आर्ट ऑफ लिविंग ने जमा कराए 4.75 करोड़ रुपए

Submitted by RuralWater on Tue, 06/07/2016 - 10:24
Source
जनसत्ता, 07 जून, 2016

हम जीते तो लौटाने होंगे रुपए


.आर्ट ऑफ लिविंग ने संकेत दिया कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट में जा सकती है। प्रवक्ता केदार देसाई ने कहा, ‘न्यायिक प्रक्रिया चल रही है और अगर हम जीतते हैं तो पाँच करोड़ रुपए हमें लौटाए जाएँगे।’

नई दिल्ली, 6 जून (भाषा)। दि आर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) फाउंडेशन ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देश पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को 4.75 करोड़ रुपए मुआवजा दे दिया है। इस न्यायाधिकरण ने मार्च में ‘विश्व संस्कृति उत्सव’ दौरान यमुना की जैव विविधता को नुकसान पहुँचाने के लिये एओएल को यह मुआवजा देने के को कहा था।

श्री श्री रविशंकर के आर्ट ऑफ लिविंग ने तीन जून को एक डिमांड ड्राफ्ट के जरिए डीडीए को पर्यावरण मुआवजा दे दिया है। डीडीए के वकील कुश शर्मा ने बताया, ‘आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेशों के मुताबिक तीन जून को 4.75 करोड़ रुपए का डिमांड ड्रॉफ्ट सौंपा है।’

इस हरित अधिकरण ने तीन जून को जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति को यमुना के तट पर उस जगह का 10 जून से पहले निरीक्षण करने का निर्देश दिया था। जहाँ यह तीन दिवसीय उत्सव आयोजित किया गया था। साथ ही उसने चार जुलाई तक एक सीलबन्द लिफाफे में एक सम्पूर्ण और व्यापक रिपोर्ट भी सौंपने को कहा था।

हालांकि, आर्ट ऑफ लिविंग (एओएल) ने सोमवार को इन आरोपों को खारिज कर दिया कि उसके तीन दिवसीय विशाल आयोजन से यमुना के किनारे के क्षेत्र को नुकसान पहुँचा। संस्था ने संकेत दिया कि मुआवजे के तौर पर पाँच करोड़ रुपए अदा करने के राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट में जा सकती है।

एओएल के विधिक और पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा कि वे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील थे और जलसम्भावित क्षेत्र को कभी नुकसान नहीं पहुँचा सकते। उन्होंने पर्यावरण सम्बन्धी कोई नुकसान नहीं होने के दावे के समर्थन में उपग्रह की तस्वीरें भी दिखाईं। एओएल के प्रवक्ता केदार देसाई ने कहा, ‘हमारा कानूनी दल एनजीटी के आदेश का अध्ययन कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट में छुट्टियाँ चल रही हैं। हम जल्द ही उचित कदम उठाएँगे।’

मामला अब भी एनजीटी में विचाराधीन होने की बात करते हुए एओएल के विशेषज्ञों ने कहा कि उन्होंने अधिकरण को अभी अपने साक्ष्य पेश नहीं किये हैं। यमुना किनारे के क्षेत्र को कोई पारिस्थितिकी सम्बन्धी क्षति नहीं पहुँची। देसाई ने कहा, ‘यमुना किनारे जहाँ विश्व संस्कृति महोत्सव हुआ था, वहाँ से आयोजन से पहले और बाद का कोई वैज्ञानिक आकलन नहीं किया गया। न्यायिक प्रक्रिया चल रही है और अगर हम जीतते हैं तो पाँच करोड़ रुपए हमें लौटाया जाएगा।’ पर्यावरण सलाहकार प्रभाकर राव ने 1986 का सर्वे ऑफ इण्डिया का एक नक्शा भी दिखाया और दावा किया कि यमुना किनारे नमभूमि को नुकसान के आरोप गलत हैं क्योंकि वहाँ ऐसी कोई आर्द्र भूमि नहीं है।

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