केंद्र की ये नई परियोजना कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को करेगी कम    

Submitted by Shivendra on Wed, 12/21/2022 - 12:38

कुछ फल जिसे चमगादड़ खाते है उससे शायद इबोला फैलाते हैं,फोटो- newscientist.com

जलवायु  परिवर्तन के चलते  भारत में  पिछले  कुछ सालों  में  फसलों पर जो  प्रभाव पड़ा है उस को लेकर  केंद्रीय कृषि मंत्री  नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा  में  बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक नेटवर्क परियोजना शुरू की है।

लोकसभा में मंगलवार को एक  सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आईसीएआर ने फसलों, पशुधन, बागवानी और मत्स्य पालन सहित कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक प्रमुख नेटवर्क परियोजना शुरू की है। जो  देश के संवेदनशील क्षेत्रों जो  सूखे, बाढ़, ठंढ,  हीट वेव से  प्रभावित है  उन  जिलों और क्षेत्रों की  स्थितियों से निपटने में मदद करेगा।  

उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के तहत, 12 कृषि-जलवायु क्षेत्रों में बीमारियों, कीटों और महत्वपूर्ण फसलों  का एक ऐसा  मौसमी  डेटाबेस तैयार किय जायेगा जिसमें  जलवायु परिवर्तन से संबंधित कीट गतिशीलता का अध्ययन किया गया हो । उन्होंने आगे कहा जलवायु परिवर्तन के कारण पशु कई बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं और ये बीमारियों व्यापक रूप से  फ़ैल भी रही है  ऐसे में आईसीएआर ने विभिन्न फसलों और जानवरों में बीमारियों और कीटों के प्रभाव का अध्ययन करना शुरू कर दिया है ।

जलवायु परिवर्तन से कई घातक बीमारियों का जन्म होता है  जैसे कि गांठदार त्वचा रोग, एवियन इन्फ्लूएंजा, अफ्रीकी स्वाइन फ्लू , क्लासिकल स्वाइन फ्लू , थिलेरियोसिस, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परजीवीवाद और एंथ्रेक्स आदि।

 केंद्रीय कृषि मंत्री  ने कहा  फसलों में  भी जलवायु परिवर्तन का असर  साफ़ देखा जा सकता है जैसे मूंगफली में अल्टरनेरिया ब्लाइट,  चावल में प्रस्फोट, शीथ रॉट और ब्लाइट, छोले में सूखी जड़ सड़न,  सरसों और सब्जियों में तना सड़न, मिर्च में थ्रिप्स  और विभिन्न फसलों में सफेद मक्खी  का लगना।  इसी तरह समुद्र  के तापमान में वृद्धि और इसका प्रभाव मछली के आवास, फेनोलॉजी, ट्रोफो-डायनामिक्स में परिवर्तन के अलावा उनके वितरण और प्रजनन के मौसम में बदलाव पर भी दिखाई देता है। ।

आईसीएआर ने जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न हुए रोगों और कीटों से निपटने के लिए कई फसलों के किस्मों का विकास किया है। 2014 के बाद से  कुल 1,752 जलवायु-प्रतिरोधी फसलों के किस्मों को विकसित किया गया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा 68 स्थान-विशिष्ट जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों को  भी विकसित किया गया है और इन्हे कृषक समुदायों के बीच व्यापक रूप से अपनाने के लिए लोकप्रिय बनाया गया है।

जैविक खेती पर एक अलग प्रश्न के  जवाब में  तोमर ने कहा कि 2019-20 की तुलना में 2020-21 में भारत से निर्यात किए जाने वाले जैविक उत्पादों की मात्रा और उसके मूल्य में वृद्धि हुई है। 2020-21 के दौरान निर्यात किए गए भारतीय जैविक उत्पादों की मात्रा 8.88 लाख टन थी, जबकि 2019-20 में यह 6.38 लाख टन थी, जो 39.18 प्रतिशत की वृद्धि थी। इन उत्पादों का मूल्य 2019-20 में 689.10 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2020-21 में 1,040.95 मिलियन डॉलर हो गया है ।