असि नदी वाराणसी के निकट गंगा नदी में मिलने वाली एक प्रसिद्ध छोटी शाखानदी है।
कहते हैं इस नगरी का नाम असी और वरुणा नदियों के बीच में स्थित होने के कारण ही वाराणसी हुआ था।
असि को असीगंगा भी कहते हैं- 'संवत् सोलह सौ असी असी गंग के तीर, सावन शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यौ शरीर'- इस प्रचलित दोहे से यह भी ज्ञात होता है कि महाकवि तुलसी ने इसी नदी के तट पर संभवत: वर्तमान अस्सी घाट के पास अपनी इहलीला समाप्त की थी।
कहते हैं इस नगरी का नाम असी और वरुणा नदियों के बीच में स्थित होने के कारण ही वाराणसी हुआ था।
असि को असीगंगा भी कहते हैं- 'संवत् सोलह सौ असी असी गंग के तीर, सावन शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यौ शरीर'- इस प्रचलित दोहे से यह भी ज्ञात होता है कि महाकवि तुलसी ने इसी नदी के तट पर संभवत: वर्तमान अस्सी घाट के पास अपनी इहलीला समाप्त की थी।
Hindi Title
असि नदी (भारतकोश से साभार)
अन्य स्रोतों से
जागरण याहू से
असि नदी : मानवीय छेड़छाड़ ने छीने चारित्रिक गुण
वाराणसी। पुराणों में काशी क्षेत्र के उत्तर में वरणा, पूर्व में गंगा और दक्षिण में असि नदी का उल्लेख मिलता है। प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर ये तीनो नदियां प्राकृतिक रूप से काशी नगरी को स्थिरता प्रदान करती हैं। शायद इसी लिए काशी को अविनाशी नगरी के रूप में मान्यता मिली और यह भारतीय धर्म दर्शन, संस्कृति, साहित्य व कला की संरक्षक नगरी के रूप में विकसित हुई।इनमें से गंगा के दक्षिणी मोड़ पर मिलने वाली 'असि' नदी को अब नदी मानने में कठिनाई होती है। वजह, इसका वजूद आज अस्सी नाला के रूप में ही शेष रह गया है। गंगा-वरुणा के सतह से काफी ऊचाई पर बहने वाली इस नदी का गंगा में प्राकृतिक संगमीय कोण 45 से 60 डिग्री हुआ करता था। वर्तमान में अप्राकृतिक रूप से इसे स्थानांतरित कर दक्षिणी छोर पर ही तकरीबन 90 डिग्री कोण से गंगा में मिलाया गया है और इसमें नदी के एक भी चारित्रिक गुण नहीं है। जबकि प्राचीन पुराण काल में इसको शुष्का नदी के नाम से बहुधा पुकारा गया है। यहां तक कि इससे संबद्ध शिवलिंग का नाम भी शुष्केश्वर कहा गया है। जबालोपनिषद में इसका उल्लेख 'नाशी' के रूप में किया गया है। 'सर्वानिन्द्रिय कृतांपापान्नाशयन्ति तेन नाशीति' यह इंद्रियों द्वारा किए हुए पापों का नाश करने वाली होने के कारण ही ऐसा कहा गया। पुराणों में गंगा में मिलने वाले क्षेत्र को असिसंगम तीर्थ की मान्यता है। नगर की दक्षिणी सीमा पर स्थित होने के कारण ही इसको प्रधानता मिली है। काशी खंड में कहा गया है कि संसार के सभी तीर्थ असिसमेद के षोडशांश के भी बराबर नहीं होते। यहां स्नान करने से सभी तीर्थो के स्नान का फल मिल जाता है। इतिहास के पन्नों में वर्णित यह नदी अपनी पौराणिक व्याख्या के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोंण से भी काशी को स्थिरता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
गंगा के जलस्तर में गिरावट ने असि नदी को बनाया नाला
वाराणसी : गंगा अन्वेषण केंद्र के कोआर्डिनेटर प्रो. यूके चौधरी कहते हैं कि गंगा के जल स्तर में निरंतर गिरावट और भूमिगत जल के दोहन ने असि नदी को नाला बना दिया, क्योंकि भूमिगतजल का सतहीजल में परिवर्तन होने का नाम ही 'नदी' है। जब भूमिगत जल का स्तर नदी के स्तर से नीचे जाएगा नदियां सूख जाएंगी। नदी के मौलिक जल के अभाव में नालों के पानी की अधिकता होती जाएंगी और कालांतर में वह नाले का रूप अख्तियार लेती है। असि नदी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। इसके उपाय के बाबत उन्होंने बताया कि किसी भी नदी को बचाने के लिए 'बैंक स्टोरेज' की स्थापना बेहद जरूरी है जो नदी की मूल प्रवाह को बरसात के बाद बरकरार रख सके। इसके लिए बर्षा के जल के त्वरित निस्तारण को रोक कर नदी के बेसीन क्षेत्र में ही उसे संग्रहीत करने की व्यवस्था की जानी चाहिए। बीएचयू के गंगा रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक वरुणा-असि नदी का अपना मौलिक जल, गुण, मात्रा और आवेग हुआ करता था। जो नगर के भूमिगत जल स्तर को संतुलित करने के साथ ही गंगा के कटान क्षेत्र में बंधा का काम करता था। गंगा के लिए वरुणा डाउन स्टीम में और असि अप स्टीम (गंगा के नगर प्रवेश क्षेत्र) में दो पहरेदारों की तरह सीमा रक्षा का काम करती रही हैं। ये नदियां अपने द्वारा लाई गई मिट्टी को गंगा के कटाव वाले क्षेत्रों में भर कर उसे स्थिरता प्रदान करती हैं। इसके अलावा गर्मी के दिनों में गंगा का जल स्तर गिरने पर नगर के भूमिगत जल रिसाव को अपनी ओर मोड़ कर मृदक्षरण रोकने का भी काम करती रही है। काशी में गंगा के आदि कालीन अर्धचंद्राकार स्वरूप की स्थिरता का कारण ये तीन नदियां हैं तो ये ही 'त्रिशूल' भी हैं जो काशी को 'अविनाशी' स्वरूप प्रदान करती हैं। इन नदियों का जल, गुण, मात्रा और आवेग का आपसी तालमेल जिस अनुपात में बिगड़ेगा नगर की स्थिरता व भूमिगत जल उपलब्धता तथा गुण का संतुलन भी उसी अनुपात में बिगड़ता जाएगा।
संदर्भ