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कुरुक्षेत्र, जनवरी 2013
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से हर ग्रामीण को स्वच्छ एवं शुद्ध वातावरण मुहैया कराने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए तमाम प्रयास हो रहे हैं, लेकिन इसमें ग्रामीणों की सहभागिता जरूरी है। समाज के जागरूक लोग आगे आएं और अपने आसपास रहने वालों को बताए कि उनके द्वारा की गई गंदगी किस तरह से पूरे गांव को प्रभावित करती है। व्यक्तिगत स्वच्छता से 80 फीसदी बीमारियों को दूर किया जा सकता है। यही वजह है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीणों को स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छ वातावरण मुहैया कराने का बीड़ा उठाया है।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, स्वच्छता आजादी से महत्वपूर्ण है। इस बात से स्वच्छता के महत्व को समझा जा सकता है। भारत में स्वच्छता सुविधाओं में सुधार लाने तथा स्वच्छ पेयजल सभी के लिए उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार की ओर से निरंतर प्रयास किया जा रहा है। भारत सरकार ने महात्मा गांधी के इस कथ्य को स्वीकार किया और अभियान के तहत लोगों को स्वच्छ वातावरण मुहैया कराने की दिशा में अग्रसर है।
केंद्र सरकार की ओर से गांवों में तमाम सुविधाएं मुहैया कराने के साथ ही स्वच्छ वातावरण मुहैया कराने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए संपूर्ण स्वच्छता अभियान सरीखे तमाम अभियान एवं प्रचार-प्रसार के लिए गोष्ठियों आदि का आयोजन किया जा रहा है। लेकिन अभियान आम सहभागिता के आधार पर ही पूरा होगा। जब तक गांव के लोग यह नहीं तय करेंगे कि वे खुद अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ एवं शुद्ध रखेंगे तब तक सरकारी प्रयास भी परवान नहीं चढ़ेगा। इसलिए सबसे अहम बात है कि आम आदमी खुद इस दिशा में प्रयास करे। समाज के जागरूक लोग खुद सफाई पर ध्यान दें और अपने आसपास गंदगी करने वालों को समझाएं कि उनकी ओर से पर्यावरण को अशुद्ध करने की कोशिश से किस तरह से समूचे क्षेत्र व आसपास की समूची आबादी प्रभावित होगी।
स्वास्थ्य सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण तत्व है। जब तक व्यक्ति स्वस्थ नहीं होगा तब तक विकास में अपना योगदान नहीं दे सकता है। व्यक्ति तभी स्वस्थ रहेगा जब उसे पौष्टिक भोजन के साथ ही शुद्ध एवं स्वच्छ वातावरण मिले। जबतक हमारे आसपास का वातावरण शुद्ध नहीं होगा और हमें शुद्ध पानी नहीं मिलेगा तब तक हमारा स्वास्थ्य बेहतर नहीं हो सकता है। स्वास्थ्य से मतलब केवल शारीरिक बीमारियों से मुक्ति प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि उन सभी तत्वों से है जो मनुष्य को उसके सभी बाहरी वातावरण के अनुकूल बनाती हैं। इस प्रकार स्वास्थ्य वह स्थिति है, जिसमे मनुष्य अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमता को साथ-साथ विकसित कर सके। रक्त में ऐसे श्वेतकण होते हैं, जो बाहर से रोग कृमि प्रवेश होते ही उनसे लड़ने को तैयार हो जाते हैं और उन्हें मार भगाने के लिए तत्काल संघर्ष ठान लेते हैं। शरीर में जब तक यह क्रिया चलती रहती है, तब तक बीमारियां पैर नहीं जमा पातीं, पर जब रक्त के श्वेतकण निर्बल हो जाते हैं और रोग कीटाणुओं से उतनी तत्परतापूर्वक लड़ नहीं पाते तो फिर रोगों का अड्डा शरीर में जमने लगता है। गंदगी एक प्रकार से रोग कृमियों की सेना ही है।
विभिन्न स्तरों पर हुए सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि स्वच्छता हमारे जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। यदि हम गंदे वातावरण में रहते हैं तो तमाम बीमारियां हमें घेरे रहती हैं। स्वास्थ्य एवं स्वछता की कमी से समय-समय पर हुए अनुसंधानो एवं विशेषज्ञों द्वारा यह बताया गया है कि मुख्य रूप से बीमारियां फैलने का कारण वातावरण होता है। करीब 80 फीसदी रोग अस्वछता और गंदगी के कारण होते हैं।
