बढ़ती आबादी से जहाँ एक ओर खाद्यान वस्तुओं का संकट बढ़ा हैं वहीँ गंदगी ने पर्यावरण को इस हद तक प्रदूषित कर दिया है, पर्यावरणविदों ने चिंता व्यक्त की है कि स्वच्छता पर अगर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में साँस लेना दूभर हो जायेगा ! शहरों तथा गांवों में लोगों का खुले में शौंच जाना पर्यावरण को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है ! आईआईटी, कानपूर के वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान में दावा किया है कि खुले में शौंच जाने या फिर शौंचालय होने के वावजूद शौंच का सही निस्तारण न होने के कारण वायु में शौंच के कण पाए गए हैं जो बेहद चिंता का विषय है !
जनसँख्या – 2011 के अनुसार बड़े शहरों में लगभग 14 प्रतिशत परिवार ऐसे हैं जिनके पास या तो शौचालय ही नहीं हैं या फिर शौचालय तो है शौंच का निस्तारण मानकों के अनुरूप नहीं है ! साथ ही शहरों में बनाये जा रहे सार्वजानिक शौंचालय इस कमी को पूरा नहीं करते हैं ! सार्वजानिक शौंचालयों की संख्या 70 से 75 प्रतिशत तक कम है ! बिडम्बना यह भी है कि सार्वजानिक शौंचालयों के लिए शहरों में एक तो जगह ही नहीं है और है भी तो जो जगह प्रस्तावित की जाती है उस जगह पर जनता तैयार नहीं होती है ! और जो शौचालय पीपीपी माडल पर सामाजिक संस्थाओं द्वारा बना कर चलाये जा रहे हैं उनमे रख-रखाव की बेहद कमी के चलते कुछ ही दिनों में निष्प्रयोज्य होते देखे गए हैं !
गांवों की स्थिति शहरों से भी दयनीय है गांवों में शौचालय न रखने या शौचालय तो है शौंच का निस्तारण उचित न करने वालों का अनुपात 35 से 40 प्रतिशत तक है ! गांवों में केंद्र तथा राज्य सरकारों की पहल से बने शौचालयों की स्थिति बेहद ख़राब है शौचालय दिखाने भर को हैं, उनका उपयोग ही नहीं किया जा रहा है !