शहरों में पानी का निजीकरण कारगर नहीं

Submitted by Anonymous (not verified) on Mon, 03/07/2016 - 19:52
नाम
मनीष वैद्य
फोन न.
98260 13806
ईमेल
manishvaidya1970@gmail.com
फेसबुक आईडी
manishvaidya1970@gmail.com
डाक पता/ Postal Address
11 ए, मुखर्जीनगर, पायनियर स्कूल चौराहा, देवास (मप्र) पिन 455 001
Language
हिंदी
Story Idea Theme
शहरी क्षेत्र में पानी की समस्या और प्रबन्धन (Urban Waters)
Story Language
4 - हिन्दी

खंडवा शहर में पीने के पानी की किल्लत के चलते यहाँ प्रदेश का पहला पानी के निजीकरण का माडल शुरू किया गया था. यह बुरी तरह फ़ैल हो गया है. इसमें एक अरब छह करोड़ रूपये खर्च करने के बाद भी अब तक लोगों को साफ़ और समुचित मात्रा में पानी नहीं मिल पा रहा है. बरसात के दिनों में मटमैला पानी पीना पड़ा. चौबीस घंटे पानी उपलब्ध कराने की बात थी पर बमुश्किल एक घंटा भी नल नहीं चल पा रहे हैं बार –बार पाइप लाइन फूट रही है तो कहीं ऊंचाई तक चढने के लिए प्रेशर नहीं बन रहा है. निजीकरण की योजना बनाते समय यहाँ के लोगों से जन प्रतिनिधियों ने बहुत बड़े – बड़े दावे किये थे लेकिन अभी से ही इन दावों के ढोल की पोल उजागर हो गई है. उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ जनहित याचिका भी दायर की गई है. यहाँ के लोग खासे नाराज़ हैं. लोगों का विरोध बढ़ा तो मुख्यमंत्री को सार्वजनिक मंच से निजीकरण नहीं करने की घोषणा करनी पड़ी. योजना में कई तकनीकी खामियां भी मिली हैं. इस योजना से पहले यहाँ लोगों को नगर निगम को 50 रूपये मासिक जलकर देना पड़ता था, जो अब चार गुना बढाकर 200 रूपये कर दिया गया है. 60 किमी नई वितरण पाइप लाइन डाले जाने का प्रस्ताव है पर अब तक करीब 50 साल पुरानी पाइप लाइनों से ही जल प्रदाय किया जा रहा है. योजना को सितंबर 11 तक पूरा होना था लेकिन आज तक भी काम पूरा नहीं हो सका है, लिहाजा नगर निगम को पानी के लिए दोहरे इंतजाम करना पड़ रहे हैं. इसमें कई खामियां हैं. योजना ही गलत ढंग से बनाई गई है और इसमें लोगों की सीधे तौर पर कोई भागीदारी नहीं है और न ही पहले जनप्रतिनिधियों या अफसरों ने उनसे कोई राय मशविरा किया है. यहाँ इस योजना की कोई जरूरत ही नहीं थी. शहर को पानी देने के लिए निगम को ही सक्षम बनाया जा सकता था. यहाँ केवल 14.50 एमएलडी पानी की ही जरूरत है लेकिन कृत्रिम रूप से जल संकट पैदा किया गया और फिर सात साल पहले यह योजना लागू की गई. देश में अब तक जहाँ –जहाँ पानी वितरण के निजीकरण की कोशिशें की गई हैं सभी जगह असफल ही हुए हैं. इन बानगियों और खंडवा के ताज़ा अनुभवों से साफ़ है कि जनता द्वारा चुनी हुई स्थानीय नगर संस्थाएं ही अपने नागरिकों के लिए पर्याप्त और साफ़ पानी का इंतजाम करें. इन्हें कहीं भी और किसी भी रूप में निजी हाथों में सौंपना न तो सरकारों, निकायों और न ही आम लोगों के हक़ में है. इससे उलट कई निकाय संस्थाओं ने अपने तईं किए प्रयासों से शहरों में जल वितरण को सुगम किया है. जरूरत है थोडी सी संकल्प शक्ति की और जिम्मेदारी समझने की.     

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शहरी क्षेत्र में पानी की समस्या और प्रबन्धन