लखनऊ का बॉर्डर जिला है उन्नाव। ये गंगा नदी का इलाका है। इस जिले के कई गांवों में आर्सेनिक वाटर की पुष्टि हुई। आर्सेनिक वॉटर प्रभावित गांवों में लोगों को गंभीर बीमांरियां हो रही है। महिलाओं की प्रेगनेंसी नहीं हो रही। अगर होती भी है तो मिसकैरेज होता है। कैंसर से लेकर लंग्स टीबी और स्किन डिजीज काॅमन है। इलाके में खेती बाड़ी पर भी बुरा असर पड़ रहा है। इंडिन टॉक्सिकॉल्जी रिसर्च सेंटर (आईटीआरसी) के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया भी था कि इस इलाके में आर्सेनिक की मात्रा बहुत है। वैज्ञानिकों ने कुछ साल पहले इसकी पूरी रिपोर्ट शासन को सौंपी थी।आईटीआरसी ने इसकी रोकथाम के उपाय भी बताए थे। लेकिन अब तक शासन स्तर से लेकर प्रशासन स्तर पर कोई इंतजाम नहीं किए गए। नतीजा है कि आज भी इन इलाकों में लोग आर्सेनिक वॉटर के दुष्प्रभावों से लड़ रहे हैं।
सीरीज के तौर पर इस इलाके की स्टोरी की जा सकती हैं।
ये स्टोरी आइडियॉज हैं।
1 कैसे आर्सेनिक वॉटर ने प्रभावित गांवों के लोगों की जिंदगी को बर्बाद कर दिया। बचपन से लेकर जवानी को अपंग कर दिया इस आर्सेनिक वॉटर ने।
2 गांव के जिन घरों में इन बीमारियों की वजह से लोगों की जाने गई उन पर ह्यूमन एंगल की स्टोरी की जा सकती है। स्टोरी में लोगों के दर्द को बयां कर जिम्मेदारों से सवाल जवाब किए जा सकते हैं।
3 जब से आर्सेनिक वॉटर की पुष्टि इन गांवों में हुई है तब से लेकर अब तक किस तरह के प्रयास किए गए। क्या है इन प्रयासों की जमीनी हकीकत। अगर प्रयास हुए तो असर क्यों नहीं दिख रहा।
4 इसके अलावा आईटीआरसी ने जो रिपोर्ट शासन को सौंपी उस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई। शासन से लेकर जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत और शोध करने वाले वैज्ञानिकों से बातचीत।
5 लखनऊ के पीजीआई से लेकर प्रदेश के सबसे बड़़े चिकित्सा संस्थान किंग जार्जेज मेडिकल यूनीवर्सिटी के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग से भी बातचीत। क्या उनकी ओर से कभी कोई प्रभावित इलाके में रिसर्च की गई हो।
6 इस प्रभावित इलाके काम करने वाले गैरसरकारी संगठनों से बातचीत। उनके प्रयास अगर कुछ सकारात्सामक पहलू सामने आ रहा हो।