अनिद्रा

Submitted by Hindi on Thu, 07/28/2011 - 10:29
अनिद्रा या उन्निद्र रोग (इनसॉम्निया) में रोगी को पर्याप्त और अटूट नींद नहीं आती, जिससे रोगी को आवश्यकतानुसार विश्राम नहीं मिल पाता और स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बहुधा थोड़ी सी अनिद्रा से रोगी के मन में चिंता उत्पन्न हो जाती है, जिससे रोग और भी बढ़ जाता है। अनिद्रा चार प्रकार की होती है: (1) बहुत देर तक नींद न आना, (2) सोते समय बार बार निद्राभंग होना और फिर कुछ देर तक न सो पाना, (3) थोड़ा सोने के पश्चात्‌ शीघ्र ही नींद उचट जाना और फिर न आना, तथा (4) बिल्कुल ही नींद न आना।

अनिद्रा रोग के कारण दो वर्गो के हो सकते है: शारीरिक और मानसिक। पहले में आसपास के वातावरण का कोलाहल, बहुमूत्रता, खुजलाहट, खाँसी तथा कुछ अन्य शारीरिक व्याधियाँ, शारीरिक पीड़ा ओर प्रतिकुल ऋतु (अत्यंत गर्मी, अत्यंत शीत, इत्यादि) हैं। दूसरे प्रकार के कारणों में आवेग, जैसे क्रोध, मनस्ताप , अवसाद, उत्सुकता, निराशा, परीक्षा, नूतन प्रेम, अतिहर्ष और अतिखेद आदि हैं। ये अवस्थाएँ अल्पकालिक होती हैं और साधारणत: इनके लिए चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती। घोर संताप या खिन्नता का उन्माद, मनोवैकल्य, संभ्रमात्मक विक्षिप्तता तथा उन्मत्तता भी अनिद्रा उत्पन्न करती हैं। वृद्धावस्था या अधेड़ अवस्था में मानसिक अवसाद के अवसरों पर, कुछ लोगों की, नींद बहुत पहले ही खुल जाती है और फिर नहीं आती, जिससे व्यक्ति चिंतित और अधीर हो जाता है। ऐसी अवस्थाओं में विद्युत्‌ झटकों (इलेक्ट्रोशॉक) की चिकित्सा बहुत उपयोगी होती है। इससे किसी प्रकार की हानि होने की कोई आशंका नहीं रहती। पीड़ा अथवा किसी रोग से उत्पन्न अनिद्रा के लिए अवश्य ही मूल कारण को ठीक करना आवश्यक है। अन्य प्रकार की अनिद्रा की चिकित्सा समोहक और शामक (सेडेटिव) औषधियों से अथवा मनोवैज्ञानिक और शारीरिक सुविधाओं के अनुसार की जाती है।

विकृत चेतना और उन्माद के रोगियों में एक विशेष लक्षण यह होता है कि अकारण ही उन्हें चिंता बनी रहती है। बुढ़ापे तथा अन्य कारणों से मस्तिष्क-अवनति में, अच्छी नींद आने पर भी लोग बहुधा शिकायत करते हैं कि नींद आई ही नहीं।

Hindi Title


विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
1 -

2 -

बाहरी कड़ियाँ
1 -
2 -
3 -