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एन.डब्ल्यू.डी.ए.
यदि मौसम विभाग ने सूखे की चेतावनी दी है, तो उसका आना तय मानकर उसकी अगवानी की तैयारी करें। तैयारी सात मोर्चों पर करनी है: पानी, अनाज, चारा, ईंधन, खेती, बाजार और सेहत। यदि हमारे पास प्रथम चार का अगले साल का पर्याप्त भंडारण है तो न किसी की ओर ताकने की जरूरत पड़ेगी और न ही आत्महत्या के हादसे होंगे। खेती, बाजार और सेहत ऐसे मोर्चे हैं, जिन पर महज् कुछ एहतियात की काफी होंगे।
इन्द्र देवता ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी है। अगले आषाढ़-सावन-भादों में वे कहीं देर से आएंगे; कहीं नहीं आएंगे; कहीं उनके आने की आवृति, चमक और धमक वैसी नहीं रहेगी, जिसके लिए वे जाने जाते हैं। हो सकता है कि वह किसी जगह इतनी देर ठहर जाएं कि 2005 की मुंबई और 2006 का सूरत बाढ़ प्रकरण याद दिला दें। इस विज्ञप्ति के एक हिस्से पर मौसम विभाग ने अपनी मोहर लगा दी है; कहा है कि वर्ष-2014 का मानसून औसत से पांच फीसदी कमजोर रहेगा। शेष हिस्से पर मोहर लगाने का काम अमेरिका की स्टेनफार्ड यूनिवर्सिटी ने कर दिया है।पिछले 60 साल के आंकड़ों के आधार पर प्रस्तुत शोध के मुताबिक दक्षिण एशिया में अत्यधिक बाढ़ और सूखे की तीव्रता लगातार बढ़ रही है। ताप और नमी में बदलाव के कारण ऐसा हो रहा है। यह बदलाव ठोस और स्थाई है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत के मध्य क्षेत्र में होने की आशंका व्यक्त की गई है। बुनियादी प्रश्न यह है कि हम क्या करें? इन्द्र देवता की विज्ञप्ति सुनें, तद्नुसार कुछ गुनें, उनकी अगवानी की तैयारी करें या फिर इंतजार करें?
गंगा नदी के प्रारंभिक जलमार्ग में अनेक बाँधों के निर्माण के कारण जलग्रहण क्षेत्र से परिवहित मलबा, आर्गनिक कचरा तथा पानी में घुले रसायन बाँधों में जमा होने लगा है जिसके कारण बाँधों के पानी के प्रदूषित होने तथा जलीय जीव-जंतुओं और वनस्पतियों पर पर्यावरणीय खतरों के बढ़ने की संभावना बढ़ रही है। बाढ़ के गाद युक्त पानी के साथ बह कर आने वाले कार्बनिक पदार्थों और बाँधों के पानी में पनपने वाली वनस्पतियों के आक्सीजनविहीन वातावरण में सड़ने के कारण मीथेन गैस बन रही है। गंगा, अनादिकाल से स्वच्छ जल का अमूल्य स्रोत और प्राकृतिक जलचक्र का अभिन्न अंग रही है। उसने अपनी उत्पत्ति से लेकर आज तक, अपने जलग्रहण क्षेत्र पर बरसे पानी की सहायता से कछारी मिट्टी को काट कर भूआकृतियों का निर्माण कर रही है तथा मुक्त हुई मिट्टी इत्यादि को बंगाल की खाड़ी में जमा कर रही है। उसने लाखों साल से वर्षाजल, ग्लेशियरों के पिघलने से प्राप्त सतही जल तथा भूमिगत जल के घटकों के बीच संतुलन रख, सभ्यता के विकास को सम्बल प्रदान कर सामाजिक तथा आर्थिक कर्तव्यों का पालन किया है। वह, कछार की जीवंत जैविक विविधता का आधार है।
कहा जा सकता है कि भारत में, मानव सभ्यता के विकास की कहानी, काफी हद तक गंगा के पानी के उपयोग की कहानी है।
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नदी जोड़ परियोजना : एक परिचय, भाग-1
आखातीज से कीजे सूखे की अगवानी की तैयारी
