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राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप) 31 मार्च 2012
लोक अपेक्षा और सरकारी आश्वासन
मांगें
• अलकनंदा, मंदाकिनी, नंदाकिनी, पिंडर, विष्णुगंगा - पंचप्रयाग बनाने वाली गंगा की इन पांच मूल धाराओं पर बन रही सभी परियोजनायें बंद/निरस्त हों।
• गंगा और गंगा से मिलने वाली सभी नदियों और नालों को प्रदूषित करने वाले चमड़ा-पेपर आदि उद्योगों को कम से कम 50 किमी दूर खदेड़ा जाए।
• नरोरा से प्रयाग से हमेशा न्यूनतम 100 घन मीटर प्रति सेकेंड का प्रवाह सुनिश्चित किया जाए।
• कुंभ और माघ मेले के अलावा स्नान के सभी मौकों पर न्यूनतम 200 घनमीटर प्रति सेकेंड जल का प्रवाह हो।
सहमति के लिखित बिंदु
• राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की अगली बैठक 17 अपैल को नई दिल्ली में होगी।
• इस बैठक में स्वामी ज्ञानस्वरूप और स्वामी अविमुक्तेरानंद समेत गंगा सेवा अभियानम् के सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को विशिष्ट आमंत्रित सदस्य के रूप बुलाया जाएगा।
• गंगा सेवा अभियानम् के एजेंडे को पूरी प्राथमिकता के साथ बैठक में चर्चा के लिए रखा जाएगा।
• कुछ अन्य मसले, जिन्हें भिन्न बैठकों में स्वामी जी द्वारा मौखिक तौर पर बताया गया है, संबंधित विभाग एवं एजेंसियां उन पर गंभीरता से विचार करेंगी।
• राष्ट्र एवं गंगा के हित में स्वामी ज्ञानस्वरूप से अनुरोध कि अनशन समाप्त कर दें।
• 17 अप्रैल की बैठक में पधारकर बैठक की गरिमा बढ़ाने का अनुरोध।
• पुन: आश्वासन कि भारत सरकार भारतीयों के सांस्कृतिक व आध्यात्मिक जीवन में गंगा की महत्ता को मान्यता देती है। सरकार गंगा संरक्षण और गंगा की अविरलता, निर्मलता और पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाएगी।
आश्वासन
• आपसी विश्वास के आधार पर कुछ जुबानी आश्वासन भी सरकार और गंगा सेवा अभियानम् के बीच सहमति का आधार बने। वे निम्नवत हैं :
• जिन आधारभूत मानदंडों के आधार पर श्रीनगर परियोजना को वन एवं पर्यावरणीय मंजूरी दी गई थी; उन मानदंडों का उल्लंघन करने के कारण 30.06.2011 को वन एवं परियोजना मंत्रालय द्वारा परियोजना का काम रोकने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट का आदेश, मंत्रालय को 30.06.2011 के आदेश की पालन कराने से नहीं रोकता। अत: मंत्रालय अपने आदेश की पालन कराएगा। परियोजना का काम रोकेगा।
• मंदाकिनी पर सिंगोली-भटवारी, भगीरथी पर कोटली भेल- 1ए, अलकनंदा पर विष्णुगाद-पीपलकोटी और अलकनंदा- बद्रीनाथ तथा पिंडर पर देवसरी परियोजना वन एवं पर्यावरण मंजूरी मानदंडों की पालन नहीं करने की दोषी पाई गईं हैं। उनका काम रोको आदेश जारी होगा।
• उक्त परियोजनाओं में अपेक्षित मानदंडों की जांच के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय दो दिन के भीतर एक कमेटी गठित करेगा। कमेटी एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट दे देगी। कमेटी में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाएगा।
• भगीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, नंदाकिनी, पिंडर, विष्णुगंगा और धौलीगंगा समेत गंगा की सभी सहायक नदियों पर और पनबिजली परियोजनाओं को वन एवं पर्यावरणीय मंजूरी नहीं दी जाएगी। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण भी, विद्युत मंजूरी नहीं देगा। इस बाबत सरकार अधिसूचना जारी करेगी।
• सभी पनबिजली परियोजनाओं के साथ हुए सरकारी समझौते में लिखा गया है कि काम समय पर पूरा न होने पर क्षतिपूर्ति देनी होगी। सरकार इस प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से शुरू करेगी। इस प्रक्रिया में स्वामी अविमुक्तेरानंद के प्रतिनिधियों को भी शामिल करेगी।
17 अप्रैल की प्राधिकरण बैठक में गंगा सेवा अभियानम् का संभावित एजेंडा
• गंगा को सिर्फ ‘राष्ट्रीय नदी’ नहीं, प्रतीक अधिनियम के अंतर्गत ‘राष्ट्रीय नदी प्रतीक’ घोषित करना। गंगा का राष्ट्रीय सम्मान सुनिश्चित करने के लिए अनुशासित व्यवहार की नीति व कानून। प्राधिकरण का वन एवं प्राधिकरण के अधीन होना गैरवाजिब। स्वतंत्र ढांचे की स्थापना। प्राधिकरण के विशेषज्ञ सदस्यों की प्रभावी भूमिका के लिए जरूरी प्रावधान। सक्रिय एवं प्रभावी प्राधिकरण के लिए प्राधिकरण का पुनर्गठन।
• देवप्रयाग से ऊपर गंगा की सभी धाराओं पर तथा देवप्रयाग से नीचे गंगा के मूल प्रवाह, नदी भूमि और बाढ़ क्षेत्र को पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील घोषित करते हुए भविष्य में किसी भी निर्माण परियोजना को मंजूरी नहीं देने की अधिसूचना।
• गंगा व उसकी सहायक धाराओं पर चल रही वर्तमान सभी पनबिजली परियोजनाओं पर तब तक के लिए काम रोको आदेश जारी किए जाएं जब तक कि उनकी समीक्षा नहीं हो जाती। समीक्षा होने तक गंगा प्रदूषण मुक्ति के नाम पर चल रही 10 करोड़ से ऊपर की सभी एसटीपी और एटीपी परियोजनाओं को रोका जाना।
• ‘गंगा मास्टर प्लान-2020’ तय समयावधि में नहीं बन सका है। उसकी समयबद्धता सुनिश्चित करना। सरकारी व गैरसरकारी स्तर पर व्यापक रायशुमारी के बाद ही गंगा मास्टर प्लान को मंजूरी का निर्णय। उसे अंतिम रूप देने तक किसी भी निर्माण परियोजना की मंजूरी पर रोक। ऐसी परियोजनाएं जिनका काम शुरू नहीं हुआ है, उनका पैसा जारी न करना।
• इसके अतिरिक्त न्यूनतम प्रवाह, औद्योगिक प्रदूषण और उत्तराखंड पनबिजली परियोजनाओं से संबंधित वे तीन मांगें, जो तपस्या समाप्ति की भी मुख्य शर्त हैं।