प्रकृति को बिना छेड़-छाड़ के ही बचेंगे नौले-धारे

Submitted by Anonymous (not verified) on Sat, 03/26/2016 - 23:23
नाम
Prem Pancholi
फोन न.
9411734789
ईमेल
pancholi.prem5@gmail.com
फेसबुक आईडी
https://www.facebook.com/prem.pancholi.37
डाक पता/ Postal Address
140, Raipur Dhal Dehradun-248008
Language
HINDI
Story Idea Theme
नौले-धारे (Water Springs)
Story Language
4 - हिन्दी
प्रकृति को बिना छेड़-छाड़ के ही बचेंगे नौले-धारे
 
उत्तराखण्ड राज्य की यमुना घाटी वैसे तो जैवविविधिता के लिए विख्यात है। मगर यहां के कुछ गांव वैसे हैं जिनकी आजीविका प्राकृतिक संसाधनो पर ही टिकी है। यहां हम इसी यमुनाघाटी के सरबडियाड़ गांव की बात कर रहे हैं। इस गांव में पानी का प्रबन्धन ऐसा है कि लोग पानी को (प्राकृतिक जल स्रोतो) पूजनीय मानते हैं, जीवनधारा मानते है, तभी तो वे लोग माह की प्रत्येक संक्राती को सरबडियाड़ गांव के लोग इन जल धाराओं की पूजा करते हैं, सफाई करते हैं इत्यादि। जबकि गर्मी के मौसम में राज्य के सर्वाधिक गांव पेयजल की आपूर्ती की भंयकर समस्या से जूझते हैं, परन्तु सरबडियाड़ गांव के बसिन्दो पेयजल, सिंचाई और तमाम पानी से संबधित कार्यो के लिए कभी भी सरकार पर निर्भर नहीं रहे। गांव में प्राकृतिक जल स्रोत की अनूठी मिशाल है। यहां पर सात प्राकृतिक जल धारे (स्थानीय भाषा में 07पन्यारा) हैं जो बकायदा पत्थरो से नक्कासी करके सहेज रखे है। इनके संरक्षण की ग्रामीणो की अपनी लोक परम्परा है। इन धारो से बहने वाले पानी से जहां पनचक्की वर्षभर चलती है वही जल से संबधित आपूर्ती भी होती है। यह उत्तरकाशी जनपद की यमुनाघाटी का ऐसा गांव है जहां कभी भी पानी का अकाल नही पड़ा है। आस-पास के प्राकृतिक जल धारे (नौले-धारे) बढती उपभोग की प्रवृति के कारण सूखने की कगार पर आ गये हैं। हालांकि यमुनाघाटी के अन्य गांवों में लोगो ने अपने नौले-धारे पारम्परिक ज्ञान से बचाये हुए है। इस घाटी में प्राकृतिक जल स्रोत को लोग पन्यारा, धारा, बावड़ी, कुईं, बायका नौला आदि विभिन्न नामों से जानते हैं।
ज्ञात हो कि जो-जो गांव शहर-कस्बो में तब्दील हो रहे हैं वहां पर नौले-धारो पर अतिक्रमण हो रहा है। यानि यूं कह सकते हैं कि जहां-जहां सड़क पंहुच गयी हो वहां-वहां नौले-धारों पर संकट बन पड़ा है। फिर भी यमुनाघाटी के सर-बडियाड़, कफनौल, सरनौल, विसोई, पैंसर, जखोल जैसे 100 से भी अधिक गांव ऐसे हैं जहां नौले-धारे आज भी बचे हैं।
वर्तमान की चकाचैंध के कारण हम लोग पानी को एक वस्तु के रूप में देखने लग गये हैं। इसलिए आज आवश्यकता है कि जल संरक्षण के लोक ज्ञान को जन-जन तक पंहुचाने के लिए मीडिया अभियान, नुक्कड़-नाटक, चर्चा-परिचर्चा, अध्ययन के अलावा जो लोग जल संरक्षण के कार्यो में लगे हैं उन्हे भी प्रोत्साहित करा जाना चाहिए, ताकि जल संरक्षण के इस पुरातन संस्कृति से भविष्य की पीढी जुड़ सके। वाडिया भू-वैज्ञानिक संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड राज्य के 40 प्रतिशत प्राकृतिक जल स्रोत सूख चुके हैं। पहाड़ में उद्योग तो नही मगर निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाओं के कारण एक तरफ जल सा्रेत सूख रहे है वहीं दूसरी तरफ जल स्रोत अपनी धारा बदल रहे हैं।
प्रेम पंचोली
 
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प्रकृति को बिना छेड़-छाड़ के ही बचेंगे नौले-धारे