परिचय
दलहनी फसलों में हमारे प्रदेश में चने के बाद अरहर का स्थान है। यह फसल अकेली तथा दूसरी फसलों के साथ भी बोई जाती है। ज्वार, बाजरा, उर्द और कपास अरहर के साथ बोई जाने वाली प्रमुख फसलें है। हमारे शरीर की उत्पादकता अखिल भारतीय औसत से ज्यादा है। सघन पद्घतियों को अपनाकर इसे और बढ़ाया जा सकता है।
मिट्टी की स्थिति
अरहर की फसल के लिए बलुई दोमट भूमि अच्छी होती है। उचित जल निकास तथा हल्के ढालू खेत अरहर के लिए सर्वोत्तम होते है। लवणीय तथा क्षारीय भूमि में इसकी खेती सफलतापूर्वक नहीं की जा सकती है।
किस्में
अरहर की प्रजातियो का विस्तृत विवरण निम्नवत् है
क्र.स. | प्रजाति | बोने का उपयुक्त समय | पकने की अवधि (दिनों में) | उपज (कु./उपयुक्त क्षेत्र एवं विशेषताएं हे.) |
क. अगेती प्रजातियां | ||||
1. | पारस | जून प्रथम सप्ताह | 130-140 | 18-20 उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में इस प्रजाति की फसल ली जा सकती है। |
2. | यू.पी.ए.एस.120 | जून प्रथम सप्ताह | 130-135 | 16-20 सम्पूर्ण उ.प्र. (मैदानी क्षेत्र) नवम्बर में गेहूं बोया जा सकता है। |
3. | पूसा 192 | जून प्रथम सप्ताह | 130-160 | 16-20 उ.प्र. के लिए उपर्युक्त |
4. | टा-21 | अप्रैल के प्रथम सप्ताह तथा जून के प्रथम सप्ताह | 160-170 | 16-20 सम्पूर्ण उ.प्र. के लिए उपयुक्त |
देर से पकने वाली प्रजातियाँ (260-275 दिन) | ||||
5 | बहार | जुलाई | 250-260 | 25-30 सम्पूर्ण उ.प्र. बंझा रो अवरोधी |
6. | अमर | जुलाई | 260-270 | 25-30 सम्पूर्ण उ.प्र. बंझा रोग अवरोधी मिश्रित खेती के लिए उपयुक्त |
7. | नरेन्द्र अरहर-1 | जुलाई | 260-270 | 25-30 सम्पूर्ण उ.प्र. बंझा रोग अवरोधी एवं उकठा मध्यम अवरोधी |
8 | आजाद | जुलाई | 260-270 | 25-30 तदैव |
9. | पूसा-9 | जुलाई | 260-270 | 25-30 बंझा अवरोधी सितम्बर में बुवाई के लिए उपयुक्त |
10 | पी.डी.ए.-11 | सितम्बर का प्रथम पखवारा | 225-240 | 18-20 तदैव |
11. | मालवीय विकास (एम.एल.6) | जुलाई | 260-270 | 25-30 उकठा एवं बंझा अवरोधी |
12. | मालवीय चमत्कार (एम.ए.एल. 13 | जुलाई | 230-250 | 30-32 बंझा अवरोधी |
13. | नरेन्द्र अरहर 2 | जुलाई | 240-245 | 30-32 बंझा एवं उखठा अवरोधी सम्पूर्ण उ.प्र. |
खेत की तैयारी:
खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 जुताईयाँ देशी हल से करनी चाहिये। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिये।
बुवाई का समय
देर से पकने वाली प्रजातियाँ जो लगभग 270 दिन में तैयार है की बुवाई जुलाई माह में करनी चाहिये। शीघ्र पकने वाली प्रजातियों को सिंचित क्षेत्रों में जून के मध्य तक बो देना चाहियें। जिससे यह फसल नवम्बर के अन्त तक पक कर तैयार हो जाये और दिसम्बर के प्रथम पखवारे में गेहूँ की बुवाई सम्भव हो सके। अधिक उपज लेने के लिए टा-21 प्रजाति को अप्रैल प्रथम पखवारे में (प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में तराई को छोड़कर) ग्रीष्म कालीन मूंग के साथ सह फसल के रूप में बोने के लिए जायद में बल दिया जा चुका है। इसके दो लाभ है।
• फसल नवम्बर के मध्य तक तैयार हो जाती है। एवं गेहूँ की बुवाई में देर नही होती है।
