अच्छे मानसून से सुधरेगी किसान की हालत

Submitted by editorial on Sat, 10/06/2018 - 18:18
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राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), 06 अक्टूबर, 2018

अच्छा मानसून भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये वरदान सरीखा समझा जाता है। इससे कृषि पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है। भूजल का स्तर ऊँचा होता है। दुधारू पशुओं और वन्य जीवों की मृत्यु दर कम हो जाती है। कृषि पैदावार बढ़ने से कृषि ऋणों के पुनर्भुगतान की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं क्योंकि किसानों की आय बढ़ जाती है। खाद्य पदार्थो में तेजी नहीं रहने पाती। सब्सिडी का बोझ कम होने लगता है। वित्तीय परिदृश्य में सुधार आने लगता है। उपभोक्ता माँग बढ़ती है। फलस्वरूप उद्योग क्षेत्र की कच्चे माल के लिये माँग में इजाफा होने लगता है। इससे विभिन्न क्षेत्रों में निवेश बढ़ने लगता है।

कृषि भारत की जीवनशैली रही है। यह अकेला क्षेत्र है, जो जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से आजीविका मुहैया कराता है। कृषि उत्पादन समग्र आर्थिक विकास पर खासा असर डालता है। अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में माँग पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कीमतों में स्थिरता बनाए रखने में भी इसकी महती भूमिका रहती है। चूँकि खाद्य पदार्थ उन वस्तुओं में शुमार हैं, जिनके आधार पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मापा जाता है, इसलिये जरूरी है कि खाद्य पदार्थों के दाम उचित स्तर पर बने रहें ताकि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इन तमाम कारकों के चलते कृषि अर्थव्यवस्था का ऐसा हिस्सा है, जिस पर तवज्जो दिया जाना जरूरी है। अभी भी देश में कामकाजी लोगों का 50 प्रतिशत हिस्सा कृषि क्षेत्र में रोजगार पाए हुए है। भारत में मानसून कृषि पैदावार और उत्पादकता को प्रभावित करता रहा है। इसलिये कि भारत के सकल कृषि रकबे का मात्र 45 प्रतिशत हिस्सा सिंचित है। दक्षिण-पश्चिम मानसून का भारत की सालाना वर्षा में 75 प्रतिशत योगदान रहता है।

भारतीय मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि 2018 के मानसून (जून से सितम्बर तक) समूचे देश में औसत बारिश हुई। सम्भवत: यह दीर्घावधि औसत (एलपीए) का 99% + -5% रहेगी। मौसम विभाग का यह भी कहना है कि सामान्य मानसून रहने की ज्यादा सम्भावना है। समूचे देश के मद्देनजर 2018 में दक्षिण-पश्चिम मानसून 26 सितम्बर, 2018 तक एलपीए से 9% नीचे था। अलबत्ता, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे मुख्य खाद्यान्न उत्पादक क्षेत्रों में मानसून का परिदृश्य अच्छा रहा। अच्छे मानसून परिदृश्य से देश में माँग-आपूर्ति के चक्र में रवानी आती है। हमारा देश अभी भी कृषि प्रधान देश है और पैदावारी क्षेत्रों में अच्छी बारिश पर खासा निर्भर है। बहरहाल, अच्छा मानसून भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये वरदान सरीखा समझा जाता है। इससे कृषि पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है। भूजल का स्तर ऊँचा होता है। दुधारू पशुओं और वन्य जीवों की मृत्यु दर कम हो जाती है। कृषि पैदावार बढ़ने से कृषि ऋणों के पुनर्भुगतान की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं क्योंकि किसानों की आय बढ़ जाती है। खाद्य पदार्थो में तेजी नहीं रहने पाती। सब्सिडी का बोझ कम होने लगता है। वित्तीय परिदृश्य में सुधार आने लगता है। उपभोक्ता माँग बढ़ती है। फलस्वरूप उद्योग क्षेत्र की कच्चे माल के लिये माँग में इजाफा होने लगता है। इससे विभिन्न क्षेत्रों में निवेश बढ़ने लगता है। संक्षेप में कहना यह कि मानसून अर्थव्यवस्था को खासा प्रभावित करता है।

