ऐसे नहीं बचेगी रामगढ़ झील

Submitted by RuralWater on Tue, 01/31/2017 - 10:47
जयपुर के पास बने इस जलाशय को पुनर्जीवित करने के सारे प्रयास विफल साबित हो रहे हैं क्योंकि अधिकारी अवरोधों की लगातार अनदेखी कर रहे हैं।

उपेक्षित रामगढ़ झीलउपेक्षित रामगढ़ झील पिछले साल एक मगरमच्छ खाने की तलाश में रामगढ़ बाँध से चल कर सात किलोमीटर दूर जामवा रामगढ़ गाँव तक पहुँच गया। बाँध में एक समय पर 100 से ज्यादा मगरमच्छ थे पर 2006 के बाद से यह सूखा पड़ा है जिसके कारण मछली और मगरमच्छों का अन्य खाद्य ना के बराबर हो गया।

जयपुर के महाराज माधो सिंह द्वितीय के द्वारा बनवाया गया यह बाँध 1903 में निर्मित हुआ पर शहर को पानी की सप्लाई 1931 में शुरू हुई। जल्द ही यह जलाशय या झील एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन गया जिसमें 1982 के एशियाई खेलों में नौकायान प्रतियोगता भी काफी धूमधाम से आयोजित की गई।

पर आज इस झील को सराबोर करने वाली चार नदियाँ, रोड़ा, बाणगंगा, ताला और माधोवेनी, सूख चुकी हैं। जब राजस्थान उच्च न्यायालय ने 2011 में स्वयं संज्ञान लेकर रामगढ़ झील के सूखने का कारण जानना चाहा तो पता चला कि इसके 700 वर्ग किलोमीटर पहाड़ी जलागम में 405 एनीकट और 800 अतिक्रमण थे। इनमें फार्म हाउसों से लेकर शिक्षण संस्थान तक लिप्त पाये गए।

एनिकट पानी के नालों पर बनने वाली एक सीमेंट की दीवार है जो एक छोटे से बाँध का काम करती है। अधिक पानी होने पर वह दीवार के ऊपर से गुजर जाता है और ठहरा हुआ पानी धीरे-धीरे जमीन में रिसता है। यह न सिर्फ सिंचाई और पीने के पानी को विकेन्द्रित रूप से उपलब्ध करवाता है बल्कि धरातल के पानी के स्तर को भी ऊपर उठाता है।

सूखी रामगढ़ झील यह माना गया कि रामगढ़ झील के जलागम क्षेत्र में बने एनिकट नालों और छोटी नदियों के प्रवाहों को रोक रहे हैं। जैसे ही प्राकृतिक प्रवाह कम हुआ, बाणगंगा और इसकी सहायक नदियों पर अतिक्रमण बढ़ गया।

वकील वीरेंद्र डांगी, जो कि न्यायालय द्वारा नियुक्त जाँच समिति के सदस्य थे, बताते हैं कि जलागम क्षेत्र में बने इन एनिकटों की ऊँचाई 4-10 मीटर तक थी। उच्च न्यायालय ने इनकी ऊँचाई कम करने और सभी अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिये ताकि रामगढ़ झील को 1982 की स्थिति में वापस लाया जा सके।

इन आदेशों के बाद एनिकटों की ऊँचाई कम कर उन्हें 2 मीटर तक सीमित कर दिया गया परन्तु इसका नदियों के प्रवाह पर कुछ खास असर देखने को नहीं मिला क्योंकि अतिक्रमणों पर अभी भी कायम थे।

30 लाख रुपए के खर्च पर ताला नदी से रामगढ़ तक 17 किमी लम्बी नहर बनाने के बावजूद पानी नहीं आया। पड़ोसी अलवर जिले में नान्दूवाली नदी को पुनर्जीवित करने वाले कुंजबिहारी शर्मा कहते हैं कि एनिकटों को रामगढ़ झील के सूखने का जिम्मेदार ठहराना गलत है। यह ढाँचे धरातल के नीचे के पानी का स्तर बढ़ाकर नदियों और नालों के प्रवाह में मददगार सिद्ध होते हैं।

दो मीटर ऊँचाई का नियम भी बिना आधार का दिखता है। उच्च न्यायालय ने इस निर्देश के लिये एक पिछले केस, अब्दुल रहमान वर्सेस स्टेट ऑफ राजस्थान, का सन्दर्भ लिया था। परन्तु वह केस नागौर जिले के गाँव का था जहाँ की भौगोलिक और भूतत्व परिस्थितियाँ जयपुर की अरावली पर्वतमाला से बिल्कुल भिन्न है।

झील के सूखने से जलीय जीव भी संकट मेंदेहरादून में कई सालों से पानी संरक्षण पर काम करने वाले डॉ. सुनेश शर्मा बताते हैं कि एनिकट और चेकडैम के आयाम कई कारकों पर निर्भर करते हैं। इनमें जमीन की ढाल, पानी सोखने की क्षमता, क्षेत्र की औसतन वर्ष, जमीन के विभिन्न इस्तेमाल और स्थानीय लोगों की जरूरतें प्रमुख हैं। कोई एक मानक सभी क्षेत्रों के लिये नहीं बन सकता।

एनिकट का एक और उद्देश्य है पानी के साथ बहती गाद को रोकना। अगर यह न हों तो नीचे स्थापित बाँध और जलाशय मिट्टी से ज्यादा जल्दी भर जाते हैं। अरावली क्षेत्र में जल संरक्षण पर काम करने वाले एस.एस. ग्रेवाल का कहना है कि न्यायालय ने रामगढ़ बाँध को सिर्फ पर्यटन और शहर के पानी की माँग के हिसाब से समझा। एनिकट कैसे ग्रामीण क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करते हैं इसे नजरअन्दाज किया गया।

कुंजबिहारी शर्मा कहते हैं, “नदियों के सूखने का मुख्य कारण पेड़ों का कटना और पहाड़ों का खनन था। पर एनिकटों पर निर्देश अमल करना ज्यादा आसान था और इससे बड़े मुद्दों पर से ध्यान हट गया। जब तक हरियाली कायम कर अतिक्रमणों पर कार्यवाई नहीं होगी नदियाँ और रामगढ़ झील सूखी ही रहेंगी।”

अभी तक अतिक्रमण हटाने का अभियान काफी ढीला रहा है। वकील वीरेंद्र डांगी बताते हैं कि तकरीबन 800 अतिक्रमणों की सूचना राजस्व विभाग को दी गई थी पर सिर्फ 20 प्रतिशत को ही हटाया गया। निम्स विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेज, जोकि सबसे बड़े अतिक्रमणों में से एक हैं, अभी भी टिका हुआ है। ऐसे ही कई अतिक्रमण राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते कार्रवाई से बचे हुए हैं।

रोणा, बाणगंगा, ताला और माधोवेनी नदियों का पानी इस झील में आता था।इसके बजाय महंगे विकल्प ढूँढे जा रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य बजट में ब्राह्मणी नदी को रामगढ़ झील से जोड़ने की घोषणा की थी। इसी पर एक फिजिबिलिटी रिपोर्ट अभी तैयार हो रही है। कुंजबिहारी शर्मा कहते हैं कि राजनेताओं और अफसरों की सोच सिर्फ झील तक सीमित है जबकि बाणगंगा और इसकी सहायक नदियाँ झील से भी आगे बहते हुए भरतपुर जिले तक पहुँचती है। हमें नदी जोड़ने जैसे कृत्रिम उपायों से बचते हुए मूल कारणों पर कार्य करना चाहिए ताकि यही नदियाँ फिर से बहने लगे।


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