इस तरह देखें तो स्वच्छता का स्वास्थ्य से घनिष्ठ संबंध है। आरोग्य को नष्ट करने के जितने भी कारण हैं, उनमें गंदगी प्रमुख है। बीमारियां गंदगी में ही पलती हैं। जहां कूड़े-कचरे के ढेर जमा रहते हैं, मल-मूत्र सड़ता है, नालियों में कीचड़ भरी रहती है, सीलन और सड़न बनी रहती है। मक्खियां एवं मच्छरों की वजह से तमाम बीमारियां बढ़ती हैं। उन्हें मारने की दवाएं छिड़कना तब तक बेकार है, जब तक गंदगी को हटाया न जाए। मच्छर का विष मलेरिया फैलाते हैं, मक्खियां हैजा जैसी संक्रामक बीमारी की अग्रदूत हैं। प्लेग फैलाने में पिस्सुओं का सबसे बड़ा हाथ रहता है।
विभिन्न स्तरों पर हुए शोध में यह साबित हो गया है कि दूषित पानी और दूषित भोजन के कारण दस्त,पोलियो,पीलिया जैसी जानलेवा बीमारियां होती हैं। दूषित हवा, पानी और रोगी व्यक्ति के संपर्क से बीमारियां फैलती हैं। शोधों के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ है कि नियमित रूप से हाथ-पैर धोने से, नाखून काटने से बहुत सारे रोगों को हम दूर रख सकते हैं।
ग्रामीण इलाके में अभी भी इस मामले में जागरूकता का अभाव है। लोग अपने घरों के आसपास कचरा फेंकते हैं। उन्हें लगता है कि घर का कचरा दूसरे स्थान पर फेंक देने से उनके कर्त्तव्यों की इतिश्री हो गई, लेकिन ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि वे अपने घर का कचरा भले पड़ोसी के पास फेंक दिए हो, लेकिन इसका असर किसी न किसी रूप में उन्हें भी प्रभावित करेगा। इसलिए ग्रामीणों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कचरा या अवशिष्ट फेंकने के लिए स्थान चिन्ह्ति करें, जो आबादी से दूर हो। ऐसा करने से वे खुद भी बीमारियों से बचेंगे और पड़ोसियों को भी बचाएंगे।
इसी तरह पेयजल के स्रोतों को किसी भी कीमत पर गंदा नहीं करना चाहिए। कुएं के आसपास पर्याप्त साफ-सफाई रखें। समय-समय पर वे ब्लीचिंग पाउडर व क्लोरीन की दवाएं डालते रहे। हैंडपंप के आसपास गंदा पानी न इकट्ठा होने दें। क्योंकि यही गंदा पानी धीरे-धीरे भूजल में मिल जाता है। कई बार यह पाइप के सहारे हैंडपंप से निकलने लगता है और फिर जब ग्रामीण उसी जल का प्रयोग करते हैं तो वे विभिन्न बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। इसलिए हैंडपंप के आसपास भी सफाई रखना जरूरी है।
गांवों में घरों के गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण कराया गया है। ये नालियां कचरे से भरी रहती हैं। इन नालियों की सफाई भी जरूरी है। हालांकि तमाम ग्राम पंचायतों में सफाईकर्मी की नियुक्ति की गई है, लेकिन जब तक हर ग्रामीण सफाई पर ध्यान नहीं देगा तब तक ग्रामीण स्वच्छता का सपना पूरा नहीं हो सकता है। इसलिए गांवों की नालियों में पालीथिन या अन्य कचरा डालकर गंदे पानी के बहाव को अवरुद्ध नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से घर के सामने नालियों में गंदा पानी जुटेगा और उससे उठती दुर्गंध आपके आसपास के वातावरण को प्रभावित करेगी। इसका सीधा-सा असर ग्रामीणों के जीवन पर पड़ेगा। मच्छरजनित बीमारियां बढ़ेंगी। ऐसे में हर व्यक्ति को सावधानीपूर्वक स्वच्छ वातावरण बनाने में सहयोग करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि निवास-स्थान तथा उसके आसपास गंदगी का रहना स्वास्थ्य के लिए स्पष्ट खतरा है। गंदगी जितनी निकट आती जाती है, उतनी ही उसकी भयंकरता और बढ़ती जाती है। आग की तरह वह जितनी समीप आएगी उतनी ही अधिक घातक बनती जाएगी।
अगर हम अपना शरीर स्वच्छ नही रखेंगे तो खुजली, गलकर्ण, नायटा जैसे त्वचा रोग हो जाते हैं। नियमित रूप से बाल नहीं धोएं तो बालों में खुजली और जुएं, रुसी आदि हो जाते हैं। दिन में दो बार सुबह और रात में सोने से पहले दांत साफ नहीं करने से दांतों में सड़न पैदा होती है। मुंह से बदबू आती हैं। आंखे साफ ना रखे तो आंखों की बीमारियां बढ़ती हैं। बीमार बच्चों की खांसी से जमीन पर थूकने से सर्दी, खांसी, टीबी जैसे रोगों का फैलाव होता है। ग्रामीण इलाके में अभी भी इस मामले में जागरूकता का अभाव है। ऐसे में समाज के जागरूक लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभानी होगी। ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से चलाए जा रहे स्वच्छता के अभियान में सहयोग करना होगा।