2 मई-अक्षय तृतीया पर विशेष
यदि मौसम विभाग ने सूखे की चेतावनी दी है, तो उसका आना तय मानकर उसकी अगवानी की तैयारी करें। तैयारी सात मोर्चों पर करनी है: पानी, अनाज, चारा, ईंधन, खेती, बाजार और सेहत। यदि हमारे पास प्रथम चार का अगले साल का पर्याप्त भंडारण है तो न किसी की ओर ताकने की जरूरत पड़ेगी और न ही आत्महत्या के हादसे होंगे। खेती, बाजार और सेहत ऐसे मोर्चे हैं, जिन पर महज् कुछ एहतियात की काफी होंगे।
इन्द्र देवता ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी है। अगले आषाढ़-सावन-भादों में वे कहीं देर से आएंगे; कहीं नहीं आएंगे; कहीं उनके आने की आवृति, चमक और धमक वैसी नहीं रहेगी, जिसके लिए वे जाने जाते हैं। हो सकता है कि वह किसी जगह इतनी देर ठहर जाएं कि 2005 की मुंबई और 2006 का सूरत बाढ़ प्रकरण याद दिला दें। इस विज्ञप्ति के एक हिस्से पर मौसम विभाग ने अपनी मोहर लगा दी है; कहा है कि वर्ष-2014 का मानसून औसत से पांच फीसदी कमजोर रहेगा। शेष हिस्से पर मोहर लगाने का काम अमेरिका की स्टेनफार्ड यूनिवर्सिटी ने कर दिया है।पिछले 60 साल के आंकड़ों के आधार पर प्रस्तुत शोध के मुताबिक दक्षिण एशिया में अत्यधिक बाढ़ और सूखे की तीव्रता लगातार बढ़ रही है। ताप और नमी में बदलाव के कारण ऐसा हो रहा है। यह बदलाव ठोस और स्थाई है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारत के मध्य क्षेत्र में होने की आशंका व्यक्त की गई है। बुनियादी प्रश्न यह है कि हम क्या करें? इन्द्र देवता की विज्ञप्ति सुनें, तद्नुसार कुछ गुनें, उनकी अगवानी की तैयारी करें या फिर इंतजार करें?
गंगा शुद्धिकरण प्रयासों का लेखा जोखा
गंगा नदी के प्रारंभिक जलमार्ग में अनेक बाँधों के निर्माण के कारण जलग्रहण क्षेत्र से परिवहित मलबा, आर्गनिक कचरा तथा पानी में घुले रसायन बाँधों में जमा होने लगा है जिसके कारण बाँधों के पानी के प्रदूषित होने तथा जलीय जीव-जंतुओं और वनस्पतियों पर पर्यावरणीय खतरों के बढ़ने की संभावना बढ़ रही है। बाढ़ के गाद युक्त पानी के साथ बह कर आने वाले कार्बनिक पदार्थों और बाँधों के पानी में पनपने वाली वनस्पतियों के आक्सीजनविहीन वातावरण में सड़ने के कारण मीथेन गैस बन रही है। गंगा, अनादिकाल से स्वच्छ जल का अमूल्य स्रोत और प्राकृतिक जलचक्र का अभिन्न अंग रही है। उसने अपनी उत्पत्ति से लेकर आज तक, अपने जलग्रहण क्षेत्र पर बरसे पानी की सहायता से कछारी मिट्टी को काट कर भूआकृतियों का निर्माण कर रही है तथा मुक्त हुई मिट्टी इत्यादि को बंगाल की खाड़ी में जमा कर रही है। उसने लाखों साल से वर्षाजल, ग्लेशियरों के पिघलने से प्राप्त सतही जल तथा भूमिगत जल के घटकों के बीच संतुलन रख, सभ्यता के विकास को सम्बल प्रदान कर सामाजिक तथा आर्थिक कर्तव्यों का पालन किया है। वह, कछार की जीवंत जैविक विविधता का आधार है।
कहा जा सकता है कि भारत में, मानव सभ्यता के विकास की कहानी, काफी हद तक गंगा के पानी के उपयोग की कहानी है।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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