Reporting Grant fellowship 2016

Submitted by Anonymous (not verified) on Thu, 03/10/2016 - 23:49
नाम
Karam Veer Singh
फोन न.
9454244230
ईमेल
kv1992singh@gmail.com
फेसबुक आईडी
kv1992singh@gmail.com
डाक पता/ Postal Address
Vill & Post Gulariha Majre Dhoota
Language
hindi
Story Idea Theme
फ्लोराइड (Fluoride)
शहरी क्षेत्र में पानी की समस्या और प्रबन्धन (Urban Waters)
स्वच्छता (Sanitation)
Story Language
1 - अंग्रेजी
4 - हिन्दी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

शहरी क्षेत्रों में पानी के समस्या और प्रबंधन

हमारे अधिकतर गांवों और शहरों में साफ़ सुथरे पानी की उपलब्धता सरल नहीं है. गाँव और शहरों की बस्तियों में महिलाओं को पीने का पानी और खाना आदि बनाने के कामों के लिए साफ़ सुथरा पानी लेने घर से मीलों दूर जाना पड़ता है. हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में पानी की सप्लाई में सुधार हुआ है. एशियन डेवलपमेंट बैंक की वर्ष 2007 की एक स्टडी के मुताबिक अभी भी देश के 20 शहरों में प्रति दिन पानी की सप्लाई 4.3 घंटा प्रति दिन है. साफ़ सुथरे पानी की सप्लाई को निरंतर और सुचारू बनाने के लिए समय समय पर सरकार और गैर सरकारी संगठन नए नए प्रयोग करते हैं.

इस क्रम में कुछ साल पहले गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में पानी के एटीएम की शुरू किये गए हैं. पानी की इन मशीनों को लगाने का उद्देश्य लोगों को दूषित पानी से छुटकारा दिलाना और दूर से पानी लाने की समस्या से निजात दिलाना था. अलग अलग राज्यों में इन पानी की मशीनों को स्थानीय स्तर की ज़रूरतों और तकनीकों को ध्यान में रख कर विकसित किया गया है.  इन मशीनों में भू जल के पानी शुद्ध करने की सुविधा उपलब्ध है.

प्रस्तावित स्टोरी लम्बे फीचर के रूप में होगी.

इन में निम्न पहलुओं को कवर किया जाएगा:   

1.       एटीएम मशीनों के फायदे- नुकसान, तकनीक, अमलीकरण में आने वाली दिक्कतें, वितीय-पक्ष

2.       मध्य प्रदेश या राजस्थान में लगी मशीनों के प्रति लोगों के अनुभव (बातचीत आधारित )

3.       पानी के विशेषज्ञों, शुरू करने वाली संस्थाओं और उसके रख- रखाव से संबंधित एजेंसियों की बातचीत.

4.        अन्य स्थानों पर ऐसे प्रयोगों को दोहराने की संभावनाएं और सीमायें.

 

 

 

 

Sanitation स्वच्छता

 

पंचायतों की महिलाएं और स्वच्छता अभियान

 भारत के संविधान में आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों को तैयार करने और उसके अमलीकरण का दायित्व पंचायतों पर है. फिलहाल अधिकतर राज्यों में पंचायतों में एक तिहाई यानी 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित है. कुछ राज्यों में इस का प्रतिशत 50 प्रतिशत भी है.  पंचायती राज मंत्रालय (2006-2007) के मुताबिक पंचायतों में दस लाख महिलाएं विभिन्न पदों पर नियुक्त है. इन में 80 हज़ार महिला प्रधान हैं. इनमें बहुत सी महिलाएं सरपंच, वार्ड पंच के रूप में पानी, सड़क और शौचालय जैसी समस्याओं को सुलझाने को प्राथमिकता दे रही हैं. यह सर्वविदित है कि पानी और शौचालय के अभाव का सब से अधिक असर महिलाओं पर पड़ता है. इसलिए कुछ महिला सरपंच, मुख्य और प्रधान स्वच्छता अभियान में बेहद सशक्त भूमिका निभा रही हैं. ये महिलाएं शौचालयों के निर्माण और स्वच्छता के प्रसार में कारगर रोल मॉडल साबित हो रही हैं.

प्रस्तावित स्टोरी के निम्न पहलू कवर होंगे.

 

1.      प्रस्तावित स्टोरी में उत्तर भारत की पंचायतों में काम करने वाली कुछ महिलाओं की सफलता की कहानियां होंगी जो शौचालयों के निर्माण और स्वच्छता के अभियानों में रोल मॉडल के रूप में उभर रही हैं. ( मध्य प्रदेश, पंजाब , राजस्थान ) ऐसी कम से कम तीन या चार महिलाओं की केस स्टडी

2.      महिलाओं को स्वछता अभियान के तहत जोड़ने के लिए किस प्रकार के प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है और क्या ऐसा कोई प्रशिक्षण उपलब्ध है.

3.       इस कार्य को पूरा करने में महिलाओं को घर और पंचायतों में किस प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. 

4.        क्या व्यवस्थित रूप से महिलाओं को इस अभियान में जोड़ने की कोई योजना चल रही है.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Story Theme
मछलियों द्वारा खाद्य सुरक्षा पानी के एटीएम