प्रिय मीनाक्षी जी
मैं अवधेश मलिक, इंडिया के वाटर पोर्टल के ओर से दिए जा रहे ‘रिपोर्टिंग ग्रांट फेलोशिप 2016’ के खुद को योग्य मानते अपना आवेदन एक फ्री लांसर के रूप में आपके समक्ष भेज रहा हूं। उम्मीद है कि मेरे आवेदन को फेलोशिप चयन प्रक्रिया के तहत स्वीकार करते हुए। मुझे उक्त विषय पर कार्य करने के लिए मौका दिया जाएगा।
महोदया,
मैं दो विषयों पर कार्य करना चाहता हूं। स्टोरी आईडिया निम्न लिखित हैं।
1- काले सोने के नैसर्गिक मालिकों को फ्लोरोसिस का अभिशाप।
· छत्तीसगढ़ का कोरबा और रायगढ़ का क्षेत्र पूरे भारत में अपने खदानों में पाए जाने वाले उन्नत किस्म के कोयले के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। विकास के लिए शक्ति (एनर्जी), और एनर्जी के लिए कोयला का निकाला जाना आवश्यक है। सरकारें इस पर कार्य कर रही हैं। जिन क्षेत्रों में कोयला खदानें हैं वहां या तो कोयला जम कर निकाला जा रहा या नहीं तो उसकी प्रक्रिया जोर शोर से चल रही है। एक समस्या जिस पर या तो काम हुआ ही नहीं या फिर हुआ भी है तो उसकी चाल बहुत धीमी है वो है पीने का स्वच्छ पानी। आम तौर पर पाया गया है कि जिन ईलाकों में कोयला खदानें हैं वहां के पानी में फ्लोराईड की मात्रा भी अधिक है।
· फ्लोराईड का अधिक मात्रा में सेवन करने से फ्लोरोसिस होने का खतरा काफी हद तक बढ़ जाता है। हड्डीयों का मुड़ना। मानसिक एवं शाररीक विकास रूक जाना, हड्डीयों का कमजोर हो जाना, क्षरण शुरू हो जाना आदी। इससे लोगों में स्वास्थ्य संबंधी कई गंभीर बीमारीयां होने लगती है और उचित समय में इस पर ध्यान नहीं दिया जाए तो ये बिमारीयां लाईलाज भी हो जाती है।
· रायगढ़ का तमनार ब्लाक और कोरबा के पोंड़ी उपरोरा ब्लॉक के कई गांव फ्लोरोसिस नामक बीमारी के चपेट में हैं। सरकार के ओर से पर्याप्त ध्यान नहीं दिए जाने के कारण कई गांवों में काफी गलत प्रभाव पड़ा है। कई घर तो ऐसे हैं जहां बच्चा लेकर बूढ़ा तक इस बीमारी से पीड़ित है। यहां तक की जन्म लेने वाला बच्चा इस बिमारी से पीड़ित होने लगा है। अकाल मृत्यु के संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इन गांवों में तो लोग अपने बेटे-बेटियों की शादी करने में भी कतराने लगे हैं। जगहों में इन गांवों को भूत का भी गांव कहा जाने लगा है।
· कितने लोग इस फ्लोरोसिस नामक बीमारी से ग्रसित हैं? कितने लोगों की मौत हो चुकी है कितने लोगों को मुआवजा मिला। क्या सरकार ने स्थिति को ठीक करने के लिए उचित एवं सार्थक कदम उठाए?
· क्या यह परिदृष्य बदल सकता है। क्या इन गांवों के पीड़ितों की जिंदगीयों में फिर से खुशीयों को रंग भरा जा सकता है? तथ्यात्मक रिपोर्टिंग की जाए तो सरकार इस स्थित को सुधारने में मदद कर सकती है। लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी मिल सकता है। खोई हुई मुस्कान फिर से लौट सकती है। इत्यादी।
इसलिए महोदया से निवेदन है कि मुझे इन दोनों ब्लाकों में जाकर रिपोर्टिंग की अनुमति दी जाए।
· रिपोर्टस क्रमवार फोटो के साथ फाईल किए जाएंगें।
2- जानलेवा बनी आर्सेनिक युक्त पानी, पल पल मरते लोग
आर्सेनिक युक्त पानी पीने के कारण 1980 के दशक में राजनांदगांव के कोदीकशागांव, ब्लॉक चोटिया में कुछेक शोधकर्मीयों ने शोध किया था। उस समय यहां के चापाकल और अन्य स्रोतों से निकलने वाले पानी में आर्सेनिक की मात्रा 0.88mg/l बताया था। यहां पर आर्सेनिक युक्त पानी पीने से काफी संख्या में लोगों में कैंसर के लक्ष्ण पाए गए थे। उस समय कुछ प्रयास हुए उसके बाद स्थिति जस की तस है। काफी संख्या में लोग काल के ग्रास बन गए। जो बच गए वो आज भी इसका दंश झेल रहे हैं। आर्सेनिक का असर कम करने के लिए रामबाण औषधी साफ पीने योग्य पानी ही है। उसके बाद भी आज भी लोगों को स्वच्छ पानी के अभाव में आर्सेनिक की चपेट में आना पड़ रहा है। सरकार उदासीन है। जनता को ज्यादा पता नहीं। ऐसे में अगर यहां से शोध परक स्टोरी की जाए तो काफी हद तक चिजें बदल सकती है। अत आपसे गुजारिश है कि मुझे यह सुनहरा अवसर जरूर प्रदान करें।
धन्यवाद।