• इसकी उपज जून में (खरीफ) बोई गई फसल से अधिक होती है।
• मेड़ों पर बोने से अच्छी उपज मिलती है।
बीज का उपचार
सर्वप्रथम एक किग्रा बीज को 2 ग्राम थीरम तथा एक ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें। बोने से पहले हर बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। एक पैकेट 10 किग्रा. बीज के ऊपर छिडक कर हल्के से मिलाये जिससे बीज के ऊपर एक हल्की पर्त बन जायें। इस बीज की बुवाई तुरन्त करे। तेज धूप से कल्चर के जीवाणु के मरने की आशंका रहती है। ऐसे खेतों में जहॉ अरहर पहली बार काफी समय बाद बोई जा रही हो। कल्चर का प्रयोग अवश्य करे।
बीज की मात्रा तथा बुवाई विधि
बुवाई हल के पीद्दे कूंडो में करनी चाहिये। प्रजाति तथा मौसम के अनुसार बीज की मात्रा तथा बुवाई की दूरी निम्न प्रकार रखनी चाहियें। बुवाई के 20-25 दिन बाद पौधे की दूरी सघन पौधे का निकालकर निश्चित कर देनी चाहियें।
बुवाई का समय
प्रजाति | बुवाई का समय | बीज की दर कि.ग्रा./हे. बुवाई की दूरी पंक्ति (सेमी.) पौधे से पौधे (से.मी.) | ||
टा-21 (शुद्ध फसल हेतु) | जून का प्रथम पखवारा | 12-15 | 60 | 20 |
टा-21 (मिश्रित फसल हेतु) | अप्रैल का प्रथम पखवारा | 12-15 | 75 | 20 |
यू.पी.ए.एस.-120 (शुद्ध फसल हेतु) | मध्य जून | 15 | 45-60 | 20 |
आई.सी.पी.एल-151 | मध्य जून | 20-25 | 45 | 20 |
नरेंद्र-1 | जुलाई प्रथम सप्ताह | 15-20 | 60 | 20 |
अमर | जुलाई प्रथम सप्ताह | 15-20 | 60 | 20 |
बहार | जुलाई प्रथम सप्ताह | 15-20 | 60 | 20 |
आजाद | जुलाई प्रथम सप्ताह | 15 | 90 | 30 |
मालवीय, विकास, नरेन्द्र अरहर-2, पूसा बहार-9 | जुलाई प्रथम सप्ताह | 15 | 90 | 30 |
पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाढ़ या लगातार वर्षा के कारण बुवाई में विलम्ब होने की दशा में सितम्बर के प्रथम पखवारे में बहार की शुद्घ फसल के रूप में बुवाई की जा सकती है। परन्तु कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं बीज की मात्रा 20-25 किग्रा/हे. की दर से प्रयोग करना चाहिये।
पोषक तत्व प्रबंधन
अरहर की अच्छी उपज लेने के लिए 10-15 किग्रा. नाइट्रोजन, 40-45 किग्रा. फास्फोरस तथा 20 किग्रा. सल्फर की प्रति हे. आवश्यकता होती है। अरहर की अधिक से अधिक उपज के लिए फास्फोरस युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फास्फेट डाई अमोनिया फास्फेट का प्रयोग करना चाहिये। सिंगिल सुपर फास्फेट प्रति हे. 250 किग्रा. या 100 किग्रा. डाई अमोनिया फास्फेट तथा 20 किग्रा. सल्फर पंक्तियों में बुवाई के समय चोंगा या नाई की सहायता से देना चाहिये, जिससे उर्वरकों का बीज के साथ सम्पर्क न हो। यह उपयुक्त होगा कि फास्फोरस की सम्पूर्ण मात्रा सिगिंल सुपर फास्फेट से दी जायें जिससे 12 प्रतिशत सल्फर की पूर्ति भी हों सके। यूरिया खाद की थोड़ी मात्रा (15-20 किग्रा. प्रति हे.) केवल उन खेतों में जो नाइट्रोजन तत्व में कमजोर हो देना चाहिये। उर्द जैसे सह-फसलों को अरहर के लिए प्रयुक्त खाद की आधी मात्रा दें। ज्वार तथा बाजरा की सह फसली के रूप में बुवाई के समय उनकी पंक्तियां में 20 किग्रा. नाइट्रोजन प्रति हे. की दर से दें। तथा एक महीना बाद 10 किग्रा. नाइट्रोजन प्रति हे. की टापडे्रेसिंग करे। सितम्बर में बुवाई हेतु 30 से 40 किग्रा. प्रति हे. नाइट्रोजन के प्रयोग से अच्छी उपज प्राप्त होती है।
