107 मीटर लंबा पहाड़ काटकर पानी गांव में लाईं  जल सहेलियां

Submitted by Shivendra on Tue, 10/06/2020 - 16:22
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दैनिक जागरण/दिलीप सोनी

बुंदेलखंड का एक बहुत बड़ा इलाक़ा पानी की कमी से जूझ रहा है। यहां रहने वाले लोगों को पानी लाने के लिए कई किलोमीटर दूर तक पैदल जाना पड़ता है।  यहां पानी लाने में सबसे ज्यादा दिक्क्तों का सामना यहां की महिलाओं का करना पड़ता है। लेकिन इसी बुंदेलखंड में कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और  लगन के जरिए इस इलाके की तश्वीर बदलने की कोशिश की है। ये महिलाएं मध्य प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, सागर और दमोह के साथ उत्तर प्रदेश के सात जिलों झांसी, महोबा, ललितपुर, हमीरपुर, बाँदा, चित्रकूट और जालौन में नवीन जल संरचनाओं का निर्माण कर रहीं हैं। इन महिलाओं को यहां जल सहेलियों के नाम से जाना जाता है। 

107 मीटर लंबा पहाड़ काटकर पानी गांव में लाईं  

छतरपुर जिले के बड़ामलहरा ब्लॉक की ग्राम पंचायत भेलदा के छोटे से गांव अंगरोठा में बुंदेलखंड पैकेज से तालाब का निर्माण कराया गया था, परन्तु जल श्रोत का कोई माध्यम ना होने की वजह से तालाब सूखा ही रहता था। गांव में हो रही इस पानी की समस्या को से निजात पाने के लिए गांव की ही 400 से अधिक महिलाओं ने जल संवर्धन के क्षेत्र में काम कर रही परमार्थ समाजसेवी संस्थान के सहयोग से इस दिशा में काम करने का फैसला लिया। इन सभी महिलाओं जिनको जल सहेलियों के नाम से जाना जाता है इन्होंने लगभग 107 मीटर लंबा पहाड़ काटकर एक ऐसा रास्ता बनाया जिससे होकर उनके गांव के तालाब में पानी आ सके। 

कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद मिली सफलता 

दैनिक जागरण में लिखे अपने लेख में दिलीप सोनी बताते हैं की यहां काम करने वाली एक जल सहेली बबिता राजपूत बताती हैं  की महिलाऐं यहां पर तीन किलोमीटर पैदल चलकर आतीं थीं और श्रमदान करतीं थीं।  यहां अधिकतर ग्रेनाइट पत्थर मौजूद होने के कारण इन पत्थरों को काटने के लिए मशीनों का सहारा भी लेना पड़ा था। करीब 95 फीसदी कार्य महिलाओं को ही करना पड़ा और लगभग 18 महीनों के बाद इनके काम का परिणाम धरातल पर नजर आने लगा। इनकी कड़ी मेहनत और  लगन से इनके इलाके की दिशा और दशा दोनों बदल गई है। तालाब के भरने से सूखी बहेड़ी नदी भी पुनर्जीवत हो गई है। 

बारिश के पानी का संरक्षण 

पहले बरसात में भेलदा के पहाड़ों पर पानी ऐसे ही रिसकर बर्बाद हो जाया करता था लेकिन अब इसी बरसात के पानी को सहेजकर महिलाओं ने इस इलाके की तस्वीर बदल दी है। आज इस गांव का 40 एकड़ का तालाब लबालब भरा हुआ है जिसकी वजह से सूखे कुँओं और हैंडपंपों में पानी आ गया है। 

इस तरह शुरू हुआ काम 

साल 2011 में यूरोपियन यूनियन के सहयोग से परमार्थ सेवा संसथान ने पानी पर महिलाओं की हक़दारी परियोजना शुरू की थी।  गांवों में पानी को लेकर पानी की पंचायतें बनीं प्रत्येक पंचायत में 15 से 25 महिलाओं को जगह दी गई। प्राकृतिक जल प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए दो महिलाओं को जल सहेली बनाया गया, इन महिलाओं को जल और पर्यावरण कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह की अलवर स्थित संस्था में ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। वर्तमान में जालौन में 60, ललितपुर के तबलकोट ब्लॉक के 40 गांवों में जलस्रोतों का रखरखाव कर रहीं हैं।  छतरपुर में इन्होंने दो सौ से अधिक छोटे बांध बनाए हैं।