आज भी बड़ी संख्या में लोग खुले स्थान पर मल त्याग करते हुए जलाशयों और पानी के अन्य खुले प्राकृतिक संसाधनों को दूषित करते हैं। स्वच्छता सुविधाओं और जागरूकता की कमी के कारण अनेक स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय की कोशिश है कि खुले में शौच की परंपरा बंद हो। इसके लिए सरकार की ओर से सामुदायिक एवं व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है, लेकिन इसमें भी जनसहभागिता जरूरी है।
शौच में रोग प्रसार करने वाले करोड़ों विषाणु, रोगाणु होते हैं। खुले में शौच करने से वे विषाणु पानी द्वारा खाने के माध्यम से हमारे पेट में जाते हैं और बीमारियां बढ़ाते हैं। इसलिए बचपन से ही बच्चों में साफ-सफाई की आदत डालनी चाहिए। उन्हें खुले में शौच के लिए कभी भी आदेशित नहीं करना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार की ओर से शौचालयों के निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन शौचालयों का निर्माण ही पर्याप्त नहीं है। आवश्यकता लोगों की मानसिकता में बदलाव लाने की है। समाज के जागरूक लोग इस दिशा में प्रयास कर लोगों को बताए कि खुले में शौच के दुष्परिणाम क्या हैं। तभी समग्र स्वच्छता अभियान के उद्देश्य की पूर्ति होगी।
स्वच्छता के मुद्दे पर बच्चों को जागरूक किया जा रहा है, लेकिन उनकी जागरूकता को और बढ़ाने की जरूरत है। बच्चे रैली निकाल कर लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक तो करते हैं, लेकिन अध्यापकों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि क्या बच्चे खुद स्वच्छता का जो संदेश दे रहे हैं, उसे अपनाते हैं या नहीं। जिस दिन विद्यालयों के अध्यापकों एवं आंगनबाड़ी अथवा अन्य संस्थाओं से जुड़े लोगों ने स्वच्छता के मुद्दे पर गंभीरता दिखानी शुरू कर दी, उसी दिन से यह अभियान हकीकत में बदलता दिखने लगेगा। क्योंकि स्कूलों में सिर्फ शौचालय बनवा देना पर्याप्त नहीं है बल्कि बच्चों को उसके प्रति जागरूक करना अहम है।
संपूर्ण स्वच्छ पर्यावरण का सृजन- सरकार की कोशिश है कि वर्ष 2017 तक एक स्वच्छ परिवेश की प्राप्ति और खुले स्थान पर मल त्याग की प्रथा पूरी तरह से खत्म कर दी जाए। मानव मल अपशिष्ट का सुरक्षित रूप से प्रबंधन और निपटान किया जाना जरूरी है।
उन्नत स्वच्छता प्रथाएं अपनाना- केंद्र सरकार की ओर से वर्ष 2020 तक ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले सभी लोगों को, खासतौर पर बच्चों और देखभालकर्ताओं द्वारा हर समय सुरक्षित स्वच्छता प्रथाएं अपनाने हेतु पूरी तरह से जागरूक करने का लक्ष्य रखा गया है।
ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन- इसी तरह वर्ष 2022 तक देश की हर ग्राम पंचायत में ठोस और तरल अपशिष्ट का प्रभावी प्रबंधन करने की व्यवस्था का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इन बातों पर व्यक्तिगत तौर पर रखें विशेष ध्यान
1. शौचालयों का पर्याप्त उपयोग करें तथा मलमूत्र के उचित प्रबंधन व निपटान पर पर्याप्त ध्यान दें।
2. भोजन करने से पहले व बाद में हाथ धोएं।
3. शौचालय का प्रयोग करने के बाद सदैव अपने हाथ साबुन या राख से अच्छी तरह धोएं।
4. कभी भी लम्बे समय तक खुले बर्तनों में पानी इकट्ठा न करें। बर्तन का प्रयोग करने से पहले उसे अच्छी तरह पानी से धो लें।
5. भोजन को सदैव दूषित जल एवं भूमि के संपर्क से बचाकर दूर सुरक्षित रखना चाहिए। मांस व दूध उत्पादनों को सुरक्षित रखने के लिए, विशेषकर जहां शीतागार की सुविधा नहीं है, विशेष सावधानी बरतने की जरुरत होती है।
