अंतरराष्ट्रीय ताप मापक्रम का निर्धारण सन् १९२७ ई. में एक अंतरराष्ट्रीय कमेटी ने ऊष्मागतिकीय मापक्रम को क्रियात्मक रूप देने के लिए किया। गैस तापमान में अनेक प्रयोगवर्ती कठिनाइयों के कारण ऐसे मापक्रम को निर्धारित करने की आवश्यकता हुई। यह हमारे वर्तमान ज्ञान की सीमा तक ऊष्मागतिकीय मापक्रम से एकदम मिलता है और साथ ही सरलता से और बारीकी से पुनर्स्थापनीय भी है। इसके आधार अनेक पुनर्स्थापनीय बिंदु हैं जिन्हें सांख्यिक मान दे दिए गए हैं और उनके बीच के तापों के लिए यह तय कर लिया गया है कि निम्नलिखित प्रकार से विभिन्न तापमापियों के पाठों को मानक रूप में स्वीकृति दी जाएगी।
1. ० सें. ६६० सें.–मानक प्लैटिनम प्रतिरोध तापमापी, जिसे ० , १०० , और गंधक के क्वथनांक पर अंशित किया गया हो।
2. (२) १९० सें. से ० सें.- प्लेटिनम प्रतिरोध तापमापी जिसके द्वारा ताप इस सूत्र से प्राप्त किया जाए-
जिसके नियतांक बर्फ, भाप, गंधक और ऑक्सीजन बिंदुओं पर अंशन द्वारा प्राप्त किए गए हों।
3. ६६० सें. से १०६३ सें.-प्लैटिनम; प्लैटिनम रेडियम युग्म जिसमें ताप के लिए सूत्र होगा-
जिसके नियतांक ऐंटीमनी के हिमांक तथा चाँदी और सोने के बिंदुओं से प्राप्त होंगे।
4. १०६३ सें. से ऊपर- प्रकाश उत्तापमापी (ऑप्टिकल पीरोमीटर) जिसे सोने का बिंदु पर अंशित किया जाए।
यह अंतरराष्ट्रीय मापक्रम ऊष्मागतिकीय मापक्रम के मानों को स्थानांतरित नहीं करता अपितु व्यावहारिक क्षेत्र में अधिकांश कार्यों के लिए उसका
पर्याप्त यथार्थता से प्रतिनिधित्व करता है। (नि. सिं.)
1. ० सें. ६६० सें.–मानक प्लैटिनम प्रतिरोध तापमापी, जिसे ० , १०० , और गंधक के क्वथनांक पर अंशित किया गया हो।
2. (२) १९० सें. से ० सें.- प्लेटिनम प्रतिरोध तापमापी जिसके द्वारा ताप इस सूत्र से प्राप्त किया जाए-
जिसके नियतांक बर्फ, भाप, गंधक और ऑक्सीजन बिंदुओं पर अंशन द्वारा प्राप्त किए गए हों।
3. ६६० सें. से १०६३ सें.-प्लैटिनम; प्लैटिनम रेडियम युग्म जिसमें ताप के लिए सूत्र होगा-
जिसके नियतांक ऐंटीमनी के हिमांक तथा चाँदी और सोने के बिंदुओं से प्राप्त होंगे।
4. १०६३ सें. से ऊपर- प्रकाश उत्तापमापी (ऑप्टिकल पीरोमीटर) जिसे सोने का बिंदु पर अंशित किया जाए।
यह अंतरराष्ट्रीय मापक्रम ऊष्मागतिकीय मापक्रम के मानों को स्थानांतरित नहीं करता अपितु व्यावहारिक क्षेत्र में अधिकांश कार्यों के लिए उसका
पर्याप्त यथार्थता से प्रतिनिधित्व करता है। (नि. सिं.)
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