जल प्रबंधन:
अरहर टा-21 तथा यू.पी.ए.एस. 120 तथा आई.सी.पी.एल.-151 को पलेवा करके तथा अन्य प्रजातियां को वर्षाकाल में पर्याप्त नमी होने पर बोना चाहियें। खेत में कम नमी की अवस्था में एक सिचाई फलियां बनने के समय अक्टूबर माह में अवश्य की जाय। देर से पकने वाली प्रजातियों में पाले से बचाव हेतु दिसम्बर या जनवरी माह में सिंचाई करना लाभप्रद रहता है।
खरपतवार प्रबंधन:
वर्षा काल में खरपतवारों की बढवार लगभग तीन चार सप्ताह बाद काफी हो जाती है। अतः बुवाई के एक माह के अन्दर ही एक निराई करनी चाहिये। यदि अरहर की शुद्घ खेती की गयी है तो दूसरी निराई पहली के 20 दिन बाद करना आवश्यक होगा। घांस तथा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को रासायनिक विधि से नष्ट करने के लिए पेंडामैथलीन (30 ई.सी.) 3.3 लीटर या एलाक्लोर (50 ई.सी.) 4 लीटर मात्र को 700-८00 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरन्त बाद पाटा लगाकर जमाव से पूर्व द्दिडकाव करे अथवा फ्लूक्लोरोलिन (45 ई.सी.) 2.2 लीटर को आवश्यक पानी में घोलकर आखिरी जुताई के पहले भूमि पर द्दिडकाव करके मिट्टी मे मिला दें।
अरहर का उकठा रोंग
पहचान : यह फ्यूजेरियम नामक कवक से फैलता है। यह पौधो में पानी व खाद्य पदार्थ के संचार को रोक देता है। जिससे पंत्तियां पीली पडकर सूख जाती है। और पौधा सूख जाता है। इसमें जडे सडकर गहरे रंग की हो जाती है। तथा छाल हटाने पर जड से लेकर तने की ऊचाई तक काले रंग की धारियां पाई जाती है।
उपचार :
1. जिस खेत मे उकठा रोग का प्रकोप अधिक हो उस खेत में 3-4 साल तक अरहर की फसल नही लेना चाहिये।2. ज्वर के साथ अरहर की सहफसल लेने से किसी हद तक उकठा रोग का प्रकोप कम हो जाता है।3. थीरम एवं कार्बेन्डाजिम को 2:1 के अनुपात में मिलाकर 3 ग्राम प्रति हे. किग्रा. बीज उपचारित करना चाहियें।4. ट्राईकोडरमा 4 ग्राम/किग्रा. बीज को उपचारित करना चाहिये।
अरहर का बन्झा रोग
पहचान : ग्रसित पौधों में पत्तियों अधिक लगती है। फूल नही आते जिससे दाना नही बनता है। पत्तियों द्दोटी तथा हल्की रंग की हो जाती है। यह रोग माइट द्वारा फैलता है।
उपचार :
1. इसका अभी कोई प्रभावकारी रासयनिक उपचार नही निकला है।
2. जिस खेत में अरहर बोना हो उसके आसपास अरहर के पुराने एंव स्वंय उगे हुये पौधे के नष्ट कर देना चाहियें।
फली बेधक कीट
पहचान :
इनकी गिडारे फलियों के अन्दर घुसकर हानि पहुंचाती है। क्षतिग्रस्त फलियों में छिद्र दिखाई देते है।
उपचार:
इसकी रोकथाम हेतु निम्न में से किसी एक कीटनाशक रसायन का द्दिडकाव फसल में फूल आने पर करना चाहिये। यदि आवश्कता हो तो इसका द्दिडकाव 15 दिन बाद करें।
• इन्डोसल्फान (35 ई.सी.) 1.5 प्रति हे. का घोल बनाकर छिडकाव करें।
• फेनवेलरेट 20 ई.सी. का 750 मिली. अथवा साइपरमैथरिन 20 ई.सी. का 400 मिली. प्रति हेक्टर।
• इन्डोसल्फान 4 प्रतिशत या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत अथवा फेनवाल 0.4 प्रतिशत धूल 25 किग्रा./हे.।
• एन.पी. वी. 350 इल.ई. प्रति हे.
