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पर्यावरण प्रदूषण : एक अध्ययन, हिंद-युग्म, नई दिल्ली, अप्रैल 2016
आर्सेनिक एक जहरीली धातु है। यदि इसका उपयोग अधिक मात्रा में किया जाय तो मानव शरीर को नुकसान पहुँचाती है। जैसे दिल, फेफड़े, गुर्दे, दिमाग और त्वचा इत्यादि में तरह-तरह के रोग पैदा हो जाते हैं।
एक सर्वे से पता चला है कि बांग्लादेश के बहुत से ट्यूबवेलों में बहुत अधिक आर्सेनिक होने के कारण पानी उपयोग के लायक नहीं है। एक लीटर पानी में आर्सेनिक की मात्रा 50 माइक्रोग्राम से किसी हालत में अधिक बढ़ना नहीं चाहिए। विगत 5 साल से बांग्लादेश के 64 जिलों में से 59 जिलों में लोग आर्सेनिक प्रदूषित पानी पी रहे हैं। उनके स्वास्थ्य व जीवन को बहुत बड़ा खतरा है। ये आँकड़े आधिकारिक नहीं हैं, सच्चाई इससे भी भयानक है। अब यह मामला बहुत संगीन हो गया है। बहुत से विशेषज्ञों का अनुमान है कि जमीन के अन्दर पानी में जहर का प्रदूषण पिछले 25 साल या इससे भी पहले शुरू हुआ। चूँकि उस बारे में कोई तहकीकात नहीं की गई, इसलिये अब तक इसका पता नहीं चल पाया।
बांग्लादेश से जुड़े पश्चिमी बंगाल में सन 1980 में पानी में आर्सेनिक पाये जाने का पता चला। बांग्लादेश के भूजल स्रोतों में आर्सेनिक के होने का कोई मुख्य कारण अभी तक नहीं मालूम हो सका है। हालाँकि, हेल्थ इंजीनियरिंग विशेषज्ञ और ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे ने इस बारे में कुछ जाँच पड़ताल की। अधिकतर लोगों का ख्याल है कि जमीन के अन्दर होने वाले रासायनिक परिवर्तन के कारण यह हालत उस वक्त पैदा हुई जब आर्सेनिक के अंश ‘आरसिनो पायरेटिश’ की सतह से टूटकर पानी में मिल गये। फिर बड़ी तादाद में हैन्डपम्प और ट्यूबवेल लगाने में ऑक्सीजन के कम्पाउन्ड के प्रयोग से आर्सेनिक के कण पानी में दाखिल हो गये। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालय के पूर्वी ढाल पर चट्टानों के बनने से जो रासायनिक प्रभाव हुए, इसी कारण से जमीन में यह बदलाव हुए। बहरहाल, अभी तक कोई एक कारण वाली बात दावे के साथ नहीं कही जा सकती है।
मानव पर आर्सेनिक का प्रभाव प्रदूषित पानी में इसकी मात्रा पर निर्भर है और इसलिये उनका बहुत जल्दी पता भी नहीं चल पाता। बदन और त्वचा के प्रभाव कभी-कभी 5-10 साल में नजर आते हैं। यानी मात्रा की कमी वे बेशी इस जहर के प्रभाव में खास अहमियत रखती है। आर्सेनिक का प्रभाव पानी पीने के बाद खून में मिल जाता है और इसका सबसे दुष्प्रभाव गर्भवती महिलाओं के गर्भ पर पड़ता है। बच्चे का विकास रुक जाता है। इन महिलाओं का दूध पीने से बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अभी तक आर्सेनिक के जहर का कोई इलाज पता नहीं चला है। बांग्लादेश में एन्टीऑक्सीडेन्ट दवाएँ और विटामिन्स इसके इलाज के लिये उपयोग में लाई गई हैं। जिनके बारे में निम्नलिखित सूचनाएँ मौजूद हैं।
आर्सेनिक के जहरीले प्रभाव के कारण
अगर किसी व्यक्ति ने अधिक आर्सेनिक का उपयोग कर लिया है तो सबसे पहले उसकी त्वचा का रंग बदल जायेगा और त्वचा का रंग बदलने पर सफेद और गहरे काले धब्बे नजर आयेंगे। खासकर हाथ की हथेलियों और पैरों के तलवों पर। शरीर के दूसरे हिस्सों की त्वचा खुरदरी नजर आयेगी। व्यक्ति कमजोरी महसूस करेगा। साँस लेने में परेशानी होगी और वो शुगर, हाई ब्लडप्रेशर का शिकार हो सकता है। आर्सेनिक का जहर प्रदूषित पानी के पीने और जहरीली हवा में साँस लेने के कारण फैलता है।
