जल की स्वच्छता और उपयोगिता
पानी के प्रकार - उतराखण्ड राज्य में पानी की उपलब्धता तीन प्रकार से होती है। गलेशियर का पानी, बरसात का पानी और प्राकृतिक जल धाराओं का पानी। गलेशियर का पानी यहां पर बड़ी-बड़ी नदियों का स्रोत है। गंगा, यमुना, काली, पिण्डर, सरयू, टौंस आदि नदियां गलेशियर से ही निकलती है। जबकि कोसी, कमल नदी, गरूड़, हेंवल जैसी दर्जनों नदियां जंगलो से निकलती है।
नदि और वहां की बसासतें - राज्य में बहने वाली बड़ी-बड़ी नदियों के किनारे अब बड़ी मात्रा में शहर-कस्बे तेजी से विकसित हो रहे हैं। इन विकसित हो रहे शहरो में अब तक कोई सीवेज का विधिवत प्रबन्धन नहीं हो पाया है इस कारण नदियों से लेकर आम जन-जीवन में गंदगी का आलम पसरता ही जा रहा है। इस कारण अव्यवस्थित कस्बे स्वच्छ पर्यावरण और व्यस्थित जल प्रबन्धन के कारण लोग शुद्ध वातावरण के अभाव में जी रहे है। मौजूदा समय में जल प्रबन्धन और जल वितरण की समस्या के कारण वातावरण धूमिल हो रहा है। यही वजह है कि राज्य में प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन भी अनियोजित तरीके से किया जा रहा है, जिससे जल और वायु दोनो में प्रदूषण बढता ही जा रहा है।
पानी वितरण - राज्य में पानी वितरण को लेकर कई तरह की समस्यायें हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में तो दो तरह की समस्या लोगो के सामने पर है। पहला यह कि गांव में पेयजल के प्राकृतिक जल स्रोत जातिवाद के शिकार हो चुके है। अनुसूचित जाति के लिए अलग और सवर्ण जाति के लिए अलग जल स्रोत है। दूसरा सिचाई इत्यादि के लिए पानी की अत्यधिक समस्या बनी रहती है। जब बरसात होगी तभी जाकर लोग कृषि का सिंचित कार्य कर पायेंगे।
सम्पूर्ण स्वच्छता - राज्य का पहाड़ी व मैदानी भू-भाग दोनो स्तर पर जल शुद्धता की कमी से जूझ रहे हैं। पुराने शहर जैसे हरिद्वार, देहरादून, हल्द्वानी, रूद्रपुर का भूजल स्तर जितना दूषित हो चुका है उससे अधिक जल की मात्रा में भारी गिरावत आ चुकी है। पहले जहां 20 फिट पर पानी उपलब्ध होता था वहां अब 100 फिट पर पानी मिल रहा है। इन स्थानो पर औधौगिक विकास भी बड़ी तेजी से हो रहा है। इन उद्योगो से निकलने वाले जहरीली गैसों व गंदले तरल पदार्थो के निस्तारण के लिए कोई ठोस प्रबन्धन ही नहीं है। अधिकांश उद्योग तो बिना पर्यावरण संस्तुति के ही उद्योगो को चला रहे हैं। राज्य के पहाड़ी गांव सीढीनुमा आकार में बसे हैं। जहां निर्मित शौचालयों के सीवेज की कोई व्यवस्था नहीं है। अर्थात शौचालयों के गड्ढे या तो नालो में खोल दिये जाते हैं या इन गड्ढो के पाईप नालो में छोड़ दिये जाते है और जहां शौचलय नहीं वहां के लोग खुले में ही शौच जाते हैं।
विकास के नाम पर विनाश - 2013 की आपदा में 19 हाईड्रोपावर प्रोजेक्ट क्षतिग्रस्त हुए और पांच लाख लोगो पर आपदा का सीधा प्रभाव पड़ा। अर्थात 300 गांव पूर्ण क्षतिग्रस्त तथा 400गांव आपदा से प्रभावित हुए जो क्रमशः रूद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ, उत्तरकाशी के हैं।
प्रेम पंचोली