• निबोली 5 प्रतिशत + 1 प्रतिशत साबुन घोल।
• बैसिलस थूरिन्जेंसिस 1 किग्रा./ हे. या बी टी 0.5-10 किग्रा./ हे.।
पत्ती लपेटक कीट
पहचान :
सूंडियां पीले रंग की होती है जो पौधे की चोटी की पत्तियों को लपेटकर सफेद जाला बुनकर उसी में छुपकर पत्तियां को खाती है। बाद में फलों एवं फलियों को भी नुकसान पहुंचाती है।
उपचार :
इसकी रोकथाम हेतु निम्न में से किसी एक कीटनाशक का बुरकाव/द्दिडकाव करना चाहियें।
1. मोनोक्रोटोफास (3६ ई.सी.) ८00 मिली प्रति हे. या
2. इन्डोसल्फान (35 ई.सी.) 1.25 लीटर प्रति हे. की दर से।
अरहर की फली मक्खी
पहचान :
फली के अन्दर दाने को खाकर हानि पहुंचाती है।
उपचार :
फूल आने के बाद मोनोक्रोटोफास 3६ ई.सी. या डाईमिथोएट 30 ई.सी. एक लीटर प्रति हे. की दर से प्रभावित फसल पर छिड़काव करें।
सूत्रकृमि:
सूत्रकृमि जनित बीमारी की रोकथाम हेतु गर्मी की गहरी जुताई आवश्यक है।
कम अवधी कि अरहर कि फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन:
1. अरहर के खेत में चिड़ियों के बैठने के लिये बांस की लकड़ी का टी आकार का 10 खपच्ची प्रति हे. के हिसाब से गाड़ दें।
2. जब शत प्रतिशत पौधे में फूल आ गये हो और फली बनना शुरू हो गया हों। उस समय इन्डोसल्फान 0.07 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिये।
3. प्रथम छिड़काव के 15 दिन पश्चात एच.एन.पी.वी. का 500 एल.ई प्रति हे. के हिसाब से छिड़काव करना चाहियें।
4. द्वितीय छिड़काव के 10-15 दिन पश्चात जरूरत के अनुसार निम्बोली के 5 प्रतिशत अर्क का छिड़काव करना चाहिये।
मध्यम एवं लम्बी अवधि की अरहर की फसल में एकीकृत कीट प्रबन्धन :
1. जब शत प्रतिशत पौधों में फूल आ गये हों और फली बनना शुरू हो गया हो। उस समय मोनोक्रोटोफास 0.0४ प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहियें।
2. प्रथम छिड़काव के 10-15 दिन पश्चात डाइमेथोएट 0.0३ प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिये।
3. द्वितीय छिड़काव के 10-15 दिन पश्चात आवश्यकतानुसार निम्बोली के 5 प्रतिशत अर्क या नीम के किसी प्रभावी कीट नाशक का छिड़काव करना चाहियें।
मुख्य बिन्दु:
1. बीज शोधन आवश्यक रूप से किया जाय।
2. सिंगल सुपर फास्फेट का फास्फोरस एवं गन्धक हेतु उपयोग किया जाय।
3. समय से बुवाई की जायें।
4. फली बेधक एवं फली मक्खी का नियंत्रण आवश्यक है।
5. मेड़ों पर बुवाई करनी चाहिये।
इनकी गिडारे फलियों के अन्दर घुसकर हानि पहुंचाती है। क्षतिग्रस्त फलियों में छिद्र दिखाई देते है।
उपचार:
इसकी रोकथाम हेतु निम्न में से किसी एक कीटनाशक रसायन का द्दिडकाव फसल में फूल आने पर करना चाहिये। यदि आवश्कता हो तो इसका द्दिडकाव 15 दिन बाद करें।
• इन्डोसल्फान (35 ई.सी.) 1.5 प्रति हे. का घोल बनाकर छिडकाव करें।
• फेनवेलरेट 20 ई.सी. का 750 मिली. अथवा साइपरमैथरिन 20 ई.सी. का 400 मिली. प्रति हेक्टर।
• इन्डोसल्फान 4 प्रतिशत या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत अथवा फेनवाल 0.4 प्रतिशत धूल 25 किग्रा./हे.।
• एन.पी. वी. 350 इल.ई. प्रति हे.
