पृथ्वी अनेकों रहस्यों से भरी पड़ी है। इन रहस्यों को खोजने के लिए ही विज्ञान की सहायता ली जाती है। विज्ञान एक रहस्य से पर्दा उठाता है तो दूसरा रहस्य सामने आकर खड़ा हो जाता है, लेकिन विज्ञान इस चुनौती को हमेशा स्वीकार करता आया है और लगातार रहस्यों की खोज में लगा रहता है। इस बार अंटार्कटिका में 9 करोड़ साल पुराने एक जंगल की खोज करने में सफलता पाई है।
वर्ष 2017 में अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम को पश्चिमी अंटार्कटिका के पाइन आईलैंड ग्लेशियर के पास समुद्र तल पर बर्फ के नीचे कुछ अवसाद मिले थे। इसे देखते ही वैज्ञानिक समझ गए कि ये कोई सामान्य चीज नहीं है। अवसाद की एक सतह अलग ही रंग की थी, जो करीब 9 करोड़ साल पुरानी थी। इसे लैब में लाकर कंप्यूटर टोपोग्राफी स्कैनर से जांच की गई। डिजीटल इमेज से पता चला कि इसकी पूरी मिट्टी की जड़ों का एक घना जाल है। ये मिट्टी कोई सामान्य मिट्टी नहीं, बल्कि इसमें पुरातन काल के पराग, बीज और पौधों के अवशेष भी मिले। बताया जा रहा है कि ये अवशेष क्रिटेशियस काल के हैं। क्रिटेशियस काल को 14 करोड़ से 6 करोड़ साल पहले तक का युग माना जाता है।
शोध में पेलियोकोलाॅजिस्ट शोधकर्ता उलरिच साल्जमैन ने बताया कि पश्चिमी अंटार्कटिका में लगभग 9 करोड़ साल पहले सघन और समृद्ध शीतोष्ण वर्षावन रहे थे। ऐसे वन फिलहाल न्यूजीलैंड में पाए जाते हैं। क्रिटेशियस काल को डायनासोर का काल कहा जाता है। उस दौरान धरनी पर विशालकाय डायनासोर विचरण करते थे। उस दौरान वार्षिक औसत तापमान 12 डिग्री सेलसियस था। गर्मी में तापमान 19 डिग्री तक होता था। जबकि पानी के जलाशयों में 20 डिग्री तक तापमान रहता था। शोध से एक और अहम बात निकलकर सामने आई है कि कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसें तापमान इतना ज्यादा बढ़ाने में सक्षम हैं, जहां आज बर्फीला अंटार्कटिका है, वहां वहीं वर्षावन हुआ करता था। चार महीनों तक अंटार्कटिका में सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती है, तो वहां औसत तापमान इतना ज्यादा कैसे है। ऐेसे में वैज्ञानिकों का तर्क है कि उस समय वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड ज्यादा होने के कारण पृथ्वी का तापमान ज्यादा था। ऐसे में शोधकर्ताओं का कानना है कि अंटार्कटिका की बर्फ की चादर हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है।
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