6. खुले में रखे खाद्य पदार्थों को खाने से परहेज करें।
7. अक्सर घरों में तमाम कूड़ा भरा रहता है। पुरानी, टूटी, रद्दी, बेकार चीजें घर में भरी रहती हैं। ये कई बार सड़ती रहती हैं, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। इसकी वजह से घर का वातावरण प्रभावित होता है। ऐसे में लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि घर में जो कबाड़ रखा है, वह उपयोगी नहीं है तो उसका निस्तारण करें।
ग्रामीण इलाके में पर्यावरण प्रदूषण के मामले में एक बड़ी समस्या पॉलीथीन की सामने आ रही है। पॉलीथीन के दुष्परिणामों को देखते हुए अदालत के निर्देश पर सरकार की ओर से इसके प्रयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके बाद भी गांवों में लोग प्रयोग कर रहे हैं। हर व्यक्ति को यह जानना होगा कि जिस पॉलीथीन को वे अपनी सुविधा के लिए प्रयोग कर रहे हैं वह उनके और उनके परिवार के लिए जानलेवा है। पॉलीथीन से पर्यावरण को ही खतरा नहीं है बल्कि हमारे जीवन को भी खतरा है। यही वजह है कि सरकार की ओर से इस पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। ऐसे में हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह पॉलीथीन का प्रयोग बंद कर दे। पॉलीथीन के उपयोग पर तभी पूरी तरह से रोक लग सकती है जब खुद लोग इसके लिए मानसिक रूप से तैयार होंगे। हालांकि लोगों को यह बताया जा रहा है कि किस प्रकार पॉलीथीन स्वास्थ्य, प्रदूषण सहित अन्य के लिए जिम्मेदार है। इसके लिए इससे दूरी बनाना अति आवश्यक है। नष्ट न होने के कारण यह भूमि की उर्वरक क्षमता को खत्म कर रहा है। यह भूजल स्तर को घटा रहा है और उसे जहरीला बना रहा है। पॉलीथीन का प्रयोग सांस और त्वचा संबंधी रोगों तथा कैंसर का खतरा बढ़ाता है। इतना ही नहीं, यह गर्भस्थ शिशु के विकास को भी रोक सकता है। पॉलीथीन को जलाने से निकलने वाला धुआं ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचा रहा है, जो ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा कारण है। पॉलीथीन कचरे से देश में प्रतिवर्ष लाखों पशु-पक्षी मौत का ग्रास बन रहे हैं। लोगों में तरह-तरह की बीमारियां फैल रही हैं। प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहने से लोगों के खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है। पॉलीथीन का नियमित प्रयोग करने से बिस्फेनॉल रसायन शरीर में डायबिटीज व लिवर एंजाइम को असामान्य कर देता है। पॉलीथीन कचरा जलाने से कार्बन-डाई-ऑक्साइड, कार्बन-मोनो-ऑक्साइड एवं डाइ-ऑक्सीन्स जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं। इनसे सांस, त्वचा आदि की बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है।
हालांकि पॉलीथीन बैग पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद इसके आकार को लेकर बहस छिड़ गई है। 0.6 मिलीमीटर से पतले पॉलीथीन से सीवर व नाले-नालियां जाम हो जाती हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, मोटे पॉलीथीन बैग को भी तीन बार ही रिसाइकिल कर इस्तेमाल किया जा सकता है। विशेषज्ञों की राय है कि प्लास्टिक कचरे के जमीन में दबने की वजह से वर्षा जल का भूमि में संचरण नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप भूजल स्तर गिरने लगता है।
रंगीन पॉलीथीन मुख्यतः लेड, ब्लैक कार्बन, क्रोमियम, कॉपर आदि के महीन कणों से बनता है जो जीव-जंतुओं व मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए घातक है। पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं कि मोटी पॉलीथीन में कार्बन और हाइड्रोजन की विशेष यूनिट होती है। यही कारण है कि मोटा पॉलीथीन सड़ता नहीं है। ऐसे में पॉलीथीन से बचने के लिए ग्रामीण इलाके में भी जन-जागरूकता की जरूरत है।