भारत बढ़ाए अपनी भागीदारी

कृषि-खाद्य उत्पादों का वैश्विक आयात बाजार 1300 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है। लेकिन भारत की इसमें भागीदारी मात्र 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर की है यानी विश्व के कृषि एवं कृषि-खाद्य पदार्थों के वैश्विक आयात में एक प्रतिशत से भी कम भागीदारी। हमारे देश में काफी समय से खाद्यान्नों का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है। 2017-18 में यह 284.83 मिलियन टन रहा, जबकि 2016-17 में 275.68 मिलियन टन था। कह सकते हैं कि भारत के लिये अवसर है कि विश्व के खाद्य आयात बाजार में हिस्सेदारी बढ़ा ले। भारत से कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने में सरकार को कारगर नीति क्रियान्वित करनी होगी। भारत सरकार ढाँचागत सुविधाओं को बेहतर करने में जुटी है। प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना जैसी योजनाओं ने कारोबारी माहौल को बेहतर किया जा रहा है। नवोन्मेषी संस्कृति सुदृढ़ की जा रही है ताकि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को ज्यादा से ज्यादा लाभकारी बनाया जा सके। निर्यात बढ़ने से हमें ज्यादा से ज्यादा विदेशी मुद्रा अर्जित करने में मदद मिलेगी। साथ ही, ग्रामीण युवाओं और ग्रामीण उद्यमों के लिये खाद्य प्रसंस्करण परिदृश्य में बेहतरी से रोजगार के अवसर बढ़ सकेंगे।

कृषि अभी भी भारत की अधिसंख्य जनसंख्या की आजीविका का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण जरिया बनी हुई है। माँग-आपूर्ति के सिलसिले को ऐसा जमा देती है कि अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को बल मिल सके। लेकिन बढ़ती माँग और उसके अनुरूप आपूर्ति नहीं होने से अनेक वस्तुओं के दाम महँगे हो जाते हैं, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ने का अन्देशा पैदा हो जाता है। इसलिये जरूरी है कि कृषि क्षेत्र में पैदावार बढ़ाने के लिये सुधार किये जाएँ। कुछ कदम उठाने से कृषि क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका का निवर्हन कर सकता है। भंडारण क्षमता में इजाफा किया जाए। गोदामों का आधुनिकीकरण और उच्चीकरण किया जाए। किसानों को मौसम सम्बन्धी जानकारी समय पर मुहैया कराई जाए ताकि वे समय से खेती बाड़ी सम्बन्धी फैसले कर सकें। मूल्य श्रृंखला के निर्माण से खाद्य प्रसंस्करण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए। तकनीकी नवोन्मेष से इस काम में मदद मिल सकती है। साथ ही, भूमि हदबन्दी कानून में संशोधन हों ताकि कॉरपोरेट क्षेत्र भी कृषि क्षेत्र में अपनी भूमिका तलाश सके।

इसके अलावा, कृषि विश्वविद्यालयों की भूमिका को मजबूत करना होगा। कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण के लिये क्लस्टर स्थापित किये जाएँ। ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न विकासात्मक योजनाओं के लिये ऋण सम्बन्धी जानकारी किसानों को मुहैया कराई जाए। उच्च उत्पादकता के लिये खेती सम्बन्धी तौर-तरीकों में तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाए। सिंचाई सुविधाओं और उर्वरकों की उपलब्धि की दिशा में किसानों को जागरूक किया जाए। फसल विविधीकरण, फसल पुनर्चक्रीकरण और जैविक उर्वरक के इस्तेमाल आदि के मामले में किसानों को जानकार बनाया जाए। कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाए। छोटे और सीमान्त किसानों को ऋण सुविधाएँ बेहतर की जाएँ। खाद्य पदार्थों के वितरण को बेहतर बनाने के लिये एपीएमसी एक्ट में सुधार किये जाएँ। बहरहाल, इस बार मानसून इतना अच्छा तो रहा ही है कि किसान की हालत बेहतर हो सके।

(लेखक, पीएचडी चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री में मुख्य अर्थशास्त्री हैं)

 

 

 

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