नर्मदा पर बढती शहरों के पानी की निर्भरता

Submitted by Anonymous (not verified) on Wed, 03/09/2016 - 18:31
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शक्ति वैद्य
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11 ए, मुखर्जीनगर, पायनियर स्कूल चौराहा, देवास (मप्र) पिन 455 001
Language
हिंदी
Story Idea Theme
शहरी क्षेत्र में पानी की समस्या और प्रबन्धन (Urban Waters)
Story Language
4 - हिन्दी

देश की प्रमुख नदियों में से एक नर्मदा नदी का इन दिनों अत्यधिक दोहन किया जा रहा है, मध्यप्रदेश में तो शहर – शहर इसका पानी पंहुचाने की होड़ मची है. राज्य सरकार नर्मदा से इंदौर, जबलपुर जैसे 18 बड़े शहरों और दर्जनों कस्बों –गांवों को पहले से पानी दे रही है. अब भोपाल, बैतूल, खंडवा जैसे 35 और शहरों को भी पानी दिए जाने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. हर साल नदी का करोड़ों गैलन पानी पाइपलाइनों से शहरों में भेजा जा रहा है. ऐसी स्थिति में नर्मदा पर शहरी पानी के लिए बढती निर्भरता कहीं इसके प्राकृतिक नदी तन्त्र के लिए खतरा तो नहीं बन रही. आखिर हम इसका किस हद तक उपयोग करेंगे. दीर्घकालीन और अत्यधिक दोहन से सदानीरा नर्मदा कहीं सूखने तो नहीं लगेगी. नर्मदा के पर्यावरण पर इसका विपरीत असर पड सकता है और बड़े भौगोलिक बदलाव भी हो सकते हैं. नर्मदा जल का अधिक से अधिक दोहन करने के लिए मध्यप्रदेश सहित गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान की भी नजर हैं. बिजली उत्पादन के लिए बड़ी परियोजनाएं भी नर्मदा में स्थापित हैं लेकिन इन सबका दारोमदार पर्याप्त पानी पर ही है. औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से आबादी का बढ़ता भार नदी के पानी की खपत में भी बढ़ोतरी करेगा. इस पर अभी से ध्यान देना जरुरी है और जहाँ संभव हो अन्य संभव स्रोतों पर भी शिद्दत से ध्यान देने तथा पारम्परिक तरीकों और स्रोतों को फोकस कर बरसाती पानी को सहेजने पर भी जोर देना जरुरी होता जा रहा है. हम पानी का सबसे ज्यादा और फिजूलखर्च करने वाले देशों में गिने जाते हैं. इससे पीने के पानी की समस्या हर साल विकराल होती जा रही है. जमीनी पानी की स्थिति यह है कि देश का एक तिहाई से ज्यादा भाग अब डार्क जोन में बदल गया है मतलब यहाँ का जमीनी पानी अब खत्म होने की कगार पर है. देश के कुल 5723 विकासखंडों में से 839 डार्क जोन में हैं जबकि 225 विकासखंड गम्भीर और 550 खंड अर्ध गंभीर जोन में हैं. यह स्थिति भयावह है अगले कुछ सालों में पीने के पानी की समस्या और भी भयावह रूप में हमारे सामने होगी. अभी ही हर साल पानी के लिए लड़ाई – झगड़ों की खबरें पढने -सुनने में आ रही है, पानी के लिए लोग खून बहाने को उद्यत हो रहे हैं तो आगे क्या हालात होंगे कहना मुश्किल है. पानी की मांग तेजी से बढ़ रही है तो दूसरी तरफ पानी जमीन में गहरे से भी गहरे जा रहा है. परंपरागत स्रोतों को हम सिरे से नकार चुके हैं. वे या तो अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं या इतने उपेंक्षित कि अब वे पानी देने से रहे. नदियों के प्राकृतिक रास्ते रोक कर उन्हें बाँधने की कोशिश तो की पर क्या हम इसमें कामयाब हो पाए हैं. क्या इन प्रयासों से बिजली के अलावा हमें कुछ हासिल हुआ और वह भी किस तरह, किस कीमत पर, कितने लोगों को उजाड़ कर या प्रकृति के कितने नुकसान के बाद.

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शहरी क्षेत्र में पानी की समस्या और प्रबन्धन