जो लोग पॉलीथीन के खतरे से वाकिफ हैं वे अपने पड़ोसियों को पॉलीथीन के खतरे के बारे में बताएं। उन्हें समझाएं कि पॉलीथीन का प्रयोग करने की वजह से किस तरह यह जान का दुश्मन बना हुआ है। चूंकि कोई भी व्यक्ति उदाहरण के तौर पर बाजार से पॉलीथीन में सब्जी ले आता है तो वह सिर्फ अकेले उससे प्रभावित नहीं होता है। वह पॉलीथीन में लाई गई सामग्री को प्रयोग करने के बाद खाली पॉलीथीन को कूड़े-करकट में फेंक देता है। यह नष्ट नहीं होती इस वजह से यदि जलाई भी जाती है तो उसकी गंध समूचे वातावरण में फैलती है वह हम सभी के लिए खतरा बनती है।
(लेखक अधिवक्ता एवं शैक्षिक संस्था से जुड़े हैं। ई-मेल: umarfaruqui.faruqi@gmail.com)
केंद्र सरकार की ओर से गांवों में तमाम सुविधाएं मुहैया कराने के साथ ही स्वच्छ वातावरण मुहैया कराने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए संपूर्ण स्वच्छता अभियान सरीखे तमाम अभियान एवं प्रचार-प्रसार के लिए गोष्ठियों आदि का आयोजन किया जा रहा है। लेकिन अभियान आम सहभागिता के आधार पर ही पूरा होगा। जब तक गांव के लोग यह नहीं तय करेंगे कि वे खुद अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ एवं शुद्ध रखेंगे तब तक सरकारी प्रयास भी परवान नहीं चढ़ेगा। इसलिए सबसे अहम बात है कि आम आदमी खुद इस दिशा में प्रयास करे। समाज के जागरूक लोग खुद सफाई पर ध्यान दें और अपने आसपास गंदगी करने वालों को समझाएं कि उनकी ओर से पर्यावरण को अशुद्ध करने की कोशिश से किस तरह से समूचे क्षेत्र व आसपास की समूची आबादी प्रभावित होगी।
स्वास्थ्य सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण तत्व है। जब तक व्यक्ति स्वस्थ नहीं होगा तब तक विकास में अपना योगदान नहीं दे सकता है। व्यक्ति तभी स्वस्थ रहेगा जब उसे पौष्टिक भोजन के साथ ही शुद्ध एवं स्वच्छ वातावरण मिले। जबतक हमारे आसपास का वातावरण शुद्ध नहीं होगा और हमें शुद्ध पानी नहीं मिलेगा तब तक हमारा स्वास्थ्य बेहतर नहीं हो सकता है। स्वास्थ्य से मतलब केवल शारीरिक बीमारियों से मुक्ति प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि उन सभी तत्वों से है जो मनुष्य को उसके सभी बाहरी वातावरण के अनुकूल बनाती हैं। इस प्रकार स्वास्थ्य वह स्थिति है, जिसमे मनुष्य अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमता को साथ-साथ विकसित कर सके। रक्त में ऐसे श्वेतकण होते हैं, जो बाहर से रोग कृमि प्रवेश होते ही उनसे लड़ने को तैयार हो जाते हैं और उन्हें मार भगाने के लिए तत्काल संघर्ष ठान लेते हैं। शरीर में जब तक यह क्रिया चलती रहती है, तब तक बीमारियां पैर नहीं जमा पातीं, पर जब रक्त के श्वेतकण निर्बल हो जाते हैं और रोग कीटाणुओं से उतनी तत्परतापूर्वक लड़ नहीं पाते तो फिर रोगों का अड्डा शरीर में जमने लगता है। गंदगी एक प्रकार से रोग कृमियों की सेना ही है।
स्वास्थ्य प्रभावित होने के प्रमुख कारण
विभिन्न स्तरों पर हुए सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि स्वच्छता हमारे जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। यदि हम गंदे वातावरण में रहते हैं तो तमाम बीमारियां हमें घेरे रहती हैं। स्वास्थ्य एवं स्वछता की कमी से समय-समय पर हुए अनुसंधानो एवं विशेषज्ञों द्वारा यह बताया गया है कि मुख्य रूप से बीमारियां फैलने का कारण वातावरण होता है। करीब 80 फीसदी रोग अस्वछता और गंदगी के कारण होते हैं।
इस तरह देखें तो स्वच्छता का स्वास्थ्य से घनिष्ठ संबंध है। आरोग्य को नष्ट करने के जितने भी कारण हैं, उनमें गंदगी प्रमुख है। बीमारियां गंदगी में ही पलती हैं। जहां कूड़े-कचरे के ढेर जमा रहते हैं, मल-मूत्र सड़ता है, नालियों में कीचड़ भरी रहती है, सीलन और सड़न बनी रहती है। मक्खियां एवं मच्छरों की वजह से तमाम बीमारियां बढ़ती हैं। उन्हें मारने की दवाएं छिड़कना तब तक बेकार है, जब तक गंदगी को हटाया न जाए। मच्छर का विष मलेरिया फैलाते हैं, मक्खियां हैजा जैसी संक्रामक बीमारी की अग्रदूत हैं। प्लेग फैलाने में पिस्सुओं का सबसे बड़ा हाथ रहता है।
दूषित पानी व हवा
