मध्यप्रदेश के महानगर इन्दौर की तेजी से बढ़ती हुई आबादी को पानी देने में नगर निगम के हाथ–पाँव फूल रहे हैं। बीते साल 600 करोड़ की भारी भरकम राशि खर्चकर करीब 50 कि.मी. दूर नर्मदा नदी से तृतीय चरण की परियोजना से भी अपेक्षित पानी फिलहाल नहीं मिल पा रहा है। इसलिए एक बार फिर नगर निगम का ध्यान शहर के परम्परागत जल स्रोत करीब 650 कुएँ–बावड़ियों को सहेजने की ओर गया है। बीते 30-40 सालों में इन्हें लोगों ने कचरे के मलबे में दफन कर दिया है। अब निगम इन्हें फिर साफ–सुथरा कर इन्हें पानी का स्रोत बना रही है।
इन्दौर नगर निगम ने तय किया है कि शहर के परम्परागत जल स्रोतों कुएँ–बावड़ियों को अतिक्रमण और गन्दगी से मुक्त कर उन्हें इस लायक बनाया जायेगा ताकि उनमें फिर से पानी रूक सके और लोग इसका इस्तेमाल कर सकें। यहाँ करीब साढ़े छह सौ ऐसे कुएँ–बावड़ियाँ हैं, जिन्हें तेजी से बढ़ते हुए शहर के दबाव में या तो भुला दिया गया या वे अतिक्रमण और कचरा कूड़ा भरने के गड्ढे की तरह उपयोग में लाए जाने लगे। लोगों को चूँकि अपने घरों में लगे नलों से पानी की आपूर्ति हो जाती है, लिहाजा उन्होंने भी कभी इन्हें साफ सुथरा रखने की कोशिश ही नहीं की। नगर निगम को जब भी शहर में पानी की किल्लत महसूस हुई या हल्ला मचा तो उन्होंने नर्मदा नदी से शहर तक पानी लाने की महँगी–महँगी योजनाओं के प्रस्ताव बनायें और सरकार ने उन्हें अमल भी किया लेकिन हद तब हो गई जब करीब आधा अरब से भी ज्यादा रूपये पानी के नाम पर खर्च कर दिए जाने के बाद भी इन्दौर के लोगों को अपेक्षित मात्रा में पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
निगम के जल संसाधन विभाग प्रभारी बलराम वर्मा बताते हैं कि कुएँ–बावड़ियाँ सहेजने की कार्य योजना बना ली गई है और जल्दी ही इस पर काम भी शुरू हो जायेगा। उन्होंने बताया कि इसके लिए केयर टेकर रखे जायेंगे और उनकी जिम्मेदारी होगी कि जल स्रोत अतिक्रमण और गन्दगी से बचे रहें। समय–समय पर अच्छा काम करने वाले केयर टेकर को उचित ईनाम भी देंगे। उन्होंने बताया कि निगम अपनी कार्य योजना में यह भी देख रहा है कि सम्बन्धित कुँए–बावड़ियों तक उसी कॉलोनी का बारिश का पानी पहुँच सके और कॉलोनियों की जरूरत भी कुछ हद तक इसके पानी से पूरी हो सके। इसका फायदा यह भी होगा कि उस इलाके में भूजल स्तर बना रहेगा ताकि इस क्षेत्र के व्यक्तिगत और सरकारी बोरिंग से भी पानी मिलता रहे। इससे हम प्राकृतिक तरीके से बरसाती पानी को भूजल भंडारों तक भेज सकेंगे। अब तक कई बार कुएँ–बावड़ियों को साफ किया जाता रहा लेकिन हर बार आस-पास रहने वाले लोग इसे फिर से कूड़ा–कचरा डालकर मलबे में तब्दील कर देते हैं पर इस बार ऐसा नहीं होगा। इस बार केयर टेकर नियुक्त किये जायेंगे और वे ही इसके लिए जिम्मेदार भी होंगे।
इन्दौर में भूजल स्तर भी तेजी से घट रहा है। शहर में पिछले सालों में यह करीब 100 फीट से भी ज्यादा घटा है। भूजल स्तर में गिरावट यहाँ चिन्ता की बात है। हालत यह है कि गर्मी के मौसम में 100 से 150 मीटर गहरे कुएँ भी सूख जाते हैं। और इसके बड़े कारणों में से एक शहर के कुएँ–बावड़ियों के मलबे में बदल जाना भी है। इस तरह नगर निगम अपनी भूल का अब प्रायश्चित करने का मन बना चुकी है।
