24 दिसम्बर 1984 को बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले में जन्मे आशीष कुमार ‘अंशु’ ने दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक उपाधि प्राप्त की और दिल्ली से प्रकाशित हो रही ‘सोपान स्टेप’ मासिक पत्रिका से कॅरियर की शुरुआत की। आशीष जनसरोकार की पत्रकारिता के चंद युवा चेहरों में से एक हैं। पूरे देश में घूम-घूम कर रिपोर्टिंग करते हैं। आशीष जीवन की बेहद सामान्य प्रतीत होने वाली परिस्थितियों को अपनी पत्रकारीय दृष्टि से तो देखते ही हैं साथ ही उनके अंतस् में कहीं गहरे बैठा कवि उस दृष्टि को और भी अधिक सूक्ष्म कर देता है।
ऊपर से बेहद साधारण लगने वाले आशीष कुमार ‘अंशु’ भीतर से एक अत्यन्त प्रभावी विचारक हैं। उनकी सोच बने हुए राजमार्गों पर दौड़ने की अपेक्षा अपने हाथों से बनाई गई पगडंडी पर चलना अधिक पसन्द करती है। इस पगडंडी के निर्माण के दौरान जो कंटीली झाड़ियाँ उनके जिस्म को आघात पहुँचाती हैं, उनकी वेदना और चुभन कविता के माध्यम से अभिव्यक्त होती है।
संकोची और दिखावे से रहित उनका व्यक्तित्व कभी भी अपनी कविताओं का पुलिंदा लिये स्वयं को कवि घोषित करता फिरने का तो आदी नहीं, लेकिन उनकी सोच में कविता निरन्तर विद्यमान रहती है। सम्प्रति आशीष मीडिया स्कैन ट्रस्ट के निदेशक हैं। मीडिया के छात्रों साथ मिलकर इस नाम से एक अखबार निकालते हैं। मीडिया स्कैन, मीडिया शोध एवं अध्ययन की संस्था है।
एक माध्यम के तौर पर इसे किस तरह समझा जाये और खबरों का विश्लेषण एक आम दर्शक पाठक कैसे करे, इस सम्बन्ध में संस्था काम कर रही है। समय-समय पर दिल्ली में मीडिया स्कैन द्वारा संगोष्ठी और परिसंवाद का आयोजन भी होता है। आशीष लंबे समय से इण्डिया फ़ाउंडेशन फॉर रूरल डेवलमेन्ट स्टडिज के साथ जुड़े हुए हैं। भाषा और घुमंतू जनजातियों पर उनका विशेष अध्ययन है। भारतीय जन भाषा सर्वेक्षण के लिये आशीष पूरे उत्तर प्रदेश के लिए समन्वयक की भूमिका में थे।
गुजरात 2002 की फॉलो अप स्टोरी, जम्मू में पाकिस्तान की शरहद पर किरनी में बहुत बूरे हालात में जी रहे लोगों के जीवन पर उनकी मार्मिक रिपोर्ट और मिजोरम के चकमा आदिवासियों पर उनके अध्ययन की मीडिया में खासी चर्चा हुई। आशीष ने झारखण्ड में एक से अधिक शादी करने वाले एक हजार मुस्लिम परिवारों का अध्ययन इंफोर्ड्स के लिये किया। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम लाने वाले आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा का अन्तिम साक्षात्कार आशीष अंशु ने लिया था। देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आशीष के एक हजार से अधिक आलेख अब तक प्रकाशित हो चुके हैं।
सम्पर्क
ईमेल : ashishkumaranshu@gmail.com
ऊपर से बेहद साधारण लगने वाले आशीष कुमार ‘अंशु’ भीतर से एक अत्यन्त प्रभावी विचारक हैं। उनकी सोच बने हुए राजमार्गों पर दौड़ने की अपेक्षा अपने हाथों से बनाई गई पगडंडी पर चलना अधिक पसन्द करती है। इस पगडंडी के निर्माण के दौरान जो कंटीली झाड़ियाँ उनके जिस्म को आघात पहुँचाती हैं, उनकी वेदना और चुभन कविता के माध्यम से अभिव्यक्त होती है।
संकोची और दिखावे से रहित उनका व्यक्तित्व कभी भी अपनी कविताओं का पुलिंदा लिये स्वयं को कवि घोषित करता फिरने का तो आदी नहीं, लेकिन उनकी सोच में कविता निरन्तर विद्यमान रहती है। सम्प्रति आशीष मीडिया स्कैन ट्रस्ट के निदेशक हैं। मीडिया के छात्रों साथ मिलकर इस नाम से एक अखबार निकालते हैं। मीडिया स्कैन, मीडिया शोध एवं अध्ययन की संस्था है।
एक माध्यम के तौर पर इसे किस तरह समझा जाये और खबरों का विश्लेषण एक आम दर्शक पाठक कैसे करे, इस सम्बन्ध में संस्था काम कर रही है। समय-समय पर दिल्ली में मीडिया स्कैन द्वारा संगोष्ठी और परिसंवाद का आयोजन भी होता है। आशीष लंबे समय से इण्डिया फ़ाउंडेशन फॉर रूरल डेवलमेन्ट स्टडिज के साथ जुड़े हुए हैं। भाषा और घुमंतू जनजातियों पर उनका विशेष अध्ययन है। भारतीय जन भाषा सर्वेक्षण के लिये आशीष पूरे उत्तर प्रदेश के लिए समन्वयक की भूमिका में थे।
गुजरात 2002 की फॉलो अप स्टोरी, जम्मू में पाकिस्तान की शरहद पर किरनी में बहुत बूरे हालात में जी रहे लोगों के जीवन पर उनकी मार्मिक रिपोर्ट और मिजोरम के चकमा आदिवासियों पर उनके अध्ययन की मीडिया में खासी चर्चा हुई। आशीष ने झारखण्ड में एक से अधिक शादी करने वाले एक हजार मुस्लिम परिवारों का अध्ययन इंफोर्ड्स के लिये किया। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम लाने वाले आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा का अन्तिम साक्षात्कार आशीष अंशु ने लिया था। देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आशीष के एक हजार से अधिक आलेख अब तक प्रकाशित हो चुके हैं।
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