देश की राजधानी नई दिल्ली में फिर से ऑड-ईवन स्कीम 4 से 15 नवम्बर तक सुबह 8 से शाम 8 बजे तक लागू रहेगी। यह दिल्ली में आने वाली अन्य राज्यों की गाड़ियों पर भी लागू होगी। वाहनों के कारण पर्यावरण प्रदूषण लगातार बढ़ते जाना सिर्फ दिल्ली का मामला नहीं है। देश के अन्य बड़े शहर मुम्बई कोलकाता, चेन्नई आदि का हाल भी अच्छा नहीं है। यहाँ तक जयुपर में भी ज्यादा गाड़ियों के कारण प्रदूषण काफी बढ़ा है। यह सीधा-सा फार्मूला है कि अगर सड़क पर वाहन कम चलें तो निश्चित रूप से एक सीमा तक वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिल सकती है।
दिल्ली में इससे पहले भी ऑड-ईवन फार्मूला लाया गया था और उससे प्रदूषण में काफी गिरावट देखने में आई थी। इसकी पुष्टि दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी (डीटीयू) की एक रिसर्च में हुई है। इस रिसर्च में सामने आया है कि जनवरी 2016 में ऑड-ईवन स्कीम से पीएम (पर्टिकुलेट मैटर) 2.5 और पीएम 10 की सांद्रता में कमी आई थी। 1 से 15 जनवरी 2016 तक केवल 15 दिन के ट्रायल के दौरान पीएम 2.5 में औसतन 5.73 प्रतिशत और पीएम 10 में 4.70 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। इस बात से यह स्पष्ट है कि यांत्रिक वाहनों का विकास भले ही मानव सभ्यता की प्रगति अथवा देशों के औद्योगिक विकास का परिचायक है, पर वर्तमान में वाहनों की असीमित वृद्धि से मानव जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बेगलुरु, जैसे महानगरों में वाहनों की भीड़ से प्रदूषण उच्च स्तर पर हैं।
लिहाजा वाहनों की वृद्धि उसी अनुपात में अपेक्षित है, जिससे मानव के स्वास्थ्य पर बुरा असर न पड़े तथा यांत्रिक प्रगति भी बाधित न हो। जरूरी है कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए परिवार में वाहनों के नियोजन को अपनाया जाना चाहिए। एक ही परिवार में सभी सदस्यों के पास गाड़ी होना ठीक नहीं कहा जा सकता। इस तरह का सुझाव सुप्रीम कोर्ट भी दे चुका है। दरअसल, कुछ समय पहले दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से चिन्तित सुप्रीम कोर्ट ने तिपहिया वाहनों की सुनवाई के दौरान कहा था कि क्यों नहीं परिवार में भी ‘वाहनों का नियोजन’ किया जाना चाहिए ? साथ ही कोर्ट ने पार्किंग को लेकर आए दिन होने वाले लड़ाई-झगड़े पर भी चिन्ता जताई थी। वाहनों की संख्या में हो रही बेतहाशा वृद्धि के चलते वायु प्रदूषण में बढ़ोत्तरी व सड़कों पर रोजाना लगने वाले भीषण जाम भी चिन्ता का सबब है।
आखिर एक परिवार को चार-पाँच वाहन रखने की इजाजत क्यों मिलनी चाहिए ? क्यों नहीं वाहनों के मामले में भी ‘‘हम दो, हमारे दो’’ का सिद्धान्त अपनाया जाना चाहिए। प्रमुख शहरों में वाहनों की संख्या इस कदर तक बढ़ चुकी है कि लोगों के पास इन्हें खड़ा करने तक की जगह नहीं है। जाहिर-सी बात है कि एक सीमा तक सड़कों पर वाहनों की संख्या कम होने से धुँआ कम होगा और सड़क हादसों पर लगाम लग सकेगा। इसलिए जैसे भी हो वाहनों की बढ़ती आबादी पर नियंत्रण लगाना ही होगा। सेंटर फॉर सांइस एंड एनवायरमेंट ने भारी रोड टैक्स लगाने, भीड़भाड़ के लिए अतिरिक्त शुल्क व पार्किंग के लिए ऊँची दर लेने जैसे सुझाव दिए थे, ताकि निजी वाहनों की संख्या कम कर दिल्ली जैसे महानगरों को जाम की समस्या से राहत दिलाई जा सके। उत्सर्जन मानकों, फिटनेस प्रमाणपत्रों और पॉल्यूशन और कंट्रोल प्रमाणपत्र के बिना चल रहे वाहनों पर दंड शुल्क बढ़ाने की जरूरत है।
प्रदूषित होती वायु से नेत्र विकार, त्वचा रोग, गले व फेफड़ों की समस्या के रूप में हमारा सामना प्रतिदिन हो रहा है। इनकी भयावहता इतनी है कि इससे कैंसर जैसी असाध्य बीमारी भी होने की आशंका रहती है। विशेषकर बच्चों पर अधिक दुष्प्रभाव परिलक्षित होता है। वाहनों के अंधाधुंध प्रयोग से वातावरण में लेड़, निकिल और कार्बनिक पदार्थों के माइक्रोपा-ट्रिंकल्स की मात्रा में असीमित वृद्धि हो रही है। यही माइक्रोपार्टिकल्स रक्त में घुलकर फेफड़ों के कैंसर को जन्म दे रहे हैं। प्रकृति में सल्फर और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड की मात्रा में भारी वृद्धि दर्ज की जा रही है, जिससे ब्रोंकाइटिस की बीमारी में भी काफी इजाफा हुआ है। ऐसे में समय रहते प्रदूषण पर नियंत्रण के उपाय किए जाने ही चाहिए।
TAGS |
air pollution, delhi air pollution, air pollution india, delhi traffic, odd even traffic rule, causes of air pollution, causes of air pollution, smog in delhi. |