विभिन्न स्तरों पर हुए शोध में यह साबित हो गया है कि दूषित पानी और दूषित भोजन के कारण दस्त,पोलियो,पीलिया जैसी जानलेवा बीमारियां होती हैं। दूषित हवा, पानी और रोगी व्यक्ति के संपर्क से बीमारियां फैलती हैं। शोधों के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ है कि नियमित रूप से हाथ-पैर धोने से, नाखून काटने से बहुत सारे रोगों को हम दूर रख सकते हैं।
ग्रामीण इलाके में अभी भी इस मामले में जागरूकता का अभाव है। लोग अपने घरों के आसपास कचरा फेंकते हैं। उन्हें लगता है कि घर का कचरा दूसरे स्थान पर फेंक देने से उनके कर्त्तव्यों की इतिश्री हो गई, लेकिन ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि वे अपने घर का कचरा भले पड़ोसी के पास फेंक दिए हो, लेकिन इसका असर किसी न किसी रूप में उन्हें भी प्रभावित करेगा। इसलिए ग्रामीणों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कचरा या अवशिष्ट फेंकने के लिए स्थान चिन्ह्ति करें, जो आबादी से दूर हो। ऐसा करने से वे खुद भी बीमारियों से बचेंगे और पड़ोसियों को भी बचाएंगे।
इसी तरह पेयजल के स्रोतों को किसी भी कीमत पर गंदा नहीं करना चाहिए। कुएं के आसपास पर्याप्त साफ-सफाई रखें। समय-समय पर वे ब्लीचिंग पाउडर व क्लोरीन की दवाएं डालते रहे। हैंडपंप के आसपास गंदा पानी न इकट्ठा होने दें। क्योंकि यही गंदा पानी धीरे-धीरे भूजल में मिल जाता है। कई बार यह पाइप के सहारे हैंडपंप से निकलने लगता है और फिर जब ग्रामीण उसी जल का प्रयोग करते हैं तो वे विभिन्न बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। इसलिए हैंडपंप के आसपास भी सफाई रखना जरूरी है।
नालियों की नियमित सफाई
गांवों में घरों के गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण कराया गया है। ये नालियां कचरे से भरी रहती हैं। इन नालियों की सफाई भी जरूरी है। हालांकि तमाम ग्राम पंचायतों में सफाईकर्मी की नियुक्ति की गई है, लेकिन जब तक हर ग्रामीण सफाई पर ध्यान नहीं देगा तब तक ग्रामीण स्वच्छता का सपना पूरा नहीं हो सकता है। इसलिए गांवों की नालियों में पालीथिन या अन्य कचरा डालकर गंदे पानी के बहाव को अवरुद्ध नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से घर के सामने नालियों में गंदा पानी जुटेगा और उससे उठती दुर्गंध आपके आसपास के वातावरण को प्रभावित करेगी। इसका सीधा-सा असर ग्रामीणों के जीवन पर पड़ेगा। मच्छरजनित बीमारियां बढ़ेंगी। ऐसे में हर व्यक्ति को सावधानीपूर्वक स्वच्छ वातावरण बनाने में सहयोग करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि निवास-स्थान तथा उसके आसपास गंदगी का रहना स्वास्थ्य के लिए स्पष्ट खतरा है। गंदगी जितनी निकट आती जाती है, उतनी ही उसकी भयंकरता और बढ़ती जाती है। आग की तरह वह जितनी समीप आएगी उतनी ही अधिक घातक बनती जाएगी।
शारीरिक सफाई पर भी दें ध्यान
अगर हम अपना शरीर स्वच्छ नही रखेंगे तो खुजली, गलकर्ण, नायटा जैसे त्वचा रोग हो जाते हैं। नियमित रूप से बाल नहीं धोएं तो बालों में खुजली और जुएं, रुसी आदि हो जाते हैं। दिन में दो बार सुबह और रात में सोने से पहले दांत साफ नहीं करने से दांतों में सड़न पैदा होती है। मुंह से बदबू आती हैं। आंखे साफ ना रखे तो आंखों की बीमारियां बढ़ती हैं। बीमार बच्चों की खांसी से जमीन पर थूकने से सर्दी, खांसी, टीबी जैसे रोगों का फैलाव होता है। ग्रामीण इलाके में अभी भी इस मामले में जागरूकता का अभाव है। ऐसे में समाज के जागरूक लोगों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभानी होगी। ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से चलाए जा रहे स्वच्छता के अभियान में सहयोग करना होगा।
खुले में शौच की परंपरा रोकना जरूरी