इससे पहले नगर निगम यशवंत सागर, लिम्बोदी और बिलावली तालाब का गहरीकरण भी करवा चुका है। लिम्बोदी तालाब की क्षमता 15 घन मीटर से घटकर 8.8 घन मीटर ही रह गई थी। इसी तरह बिलावली तालाब की भी क्षमता 424 घन मीटर से घटकर 325 घनमीटर ही रह गई थी। 1936 में गम्भीर नदी पर बनना आरम्भ हुए यशवंत सागर बाँध की क्षमता 8000 घन फुट तथा क्षेत्रफल 187.5 वर्ग किमी थापर मिटटी भर जाने से उथला होता जा रहा था। इससे 80000 घनमीटर मिटटी निकालकर इसकी जलभराव क्षमता बढ़ाई गई है।
गौरतलब है कि यहाँ बीते साल करीब 600 करोड़ रूपये की लागत में इन्दौर से करीब 50 कि.मी. दूर स्थित नर्मदा नदी से पानी लाने की कवायद की गई लेकिन यह भी यहाँ की आबादी के मान से अब छोटी ही लग रही है। इन्दौर में एक औसत परिवार को महीने में करीब 15 घन मीटर पानी की जरूरत होती है। बीते साल शहर को नर्मदा के तृतीय चरण से केवल 90 एमएलडी पानी ही अतिरिक्त मिल सका। जबकि इसकी क्षमता 360 एमएलडी पानी अतिरिक्त देने की है। इससे पहले ही नगर निगम को नर्मदा के प्रथम और द्वितीय चरण से भी 180 एमएलडी पानी मिल रहा था।
वर्ष 2001 की जनसंख्या के मान से शहर को 311 एमएलडी पानी की जरूरत थी, 2011 में यह बढ़कर 444.53 एमएलडी तक पहुँच गई है। यही 2021 में 638 एमएलडी तक पहुँच जाएगी। नगर निगम की चिन्ता है कि अभी यहाँ की जनसंख्या 25 लाख से ज्यादा है। आगामी 2024 तक इन्दौर की सम्भावित आबादी बढ़कर 35 लाख के आँकड़े को छू सकती है, ऐसे में अभी किये जा रहे तमाम जतन भी छोटे पड़ सकते हैं। जबकि अभी की आबादी को ही पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है। इससे साफ है कि इन्दौर को जलापूर्ति के लिए अपने संसाधन दूगने और आने वाले कुछ सालों में तीन गुना तक करना पड़ेगा।
नगर निगम इन्दौर के दस्तावेज बताते हैं कि इन्दौर शहर में नल-जल योजना की शुरुआत होकर राज्य के समय 1878 में यहीं स्थित सिरपुर तालाब से हुई थी। इसके बाद 1885 में बिलावली तालाब से और 1895 में गम्भीर नदी से भी पानी दिया जाने लगा। आजादी मिलने के बाद 1948 में यशवंत सागर पर बाँध से शहर को पानी दिया गया। इस पर भी बढ़ते हुए शहर के लिए पानी की कमी महसूस होने लगी तो 1978 में पहली और 1992 में दूसरी चरण की नर्मदा परियोजना से शहर को पानी उपलब्ध कराया गया। शहर का क्षेत्रफल 103.17 वर्ग कि.मी. है इसमें 107.17 वर्गमीटर क्षेत्र में पाइप लाइन डालकर पानी वितरण किया जा रहा है। इस तरह कुल क्षेत्रफल के 78.85 फीसदी तथा कुल आबादी के 75.69 फीसदी को पाइप लाइन के जरिये पानी दिया जा रहा है। पाइपलाइन से अधिकाँश जल वितरण नर्मदा से मिले पानी के ही जरिए होता है। करीब 76 फीसदी आबादी नर्मदा के पानी पर ही आश्रित है जबकि यशवंत सागर से 11.9, बिलावली तालाब से 2.30 तथा कुएँ-बावड़ियो और ट्यूबवेलों से 9.53 फीसदी पानी वितरण किया जा रहा है। इसमें 98.5 प्रतिशत पानी घरेलू उपयोग में आता है।
इन तमाम आँकड़ों और तथ्यों से साफ है कि अब हमें शहरों में पानी के मुद्दे पर गम्भीरता से सोचेने और विकल्प तलाशने की जरूरत है। केवल भारी भरकम बजट वाली बड़ी–बड़ी योजनाएँ ही इसका रास्ता नहीं है, और रास्तों पर भी पुनर्विचार की अब जरूरत है।