आर्सेनिक के प्रदूषण से समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव
बांग्लादेश की ‘आर्सेनिक कन्ट्रोल सोसाइटी’ थाना चराघाट, जिला राजशाही ने एक सर्वे से यह पता लगाया कि आर्सेनिक से प्रभावित महिलाओं को समाज अलग-थलग रखता है। उदाहरण के तौर पर नई उमर की लड़कियाँ स्कूल नहीं जा सकतीं। शादी-शुदा औरतों को तलाक देने के उदाहरण मिलते हैं। इस कारण परिवारों और खानदानों में अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते। चूँकि महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कपड़े धोने, खाना पकाने और सफाई के लिये पानी से अधिक वास्ता पड़ता है, इसके लिये इन्हें आर्सेनिक प्रदूषित पानी के नुकसान उठाने पड़ते हैं। खासकर देहातों में जहाँ पानी मिलने के साधन कम होते हैं।
बचाव कैसे करें
कुएँ के पानी को उबालने से आर्सेनिक तो खत्म नहीं होती। अलबत्ता बहुत से रोगों का इलाज हो जाता है, क्योंकि रोगों के बैक्टीरिया मर जाते हैं। आर्सेनिक का पता पानी के रंग, स्वाद या साफ सतह बदल जाने से नहीं चलता, इसके लिये जरूरी है कि पानी के नमूने की जाँच प्रयोगशाला में की जाये। बांग्लादेश के भिन्न-भिन्न इलाकों की मात्रा अलग-अलग है। आमतौर पर 50-100 फुट तक के गहरे ट्यूबवेल के पानी में अधिक आर्सेनिक पाई जाती है। बारिश का पानी कुदरती तौर पर आर्सेनिक से मुक्त होता है और इसमें बीमारी के कीटाणु नहीं पाये जाते। इसलिये अगर इसे ठीक से जमाकर लिया जाये तो साफ-सुथरा पीने के पानी का इन्तजाम हो सकता है, मगर इसमें बीमारियों के कीटाणु होते हैं इसलिये इसको अच्छी तरह से उबाल कर पीने और खाना पकाने के लिये उपयोग करना चाहिये।
आजकल अलग-अलग प्रकार के फिल्टर बाजारों में मिलते हैं, जिनसे पानी से आर्सेनिक को छानकर साफ किया जा सकता है। इस सिलसिले में सरकार और कुछ सलाहकारों ने साफ, पानी सप्लाई करने के प्रोजेक्ट शुरू किये हैं जहाँ बारिश का पानी जमा किया जाता है और जमीन से पानी साफ सुथरी इमारतों में इकट्ठा किये जाते हैं। पानी के छानने और उसे रासायनिक तरीकों से साफ करने के प्रबंध किये जाते हैं।
आर्सेनिक के प्रदूषण की समस्या खतरनाक रूप ले चुकी है। इसके लिये जरूरी है कि डॉक्टर, सामाजिक कार्यकर्ता, इंजीनियर, भू-रसायनशास्त्री और इस दिशा में कार्यरत दूसरी संस्थाएँ मिल-जुलकर मुहिम चलायें ताकि इस बड़ी मुसीबत से आम लोगों को निजात मिले।
पर्यावरण प्रदूषण (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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3 | जल प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य (Water pollution and human health) |
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5 | ध्वनि प्रदूषण और मानव स्वास्थ्य (Sound pollution and human health) |
6 | आर्सेनिक से पर्यावरण में प्रदूषण (Pollution in the environment from Arsenic) |
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10 | रेडियोएक्टिव पदार्थों के कारण प्रदूषण (Radioactive Pollution) |
11 | आतिशबाजी के खेल से पर्यावरण में प्रदूषण (Pollution in the environment by fireworks) |
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