कर्मचारियों तथा समन्वय की कमी की ओर ध्यान दिलाया। उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने गंगा सफाई परियोजनाओं के आंतरिक ऑडिट की बात कही। लगभग सभी राज्यों ने स्थानीय निकायों के पास धनाभाव का रोना रोया। केंद्र ने भी राज्यों को हरसंभव सहयोग की रटी-रटाई बात कही।

गंगा जलमार्ग, घाट निर्माण व सौंदर्यीकरण, रेणुका बांध निर्माण और गंगा प्रदूषण मुक्ति के नाम पर ऑनलाइन निगरानी जैसे ऐलान जारी किए गए। ऐसे में तो वाकई अगले 200 साल में भी गंगा साफ होने से रही। यदि वाकई गंगा की सेहत सुधारनी है तो जरूरी है कि सरकार नीतिगत निर्णयों को अपनी प्राथमिकता बनाए। वरना देखना झेलम-चिनाब की तरह किसी दिन गंगा भी तट तोड़कर निकल पड़ेगी-खुद अपना इलाज ढूंढ़ने।

इसके अलावा केन्द्र सरकार ने बिहार में कोसी-मेची और बूढ़ी गंडक-नून बाया नदी जोड़ परियोजनाओं को मंजूरी दी। गंगा जलमार्ग परियोजना को लेकर विश्व बैंक का दौरा कराया। किसी डेनिश कंपनी से करार करने की बात सामने आई। नदी सफाई को लेकर जर्मनी, ऑस्ट्रेलियाई अनुभवों से लाभ लेने की बात कही।

गंगा को लेकर कोर्ट के समक्ष 29 पन्नों का हलफनामा पेश किया; फिर भी सरकार 29 बड़े, 23 छोटे और 48 उपनगरों से गुजरने वाली गंगा की सफाई को कोई ठोस-समयबद्ध खाका पेश नहीं कर पाई। लिहाजा, गंगा को अपनी पहली प्राथमिकता बताने वाली सरकार ने देश की सबसे बड़ी अदालत से डांट खाई।

विरोध पर चुप्पी


भूलने की बात यह भी नहीं कि 4200 करोड़ की गंगा जलमार्ग परियोजना के खतरों को लेकर देश के तमाम अखबारों में खूब चर्चा हुई है और विरोध में बैठकें भी। इस बाबत एक 10 सदस्यीय समूह ने तमाम वैज्ञानिक पहलुओं को सामने रखते हुए सरकार को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में मिसीसिपी नदी और फरक्का बैराज के अनुभवों को सामने रखते हुए उसके डिज़ाइन में भी बदलाव की मांग रखी गई है। किंतु सरकार चुप है।

नीतिगत निर्णयों से भागती सरकार


जम्मू-कश्मीर में जल के जलजले का मंजर हमारे सामने है ही। उत्तराखंड में बाढ़ से लगातार तबाही के अनुभव हर साल हमें चेताते ही हैं। पनबिजली परियोजना बांध के कारण डूबने के बाद अपने स्थान से हटाई गई धारी देवी प्रतिमा के प्रति उमाजी की आस्था जगजाहिर है।

विष्णु प्रयाग, लखवार बयासी से लेकर रेणुका बांध परियोजना तक विवाद-ही-विवाद हैं। फिर भी उमाजी सटीक निर्णय लेने की बजाए जाने किस बीच के रास्ते की तलाश कर रही है? मैं नहीं कहते कि पनबिजली परियोजनाओं बंद हों या चलने दी जाएं। किंतु बांधों को लेकर सरकार एक बार नीतिगत निर्णय का हौसला तो दिखाए।

परियोजनाओं की पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया को त्वरित बनाने के नाम पर वन एवं पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर ने मंजूरी प्रकिया को ध्वस्त करते हुए जिस तरह कोल परियोजनाओं की मंजूरी में जनसुनवाइयों की बाध्यता समाप्त करने का दुस्साहस किया है;

गुजरात मुख्यमंत्री रहते हुए श्री मोदी ने जिस तरह कई बार सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की मांग की; यदि इसी तरह नीतिगत तौर पर एक बार यह तय कर लेने का भी दुस्साहस दिखा दें कि उनकी सरकार बड़े और ऊंचे बांधों की पक्षधर है; तो यह गफलत तो न रहे कि अविरल-निर्मल गंगा, सरकार की प्राथमिकता है।

अनुभवों से कब सबक लेगी सरकार?