आज भी बड़ी संख्या में लोग खुले स्थान पर मल त्याग करते हुए जलाशयों और पानी के अन्य खुले प्राकृतिक संसाधनों को दूषित करते हैं। स्वच्छता सुविधाओं और जागरूकता की कमी के कारण अनेक स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय की कोशिश है कि खुले में शौच की परंपरा बंद हो। इसके लिए सरकार की ओर से सामुदायिक एवं व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है, लेकिन इसमें भी जनसहभागिता जरूरी है।
शौच में रोग प्रसार करने वाले करोड़ों विषाणु, रोगाणु होते हैं। खुले में शौच करने से वे विषाणु पानी द्वारा खाने के माध्यम से हमारे पेट में जाते हैं और बीमारियां बढ़ाते हैं। इसलिए बचपन से ही बच्चों में साफ-सफाई की आदत डालनी चाहिए। उन्हें खुले में शौच के लिए कभी भी आदेशित नहीं करना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार की ओर से शौचालयों के निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन शौचालयों का निर्माण ही पर्याप्त नहीं है। आवश्यकता लोगों की मानसिकता में बदलाव लाने की है। समाज के जागरूक लोग इस दिशा में प्रयास कर लोगों को बताए कि खुले में शौच के दुष्परिणाम क्या हैं। तभी समग्र स्वच्छता अभियान के उद्देश्य की पूर्ति होगी।
बच्चों को जागरूक करने की जरूरत
स्वच्छता के मुद्दे पर बच्चों को जागरूक किया जा रहा है, लेकिन उनकी जागरूकता को और बढ़ाने की जरूरत है। बच्चे रैली निकाल कर लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक तो करते हैं, लेकिन अध्यापकों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि क्या बच्चे खुद स्वच्छता का जो संदेश दे रहे हैं, उसे अपनाते हैं या नहीं। जिस दिन विद्यालयों के अध्यापकों एवं आंगनबाड़ी अथवा अन्य संस्थाओं से जुड़े लोगों ने स्वच्छता के मुद्दे पर गंभीरता दिखानी शुरू कर दी, उसी दिन से यह अभियान हकीकत में बदलता दिखने लगेगा। क्योंकि स्कूलों में सिर्फ शौचालय बनवा देना पर्याप्त नहीं है बल्कि बच्चों को उसके प्रति जागरूक करना अहम है।
सरकारी प्रयास
संपूर्ण स्वच्छ पर्यावरण का सृजन- सरकार की कोशिश है कि वर्ष 2017 तक एक स्वच्छ परिवेश की प्राप्ति और खुले स्थान पर मल त्याग की प्रथा पूरी तरह से खत्म कर दी जाए। मानव मल अपशिष्ट का सुरक्षित रूप से प्रबंधन और निपटान किया जाना जरूरी है।
उन्नत स्वच्छता प्रथाएं अपनाना- केंद्र सरकार की ओर से वर्ष 2020 तक ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले सभी लोगों को, खासतौर पर बच्चों और देखभालकर्ताओं द्वारा हर समय सुरक्षित स्वच्छता प्रथाएं अपनाने हेतु पूरी तरह से जागरूक करने का लक्ष्य रखा गया है।
ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन- इसी तरह वर्ष 2022 तक देश की हर ग्राम पंचायत में ठोस और तरल अपशिष्ट का प्रभावी प्रबंधन करने की व्यवस्था का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इन बातों पर व्यक्तिगत तौर पर रखें विशेष ध्यान
1. शौचालयों का पर्याप्त उपयोग करें तथा मलमूत्र के उचित प्रबंधन व निपटान पर पर्याप्त ध्यान दें।
2. भोजन करने से पहले व बाद में हाथ धोएं।
3. शौचालय का प्रयोग करने के बाद सदैव अपने हाथ साबुन या राख से अच्छी तरह धोएं।
4. कभी भी लम्बे समय तक खुले बर्तनों में पानी इकट्ठा न करें। बर्तन का प्रयोग करने से पहले उसे अच्छी तरह पानी से धो लें।
5. भोजन को सदैव दूषित जल एवं भूमि के संपर्क से बचाकर दूर सुरक्षित रखना चाहिए। मांस व दूध उत्पादनों को सुरक्षित रखने के लिए, विशेषकर जहां शीतागार की सुविधा नहीं है, विशेष सावधानी बरतने की जरुरत होती है।
6. खुले में रखे खाद्य पदार्थों को खाने से परहेज करें।
7. अक्सर घरों में तमाम कूड़ा भरा रहता है। पुरानी, टूटी, रद्दी, बेकार चीजें घर में भरी रहती हैं। ये कई बार सड़ती रहती हैं, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया जाता। इसकी वजह से घर का वातावरण प्रभावित होता है। ऐसे में लोगों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि घर में जो कबाड़ रखा है, वह उपयोगी नहीं है तो उसका निस्तारण करें।
गांवों में भी लगे पॉलीथीन पर प्रतिबंध
