हरिद्वार से उत्तर प्रदेश के उन्नाव तक गंगा जल की गिरती गुणवत्ता को आड़े हाथों लेते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नेशनल मिशन टू क्लीन गंगा (एनएमसीजी) को कड़ा निर्देश जारी किया है। ग्रीन पैनल ने कहा है कि एनएमसीजी हर 100 किलोमीटर के अन्तराल पर डिस्प्ले बोर्ड लगवाए जिस पर लिखा होना चाहिए कि नदी का पानी पीने और स्नान करने योग्य है अथवा नहीं।
आदेश जारी करते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने साफ तौर पर कहा कि हरिद्वार से उन्नाव तक गंगा का पानी न तो पीने योग्य है और न ही स्नान करने योग्य। उसने यह भी कहा कि गंगा जल की गुणवत्ता की जानकारी नहीं होने की वजह से करोड़ों लोग उसका इस्तेमाल पीने के साथ स्नान करने के लिये करते हैं।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की बेंच ने कहा, “क्या लोगों को यह पता है कि गंगा का पानी न तो पीने योग्य है और न ही नहाने योग्य। वे यह मानकर गंगा जल से आचमन करते हैं कि उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। अगर वे इस पानी का इस्तेमाल करेंगे तो आपको अंदाजा है कि उन्हें किस स्वर्ग की प्राप्ति होगी।”
गंगा जल को अयोग्य करार देते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा कि लोगों को यह जानने का अधिकार है कि जिस जल का वे इस्तेमाल कर रहे हैं वह उनके स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक है या नहीं। साथ ही यह भी कहा कि सिगरेट के पैकेट पर यदि यह मैसेज दिया जा सकता है कि उसका इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है तो नदियों के जल की गुणवत्ता की जानकारी लोगों को क्यों नहीं दी जा सकती है। इसके अतिरिक्त ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एनएमसीजी और सेन्ट्रल पॉल्यूशन बोर्ड को यह निर्देश भी जारी किया कि वे अपनी वेबसाइट पर जल की गुणवत्ता से सम्बन्धित मैप 15 दिनों में अपडेट करें।
इस मामले की सुनवाई करते समय ट्रिब्यूनल को यह भी जानकारी दी गई कि कानपुर के जाजमऊ में चमड़ा शोधन उद्योग से निकलने वाले हानिकारक रसायनों के कारण भी गंगा जल की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सेन्ट्रल और स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को नदी के पानी की गुणवत्ता की जाँच प्रत्येक महीने करने का भी निर्देश जारी किया है।