यहां मौलिक प्रश्न यह है कि क्या गंगा को अपनी प्राथमिकता बताने वाली नई सरकार और पर्यावरण एवं वन से निकलकर जलमंत्रालय में शामिल हुए गंगा पुनरोद्धार के नियोजकों ने गंगा कार्ययोजना के अनुभवों से कुछ सीखने की कोशिश की है? क्या यह सरकार यह समझ पाई है कि पिछले कुछ सालों में विश्व बैंक समेत भिन्न कारपोरेट सहायकों द्वारा जलापूर्ति और नदी संबंधी जिन प्रस्तावों को आगे बढ़ाया गया है, उनमें भारत के पानी और नदी माई की सेहत से ज्यादा कंपनियों की कमाई का लालच छिपा है?

गंगागंगा माई की सेहत सुधारने के काम में डॉक्टर यदि साधारण फीस कमा ले, तो समझ में आता है। यहां तो लक्ष्य सिर्फ कमाई-ही-कमाई नजर आ रहा है। अब यदि मोदी सरकार भी गंगा से कमाई को ही आगे रखना चाहती है, तो गंगा को माई मानने वाले श्रद्धालुजन भारत सरकार के कंपनी कमाई कार्यक्रमों से क्यों जुड़ें?

ऐसे तो साफ हो चुकी गंगा


पिछले 100 दिन के मोदी कार्यकाल से स्पष्ट है कि सरकार ही नहीं, स्वयं प्रधानमंत्री महोदय भी गंगा कार्य योजना की लापरवाही और गलतियों से कुछ सीखने को तैयार नहीं है। गंगा जलमार्ग, घाट निर्माण व सौंदर्यीकरण, रेणुका बांध निर्माण और गंगा प्रदूषण मुक्ति के नाम पर ऑनलाइन निगरानी जैसे ऐलान तथा जारी किए गए औपचारिक नोटिस गंगा की कोई मदद नहीं कर सकते। ऐसे तो वाकई अगले 200 साल में भी गंगा साफ होने से रही।

यदि वाकई गंगा की सेहत सुधारनी है, तो जरूरी है कि सरकार नीतिगत निर्णयों को अपनी प्राथमिकता बनाए; वरना देखना, झेलम-चिनाब की तरह किसी दिन गंगा भी तट तोड़कर निकल पड़ेगी खुद अपना इलाज ढूंढने।

तालाब से हरियाली और खुशहाली

Submitted by Shivendra on Tue, 09/09/2014 - 09:58
Author
प्रदीप सिंह
Source
यथावत, सितंबर 2014
pond
.'तालाब बनाओ लाभ पाओ' का नारा महोबा में असर दिखाने लगा है। वर्षा जल संचयन और पानी के परंपरागत स्रोतों की तरफ यहां के लोगों का रुझान बढ़ा है। उनमें एक उम्मीद और विश्वास का भाव जगा है। वे यह मानने लगे हैं कि बुंदेलखंड का यह क्षेत्र उनके सार्थक पहल से पानी की कमी पूरी कर सकता है। चौपाल-गोष्ठियों में इस

लबालब पानी वाले देश में विचार का सूखा

Submitted by Shivendra on Mon, 09/08/2014 - 11:55
Author
स्वतंत्र मिश्र
Source
जल, जंगल और जमीन - उलट-पुलट पर्यावरण (2013) पुस्तक से साभार

. गर्मी की तीव्रता से मनुष्यों और जानवरों का जीना मुहाल हो गया है। कुएं, तालाब और नदियों के जल स्तर में कमी आ रही है। ये संकट मनुष्य ने खुद पैदा किए हैं। बदल चुकी जीवन शैली की वजह से कृत्रिम तौर पर संकट पैदा हुआ है। दिल्ली में कभी 350 से ज्यादा तालाब हुआ करते थे लेकिन आज शायद तीन भी मुश्किल से मिलेंगे।

सच तो यह है कि यह संकट मौसम चक्र में आ रहे बदलावों के नतीजे हैं। गर्मी का मौसम चार महीने का होता था अब आठ महीने या नौ महीने गर्मी पड़ने लगी है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ये बदलाव कृत्रिम तौर पर पैदा किए गए संकटों से हुए हैं। अन्यथा मौसम चक्र से चीजें चलती रहती तो संभव है कि कभी कोई बड़ा संकट नहीं पैदा होता।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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