
यह है मध्यप्रदेश के देवास जिले का सतवास कस्बा। जिला मुख्यालय से करीब सौ किमी दूर पुनासा–कन्नौद मार्ग पर बसा है यह कस्बा। बताते हैं कि मुगलकाल के दौरान यह कस्बा काफी वैभवशाली रहा होगा क्योंकि यह तब मुगलकालीन राजाओं, ओहदेदारों और ताल्लुकादारों सहित बाकी लोगों के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए बीच में पड़ाव के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। सतवास से ही महज तीन किमी की दूरी पर चन्द्रकेशर नदी पर बना हुआ है यह पत्थरों से निर्मित बाँध। करीब 100 मीटर लम्बी पाल और करीब 10 फीट चौड़ी लाल पत्थरों की दीवार के बंधान से यहाँ काफी ऊँचा यह बाँध आज भी उसी तरह खड़ा है अपने दिनों के वैभव की कहानी सुनाता हुआ सा। अधिक पानी आने की स्थिति में बाँध को कोई खतरा न हो इसके लिए बाँध पर वेस्टवीयर की भी व्यवस्था है।
बाँध देखकर सहसा ही उस दौर के लोगों के पानी के प्रति आदर से मन भींग उठता है और यह भी कि उन्होंने यहाँ की पहाड़ियों से आकर नदी की बाढ़ के साथ व्यर्थ बह जाने वाले हजारों गैलन पानी को थामकर यहीं रोक लेने की कितनी अच्छी व सफल तकनीक उपयोग की। उन दिनों पानी की इतनी कमी नहीं रही होगी बावजूद इसके उन्होंने व्यर्थ बह कर जाने वाले पानी की कीमत पहचानी और इसे सहेजने की दिशा में बाँध बनाने का काम भी किया। यह बाँध बीते 400 सालों से कितने ही किसानों के खेतों में सिंचाई के लिए पानी मुहैया करता रहा है। वहीं इसमें लगातार पानी भरे रहने से इलाके का जलस्तर भी ऊँचा बना रहता है। यही वजह है कि आस-पास के गाँवों में जलस्तर चाहे कम हो लेकिन यहाँ इसके आस-पास जलस्तर अच्छा है। सतवास के विजयसिंह गौड़ बताते हैं कि वर्ष 2008 तक सतवास में इस बाँध की वजह से कभी भूजल स्तर कम नहीं हुआ था। यहाँ के जलस्रोत कुँए – कुण्डियाँ पूरे साल पानी से भरे रहते। जमीन से जल स्रोतों में गर्मी के मौसम में भी पानी की धार जैसी आवक बनी रहती। इस कस्बे ने इससे पहले कभी पानी की कमी देखी ही नहीं। हर साल बारिश के दौरान इस बाँध में अच्छा ख़ासा पानी रूक जाया करता और इसकी वजह से यह इलाका पानीदार बना रहता। उन्होंने बताया कि बाँध से अकेले सतवास को ही नहीं बल्कि पास के गाँव बाल्या, बड़कन खारी और बडौदा पंचायत के कुछ गाँव को भी फायदा है।
यहीं के अमरजीतसिंह चड्ढा बताते हैं कि जबसे इस बाँध की उपेक्षा शुरू हुई तबसे ही इलाके में पानी की कमी महसूस होने लगी है। करीब सात साल पहले से ही पानी की कमी हुई है इसका बड़ा कारण यह है कि बाँध में अब उतना पानी नहीं भर पाता, जितना पहले भर पाता था। पहले लोग साल दर साल इसकी सफाई और छोटी–मोटी मरम्मत कर दिया करते थे लेकिन अभी बीते दस सालों में न तो स्थानीय लोगों ने और न ही प्रशासन ने इसमें कोई रुचि ली। इसी वजह से यह समस्या बढ़ी है। इलाके में पानी को लेकर कुछ नए काम हुए भी हैं लेकिन इस बाँध के लिए कुछ नहीं हुआ।

यहीं के बाशिंदे शिक्षक नारायण जोशीला बताते हैं कि मुगलकाल में इस कस्बे की शान कुछ और हुआ करती थी। तब यह उनके राजमार्ग पर स्थित था। यहाँ अब भी मुगलकाल की कई इमारतें और किले की तरह के परकोटे की खंडहर दीवारें भी मिलती है। बताते हैं कि उन दिनों आगरा से अजमेर या मांडू जाने के लिए भी इसी रास्ते का उपयोग किया जाता था। तब सतवास कस्बे के आस-पास परकोटा हुआ करता था तथा रियासती सुरक्षा के लिहाज से ऐसी जगह राजाओं, उनके रिश्तेदारों, सैनिकों और ओहदेदारों के लिए महफूज मानी जाती थी। सम्भवतः उसी दौरान किसी बड़े ओहदेदारों के सामने सतवास की रियाया ने पानी के लिए गुहार लगाई होगी और रियाया की माँग पर ही यहाँ यह बाँध बनाया गया होगा यह भी हो सकता है कि किसी ओहदेदार या शंहशाह को यह जगह इतनी पसंद आई हो कि उन्होंने बनवाया हो फिलहाल इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है पर अकबर के समय की किताबों में यह जरूर आता है कि उसने रियाया की भलाई के लिए कई जगह बाँध, तालाब और बावड़ियाँ बनवाई। यह उन्हीं में से एक है।
ग्रामीण अब सरकार से माँग कर रहे हैं कि बाँध पर गेट लगाया जाना चाहिए। इससे बाँध का अतिरिक्त पानी सुगमता से निकल सके और बाढ़ के दौरान किसी के खेत को नुकसान नहीं पहुँचे। उन्होंने बताया कि प्रशासन और स्थानीय निकाय संस्थाएं गाद साफ़ करवाकर इसके लिए कोई योजना बनाए ताकि इलाके को इस जल संरचना का अपेक्षित लाभ मिल सके।