1. वर्ष 2008-09 में देश में फ्लोरोसिस की रोकथाम एवं नियंत्रण के उद्देश्य से राष्ट्रीय फ्लोरोसिस रोकथाम एवं नियंत्रण कार्यक्रम यानी एनपीपीसीएसएफ की शुस्र्आत हुई थी। 18 राज्यों के 111 जिलों में इस कार्यक्रम के विस्तारित करने का दावा किया जाता है। जबकि हकीकत यह है कि अभी तक इसके तहत मैदानी स्तर पर न के बराबर काम हुआ है। केवल काउंसलर की नियुक्ति कर दी गई है। वह भी इस स्थिति में है कि एक ही काउंसलर को कई जिलों का दायित्व दे दिया गया। जांच के लिए डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में मशीन तो उपलब्ध करा दी लेकिन टेक्निशियनों की नियुक्ति नहीं हो पाई। इस तरह फ्लोरोसिस के इस राष्ट्रीय कार्यक्रम की वस्तुस्थिति टटोली जाएगी।
2. फ्लोरोसिस प्रभावित क्षेत्रों में सतही जल या नदी के जलों पर आधारित बड़ी योजनाएं संचालित है। इन योजनाओं के संचालन में कई तरह की दिक्कतें हैं। धार-झाबुआ जिले में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग यानी पीएचईडी बिजली के बिल नहीं भर पा रहा है। ऐसे में विद्युत वितरण कंपनी ने कनेक्शन काट रखे हैं और भीषण गर्मी में लोगों को स्वच्छ पानी से वंचित रहना पड़ रहा है। इस तरह मैदानी स्तर पर तैयार व अस्तित्वमान योजनाओं पर विश्लेषणात्मक काम करने की विशेष रूप से कोशिश की जाएगी।
3. सामुदायिक सहभागिता को लेकर आदिवासी अंचलों में स्थिति चिंताजनक है। विभिन्ना स्तरों पर फ्लोराइडमुक्ति के लिए आरओ लगाए गए लेकिन वे समुदाय की सहभागिता के अभाव में बंद पड़े हुए हैं। इस तरह की स्थिति अन्य मामलों में भी चिंताजनक है। समुदाय में जागरूकता के अभाव के ही चलते दिक्कतें हो रही हैं। इस मामले में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलुओं पर अध्ययन करते हुए क्या हो सकता है उसे खोजना महत्वपूर्ण होगा।
प्रेमविजय पाटिल
धार