अरावली वस्तुत: एक भंजित पर्वत है जो पृथ्वी के इतिहास के आरंभिक काल में ऊपर उठा था। यह पर्वतश्रेणी राजस्थान में लगभग 400 मील की लंबाई में उत्तर पूर्व से लेकर दक्षिण पश्चिम तक फैली है। इसकी औसत ऊँचाई समुद्रतल से 1,000 फुट से लेकर 3,000 फुट तक है और उच्चतम शिखर दक्षिणी भाग में स्थित आबू पर्वत है (ऊँचाई 5,650 फुट)। यह श्रेणी दक्षिण की ओर अधिक चौड़ी है और अधिकतम चौड़ाई 60 मील है। इस पर्वत का अधिकांश भाग वनस्पतिहीन है। आबादी विरल है। इसके विस्तृत क्षेत्र, विशेषकर मध्यस्थ घाटियाँ, बालू के मरुस्थल हैं। इस पर्वत की शाखाएँ पथरीली श्रेणियों के रूप में जयपुर और अलवर होकर उत्तर पूर्व में फैली हैं। उत्तर पूर्व की ओर इनका क्रम दिल्ली के समीप तक चला गया है, जहाँ ये क्वार्टज़ाईट की नीची, विच्छिन्न पहाड़ियों के रूप में दृष्टिगोचर होती हैं।
राजस्थान में आदिकल्प (आर्कियोज़ोइक) के धारवार (ह्मरोनियन) काल में अवसादों (सेडिमेंट्स) का निक्षेपण हुआ और धारवार युग के अंत में पर्वतकारक शक्तियों द्वारा विशाल अरावली पर्वत का निर्माण हुआ। ये संभवत: विश्व के ऐसे प्राचीनतम भंजित पर्वत हैं जिनमें श्रृंखलाओं के बनने का क्रम इस समय भी विद्यमान है।
अरावली पर्वत का उत्थान पुन: पुराकल्प (पैलिओज़ोइक एरा) में प्रारंभ हुआ। पूर्वकाल में ये पर्वत दक्षिण के पठार से लेकर उत्तर में हिमालय तक फैले थे और अधिक ऊंचे उठे हुए थे। परंतु अपक्षरण द्वारा मध्यकल्प (मेसोज़ोइक एरा) के अंत में इन्होंने स्थलीयप्राय रूप धारण कर लिया। इसके पश्चात् तृतीयक कल्प (टर्शियरी एरा) के आरंभ में विकुंचन (वापिंग) द्वारा इस पर्वत ने वर्तमान रूप धारण किया और इसमें अपक्षरण द्वारा अनेक समांतर विच्छिन्न श्रृखलाएँ बन गईं। इन श्रृंखलाओं की ढाल तीव्र है और इनके शिखर समतल हैं। यहाँ पाई जानेवाली शिलाओं में स्लेट, शिस्ट, नाइस, संगमरमर, क्वार्टज़ाईट, शेल और ग्रैनाइड मुख्य हैं।
राजस्थान में आदिकल्प (आर्कियोज़ोइक) के धारवार (ह्मरोनियन) काल में अवसादों (सेडिमेंट्स) का निक्षेपण हुआ और धारवार युग के अंत में पर्वतकारक शक्तियों द्वारा विशाल अरावली पर्वत का निर्माण हुआ। ये संभवत: विश्व के ऐसे प्राचीनतम भंजित पर्वत हैं जिनमें श्रृंखलाओं के बनने का क्रम इस समय भी विद्यमान है।
अरावली पर्वत का उत्थान पुन: पुराकल्प (पैलिओज़ोइक एरा) में प्रारंभ हुआ। पूर्वकाल में ये पर्वत दक्षिण के पठार से लेकर उत्तर में हिमालय तक फैले थे और अधिक ऊंचे उठे हुए थे। परंतु अपक्षरण द्वारा मध्यकल्प (मेसोज़ोइक एरा) के अंत में इन्होंने स्थलीयप्राय रूप धारण कर लिया। इसके पश्चात् तृतीयक कल्प (टर्शियरी एरा) के आरंभ में विकुंचन (वापिंग) द्वारा इस पर्वत ने वर्तमान रूप धारण किया और इसमें अपक्षरण द्वारा अनेक समांतर विच्छिन्न श्रृखलाएँ बन गईं। इन श्रृंखलाओं की ढाल तीव्र है और इनके शिखर समतल हैं। यहाँ पाई जानेवाली शिलाओं में स्लेट, शिस्ट, नाइस, संगमरमर, क्वार्टज़ाईट, शेल और ग्रैनाइड मुख्य हैं।
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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)
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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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