ग्रामीण इलाके में पर्यावरण प्रदूषण के मामले में एक बड़ी समस्या पॉलीथीन की सामने आ रही है। पॉलीथीन के दुष्परिणामों को देखते हुए अदालत के निर्देश पर सरकार की ओर से इसके प्रयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके बाद भी गांवों में लोग प्रयोग कर रहे हैं। हर व्यक्ति को यह जानना होगा कि जिस पॉलीथीन को वे अपनी सुविधा के लिए प्रयोग कर रहे हैं वह उनके और उनके परिवार के लिए जानलेवा है। पॉलीथीन से पर्यावरण को ही खतरा नहीं है बल्कि हमारे जीवन को भी खतरा है। यही वजह है कि सरकार की ओर से इस पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है। ऐसे में हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह पॉलीथीन का प्रयोग बंद कर दे। पॉलीथीन के उपयोग पर तभी पूरी तरह से रोक लग सकती है जब खुद लोग इसके लिए मानसिक रूप से तैयार होंगे। हालांकि लोगों को यह बताया जा रहा है कि किस प्रकार पॉलीथीन स्वास्थ्य, प्रदूषण सहित अन्य के लिए जिम्मेदार है। इसके लिए इससे दूरी बनाना अति आवश्यक है। नष्ट न होने के कारण यह भूमि की उर्वरक क्षमता को खत्म कर रहा है। यह भूजल स्तर को घटा रहा है और उसे जहरीला बना रहा है। पॉलीथीन का प्रयोग सांस और त्वचा संबंधी रोगों तथा कैंसर का खतरा बढ़ाता है। इतना ही नहीं, यह गर्भस्थ शिशु के विकास को भी रोक सकता है। पॉलीथीन को जलाने से निकलने वाला धुआं ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचा रहा है, जो ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा कारण है। पॉलीथीन कचरे से देश में प्रतिवर्ष लाखों पशु-पक्षी मौत का ग्रास बन रहे हैं। लोगों में तरह-तरह की बीमारियां फैल रही हैं। प्लास्टिक के ज्यादा संपर्क में रहने से लोगों के खून में थेलेट्स की मात्रा बढ़ जाती है। पॉलीथीन का नियमित प्रयोग करने से बिस्फेनॉल रसायन शरीर में डायबिटीज व लिवर एंजाइम को असामान्य कर देता है। पॉलीथीन कचरा जलाने से कार्बन-डाई-ऑक्साइड, कार्बन-मोनो-ऑक्साइड एवं डाइ-ऑक्सीन्स जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं। इनसे सांस, त्वचा आदि की बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है।
हालांकि पॉलीथीन बैग पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद इसके आकार को लेकर बहस छिड़ गई है। 0.6 मिलीमीटर से पतले पॉलीथीन से सीवर व नाले-नालियां जाम हो जाती हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, मोटे पॉलीथीन बैग को भी तीन बार ही रिसाइकिल कर इस्तेमाल किया जा सकता है। विशेषज्ञों की राय है कि प्लास्टिक कचरे के जमीन में दबने की वजह से वर्षा जल का भूमि में संचरण नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप भूजल स्तर गिरने लगता है।
रंगीन पॉलीथीन मुख्यतः लेड, ब्लैक कार्बन, क्रोमियम, कॉपर आदि के महीन कणों से बनता है जो जीव-जंतुओं व मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए घातक है। पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं कि मोटी पॉलीथीन में कार्बन और हाइड्रोजन की विशेष यूनिट होती है। यही कारण है कि मोटा पॉलीथीन सड़ता नहीं है। ऐसे में पॉलीथीन से बचने के लिए ग्रामीण इलाके में भी जन-जागरूकता की जरूरत है।
जो लोग पॉलीथीन के खतरे से वाकिफ हैं वे अपने पड़ोसियों को पॉलीथीन के खतरे के बारे में बताएं। उन्हें समझाएं कि पॉलीथीन का प्रयोग करने की वजह से किस तरह यह जान का दुश्मन बना हुआ है। चूंकि कोई भी व्यक्ति उदाहरण के तौर पर बाजार से पॉलीथीन में सब्जी ले आता है तो वह सिर्फ अकेले उससे प्रभावित नहीं होता है। वह पॉलीथीन में लाई गई सामग्री को प्रयोग करने के बाद खाली पॉलीथीन को कूड़े-करकट में फेंक देता है। यह नष्ट नहीं होती इस वजह से यदि जलाई भी जाती है तो उसकी गंध समूचे वातावरण में फैलती है वह हम सभी के लिए खतरा बनती है।
(लेखक अधिवक्ता एवं शैक्षिक संस्था से जुड़े हैं। ई-मेल: umarfaruqui.faruqi@gmail.com)