मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों के लिए प्रकृति ने अलार्म बजा दिया है| यह अलार्म है यहाँ धरती में करोड़ों साल से संग्रहित पानी के खत्म होते जाने का| इसका खुलासा हुआ है यहाँ 1000- 1200 फीट गहरे बोरिंग से पानी निकलने पर. अब इस अलार्म को सुनने और समय रहते प्रयास करने की बारी हमारी है| भू वैज्ञानिकों के मुताबिक़ साढे छह करोड़ सालों से संग्रहित होते आ रहे पानी को खत्म करने की कगार पर हम पंहुच चुके हैं| यह साबित करता है कि हमने जमीन में करोडॉ साल पहले से जमा होते आ रहे पानी के खजाने की आख़री बूंदे भी उलीचना शुरू कर दी है| अब इस गहराई से नीचे पानी मिलना संभव नहीं है| यहाँ जमीन में नीचे बेसाल्टिक चट्टानें हैं और इनके बीच के कुछ हिस्सों में पानी के भंडार होते हैं| यही पानी हम नलकूप के जरिये उलीचते रहते हैं| ढालू भोगोलिक संरचना और काली मिट्टी होने से इस क्षेत्र में अच्छी बारिश के बाद भी पानी प्राकृतिक रूप से जमीन में उतरकर भूजल स्तर में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं कर पाता| इससे भूजल तेजी से गहरा रहा है| ऐसी ही भूगर्भ संरचनाएं मध्यप्रदेश में मालवा से महाराष्ट्र के विदर्भ -कोंकण और मुंबई तक हैं, खतरे के बादल इन सभी इलाकों के लिए हो सकते हैं| जिस तेजी से भूजल का दोहन हो रहा है, उससे आज नहीं तो कल संकट से कोई नहीं बचा सकता| नलकूपों से 60 फीसदी सिंचाई और 50 फीसदी पीने के पानी का उपयोग किया जाता है| यानी हम ज्यादा से ज्यादा जमीनी पानी पर ही आश्रित होते जा रहे हैं |पांच दशक पहले से मप्र में भूजल स्तर गिरना शुरू हो चुका था| सत्तर के दशक में खेती के लिए नलकूपों का चलन बढ़ा और बड़े पैमाने पर किसानों ने बैंक से कर्ज लेकर बोरिंग को सिंचाई का एकमात्र विकल्प मान लिया. वर्ष 1975 से 1990 तक 15 सालों में ही अकेले मालवा -निमाड़ में 18 फीसदी हर साल की दर से नलकूप खनन बढ़े हैं. जबकि 1991 से 2015 में यह दर 30 फीसदी तक पंहुच गई है| नतीजतन अब गाँव – गाँव नलकूपों की संख्या 300 से 1000 तक है| जमीनी जलस्तर नीचे जाते रहने से सूखे नलकूपों की तादाद बढ रही है| किसान फिर नए बोरिंग करवा रहे हैं| यह समस्या अंधे विकास के नाम पर प्रकृति से बेहूदा छेड़छाड़ का अनिवार्य परिणाम है| हमने पानी के परम्परागत संसाधनों को भुला धरती में जमा बैंक बेलेंस की तरह के पानी का उपयोग कर लिया है| हम बरसाती पानी को धरती में रिसा नहीं पा रहे हैं सैकड़ों गैलन पानी नदी – नालों से व्यर्थ बह जाता है| कृत्रिम तरीके से पानी को धरती में रिसाने और भूजल स्तर बढ़ाने की कई तकनीकें भू वैज्ञानिकों ने हमारे सामने रखी है पर हम इन्हें नहीं अपना रहे हैं| यह हमारे पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा ही है|
नाम
मनीष वैद्य
फोन न.
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11 ए, मुखर्जीनगर, पायनियर स्कूल चौराहा, देवास (मप्र) पिन 455 001
Language
हिंदी
Story Idea Theme
भूजल (Ground Water)
Story Language
4 - हिन्दी
Story Theme
भूजल