मालवा के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा जल को विभिन्न कृत्रिम भू-जल भरण विधियाँ अपनाकर भू-जल भंडारण में वृद्धि की जा सकती है।
इन विधियों में प्रयुक्त संरचनाओं की विस्तृत जानकारी निम्नानुसार हैः ग्रामीण क्षेत्रों में भू-जल संवर्द्धन हेतु उपयोगी।
संरचनाएँ
1. कंटूर नाली (ट्रेन्च) : इस संरचना का उद्देश्य जल प्रवाह को कम कर मिट्टी का कटाव रोकना है। अतः इसकी रचना पहाड़ों के ढलान पर समान ऊँचाई वाले स्थान पर की जाती है।
इसे दो प्रकार से बनाया जा सकता है:
(1) समान अंतर पर खोदी जाने वाली नाली।
(2) कुछ स्थान छोड़कर खोदी जाने वाली नाली।
ये वर्गाकार एवं आयताकार रहती है। इनकी लंबाई, चौडाई व गहराई तथा एक-दूसरे से परस्पर दूरी पहाड़ी के ढलान व जलग्रहण क्षेत्र पर निर्भर रहती है। अगर ढलान कम है तो दूरी अधिक रखी जाएगी। इसी तरह यदि जलग्रहण क्षेत्र से पानी अधिक मात्रा में आ रहा है तो कंटूर की माप भी अधिक रहेगी। दो कंटूर नालियों के मध्य की दूरी सामान्यतः 3 मीटर अथवा कार्य स्थल की स्थिति के अनुसार कम या अधिक होगी। दो कंटूर नालियों के मध्य क्षैतिज एंव उर्ध्वाधर दूरी इस प्रकार होगी
(1) उच्च से मध्यम ढलान पर 3 से 4 मीटर तक।
(2) साधारण ढलान पर 5 से 10 मीटर तक।
इसी प्रकार कम वर्षा वाले (600 से 800 मिमी) क्षेत्र में दूरी 3 से 4 मीटर तक होगी। अधिक वर्षा (800 से 1200 मिमी) वाले क्षेत्र में दूरी 5 से 10 मीटर तक रखी जाना चाहिए।
नाली की खुदाई से प्राप्त मिट्टी पर पौधे लगाए जा सकते हैं। वर्षा का जो जल व्यर्थ में बह जाता है, उसे इस संरचना के द्वारा अंदर उतार कर आस-पास का जलस्तर बढ़ाया जा सकता है। (चित्र क्र. 1)।
2. कंटूर बंडिंग नाली :
यह संरचना वस्तुतः पहाड़ की ढलान पर बोल्डर द्वारा खड़ी की गई दीवार है। इसका उद्देश्य जल प्रवाह की तीव्रता घटाकर जमीन के कटाव न मिट्टी क्षरण को रोकना है।
इस संरचना में एक नाली खोदी जाती है, जिसकी चौड़ाई 4 मीटर व गहराई 0.5. से 0.60 मीटर रहती है। इसमें बड़े पत्थरों (बोल्डर्स) को एक-दूसरे पर जमाकर दीवार खड़ी की जाती है। वह लगभग 1 मीटर ऊँची होती है। उससे वर्षा जल के रिसन द्वारा भू-जल में वृद्धि होती है, जिसका लाभ निचले हिस्से में स्थित कुओं और नलकूपों को मिलता है। चित्र क्र. 2 में उक्त संरचना दिखाई गई है।