होषंगाबाद जिले का तवा बांध: चार दषकों में कहाँ पहुँचे?

Submitted by Anonymous (not verified) on Tue, 03/29/2016 - 18:51
नाम
साकेत दुबे
फोन न.
9425124064
ईमेल
saketdube.65@gmail.com
फेसबुक आईडी
saketdube.65@gmail.com
डाक पता/ Postal Address
jagdish ward 2 Hoshangabad
Language
Hindi
Story Idea Theme
भूजल (Ground Water)
Story Language
4 - हिन्दी

मध्यप्रदेष के होषंगाबाद जिले में तवा बांध बने चार दषक का समय होने को है। इन चार दषकों में कहाँ पहुँचे? कितना लाभ और हानि हुई? आज हालात ऐसे क्यों हैं कि जिले में नदियों और बांध होने के बावजूद ग्रामीण अंचलों में जल संकट गहरा रहा है। एक जमाना था जब जिले में भरपूर पानी था। गांवों में लोग चार-छह-आठ फीट का गड्ढा अपने खेतों के नजदीक खोद लेते थे। इसमें इतना पानी निकलता था कि दोनों सीजन में न केवल खेतों की बल्कि गांव की पेयजल समस्या का हल भी आसानी से हो जाता था। बारिष में यह गड्ढा भर जाता था। बारिष खत्म होने के बाद लोग इसे फिर खोद लेते थे। होषंगाबाद नगर के पास केवल निमसाड़िया ही ऐसा गांव नहीं था बल्कि अनेक गांवों में यही स्थिति थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। पानी को लेकर लोग परेषान हैं। टकराव हैं। पानी संकट से निबटने के तमाम सरकारी योजनाओं के प्रस्ताव टोटके ही साबित हुए। और सारे प्रयोग अवैज्ञानिक।

   ग्राम रोहना जहाँ से तवा बांध के निर्माण के दौर में मिट्टी बचाओ आंदोलन चला गया। यह आंदोलन बांध के कारण दलदल की स्थितियाँ बनेंगी तब क्या होगा? इस उद्देष्य को लेकर था। इस समस्या से निबटने के नाम पर कई तरह के अवैज्ञानिक तौर-तरीके अपनाए गए। इसी गांव में मिट्टी में जबर्दस्त नमी रहती थी, आज हैंडपंपों में पानी नहीं। मिट्टी कितनी बची कितनी नहीं? यह भी आकलन का विषय है। ऐसे ही न जाने कितने गांवों की कहानी है।

  जिले में किसानों की तस्वीर बदलनी थी। कितनी बदली? किसकी बदली? जिले में अनेक किसान आत्महत्या कर रहे हैं। वही पानी को लेकर किसानों में टकराव बढ़ता जा रहा है। इधर तवा बांध में गर्मियों के आते तक पानी कम हो जाता है। इस मौसम में तीसरी फसल के रूप में मूंग के लिए पानी को लेकर होषंगाबाद और हरदा जिले के किसानों में टकराव की स्थितियां बनी हुई हैं। प्रषासन की पहली प्राथमिकता किसान नहीं आर्डीनेंस फैक्टरी और रेलवे है। यही नहीं वे कंपनियां भी हैं जो तवा जलाषय से पानी लेकर बिजली बना रहीं है और कंपनियाँ भी है जिन्हें नहरांें के सुधारीकरण/लाइनिंग के नाम पर दो ढाई सौ करोड़ का मुनाफा होना है।

  छिंदवाड़ा जिले की महादेव पहाड़ियों से निकलने वाली तवा नदी, होषंगाबाद में नर्मदा से मिलने के लिए बैतूल होती हुई आती है। होषंगाबाद जिले में इस नदी पर बाध बनना साल 1958 में आरंभ हुआ। इसका निर्माण कार्य 1978 में पूरा हो सका। इस बांध ने बड़े भू भाग के जंगल और कृषि भूमि को निगल लिया। जंगल के निवासी अपना घरबार सब कुछ खो बैठे। इनमें से कुछ विस्थापितों में से थोड़े से लोगों ने थोड़ी बहुत खेती के अतिरिक्त मछली पकड़ने का व्यवसाय शुरु किया। ये लोग थोड़ा बहुत कमा पाते थे। लेकिन नब्बे के दषक में मछली का यह व्यवसाय इनके हाथ से छीन लिया गया। तब एक तवा मस्त्य संघ बना। लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने पांच साल की लीज देना स्वीकार किया। यह आजीविका के अधिकार की लड़ाई थी। अब हालात क्या हैं? यह देखना होगा।

    तवा बांध के सकारात्मक और नकारात्मक परिणामों के आंकलन में आठ दस अच्छी स्टोरियां निकल सकती हैं।
  कृपया इस प्रस्ताव पर विचार करें तो बेहतर होगा।
 

Story Theme
Ground water