• निबोली 5 प्रतिशत + 1 प्रतिशत साबुन घोल।
• बैसिलस थूरिन्जेंसिस 1 किग्रा./ हे. या बी टी 0.5-10 किग्रा./ हे.।
पत्ती लपेटक कीट
पहचान :
सूंडियां पीले रंग की होती है जो पौधे की चोटी की पत्तियों को लपेटकर सफेद जाला बुनकर उसी में छुपकर पत्तियां को खाती है। बाद में फलों एवं फलियों को भी नुकसान पहुंचाती है।
उपचार :
इसकी रोकथाम हेतु निम्न में से किसी एक कीटनाशक का बुरकाव/द्दिडकाव करना चाहियें।
1. मोनोक्रोटोफास (3६ ई.सी.) ८00 मिली प्रति हे. या
2. इन्डोसल्फान (35 ई.सी.) 1.25 लीटर प्रति हे. की दर से।
अरहर की फली मक्खी
पहचान :
फली के अन्दर दाने को खाकर हानि पहुंचाती है।
उपचार :
फूल आने के बाद मोनोक्रोटोफास 3६ ई.सी. या डाईमिथोएट 30 ई.सी. एक लीटर प्रति हे. की दर से प्रभावित फसल पर छिड़काव करें।
सूत्रकृमि:
सूत्रकृमि जनित बीमारी की रोकथाम हेतु गर्मी की गहरी जुताई आवश्यक है।
कम अवधी कि अरहर कि फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन:
1. अरहर के खेत में चिड़ियों के बैठने के लिये बांस की लकड़ी का टी आकार का 10 खपच्ची प्रति हे. के हिसाब से गाड़ दें।
2. जब शत प्रतिशत पौधे में फूल आ गये हो और फली बनना शुरू हो गया हों। उस समय इन्डोसल्फान 0.07 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिये।
3. प्रथम छिड़काव के 15 दिन पश्चात एच.एन.पी.वी. का 500 एल.ई प्रति हे. के हिसाब से छिड़काव करना चाहियें।
4. द्वितीय छिड़काव के 10-15 दिन पश्चात जरूरत के अनुसार निम्बोली के 5 प्रतिशत अर्क का छिड़काव करना चाहिये।
मध्यम एवं लम्बी अवधि की अरहर की फसल में एकीकृत कीट प्रबन्धन :
1. जब शत प्रतिशत पौधों में फूल आ गये हों और फली बनना शुरू हो गया हो। उस समय मोनोक्रोटोफास 0.0४ प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहियें।
2. प्रथम छिड़काव के 10-15 दिन पश्चात डाइमेथोएट 0.0३ प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिये।
3. द्वितीय छिड़काव के 10-15 दिन पश्चात आवश्यकतानुसार निम्बोली के 5 प्रतिशत अर्क या नीम के किसी प्रभावी कीट नाशक का छिड़काव करना चाहियें।
मुख्य बिन्दु:
1. बीज शोधन आवश्यक रूप से किया जाय।
2. सिंगल सुपर फास्फेट का फास्फोरस एवं गन्धक हेतु उपयोग किया जाय।
3. समय से बुवाई की जायें।
4. फली बेधक एवं फली मक्खी का नियंत्रण आवश्यक है।
5. मेड़ों पर बुवाई करनी चाहिये।
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