एक रोचक तथ्य ये है कि बिसलरी, हिमालया, किनले जैसी बड़ी कंपनियों का बाजार दिल्ली मुबंई जैसे मेट्रो शहर ही होते हैं लेकिन एक रोचक तथ्य ये है कि गंगा पथ पर बसे बलिया, गाजीपुर, बक्सर, भोजपुर से लेकर पटना तक हर छोटे मोटे शहर और उनकी तहसीलों में इन कंपनियों के ऑफिस है। इनके डिस्ट्रीब्यूटर गांवों तक पानी सप्लाई करते हैं। इनके अलावा सैकड़ों की संख्या में लोकल ब्रांड जमीन से पानी निकालकर महज 25 रूपए में 20 लीटर की बोतल सप्लाई कर रहे हैं। सभी का जादुई दावा है कि ये पानी आर्सेनिक मुक्त है।
अब वे गांव वाले जिनकी रोज की कमाई बमुश्किल सौ रूपए है, पानी खरीद कर पी रहे है आर्सेनिक के जहर ने हजारों गांवों के लाखों लोगों के सामने पीने के पानी का संकट खड़ा कर दिया है। चिंता की बात ये है कि पैसे देकर खरीदा जा रहा ये पानी भी पूरी तरह आर्सेनिक मुक्त नहीं है क्योंकि यह आर्सेनिक प्रभावित जमीन से ही निकाला जा रहा है। साफ पानी के लिए कई जगह कार्बन लेयर तक पंप डाला जा रहा है।
बहरहाल मात्र 5 सालों में पानी इंडस्ट्री करोड़ों की हो गई है और इस क्षेत्र में सौ फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। साफ पानी उपलब्ध करवाने में सरकार की लापरवाही का खामियाजा गांव वाले अपनी पसीने की कमाई लुटा कर भुगत रहे हैं।
इसका एक बड़ा कारण आर्सेनिक रिमुवल प्लांटों का फेल होना भी है। 80 फीसदी से ज्यादा प्लांट मेंटनेंस के अभाव में दम तोड़ रहे है। हालांकि मेंटनेंस का बजट इन प्लांटों की स्थापना से भी ज्यादा है।
एक अनुमान के अनुसार गंगा पथ पर फल फूल रही इस इंडस्ट्री में करीब 30 से 35 हजार लोग जुड़े है कई गांवों में लोग ट्रेक्टरों में सामु्हिक रूप से पीने का पानी लेने जाते है।