अटलांटिक महासागर अथवा अंध महासागर, उस विशाल जलराशि का नाम है जो यूरोप तथा अफ्रीका महाद्वीपों की नई दुनिया के महाद्वीपों से पृथक करती है।
इस महासागर का आकार लगभग अंग्रेजी अक्षर ८ के समान है। लंबाई की अपेक्षा इसकी चौड़ाई बहुत कम है। आर्कटिक सागर, जो बेरिंग जलडमरूमध्य से उत्तरी ध्रुव होता हुआ स्पिट्सबर्जेन और ग्रीनलैंड तक फैला है, मुख्यत अंधमहासागर का ही अंग है। इस प्रकार उत्तर में बेरिंग जल-डमरूमध्य से लेकर दक्षिण में कोट्सलैंड तक इसकी लंबाई १२,८१० मील है। इसी प्रकार दक्षिण में दक्षिणी जार्जिया के दक्षिण स्थित वैडल सागर भी इसी महासागर का अंग है। इसका क्षेत्रफल (अंतर्गत समुद्रों को लेकर) ४,१०,८१,०४० वर्ग मील है। अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर इसका क्षेत्रफल ३,१८,१४,६४० वर्ग मील है। विशालतम महासागर न होते हुए भी इसके अधीन विश्व का सबसे बड़ा जलप्रवाह क्षेत्र है।
नितल की संरचना अटलांटिक महासागर के नितल के प्रारंभिक अध्ययन में जलपोत चैलेंजर (१८७३-७६) के अन्वेषण अभियान के ही समान अनेक अन्य वैज्ञानिक महासागरीय अन्वेषणों ने योग दिया था। अटलांटिक महासागरीय विद्युत केबुलों की स्थापना के हेतु आवश्यक जानकारी की प्राप्ति ने इस प्रकार के अध्यायों को विशेष प्रोत्साहन दिया।
इसका नितल इस महासागर के एक कूट द्वारा पूर्वी और पश्चिमी द्रोणियों में विभक्त है। इन द्रोणियों में अधिकतम गहराई १६,५०० फुट से भी अधिक है। पूर्वोक्त समुद्रांतर कूट काफी ऊँचा उठा हुआ है और आइसलैंड के समीप से आरंभ होकर ५५ डिग्री दक्षिण अक्षांस के लगभग स्थित बोवे द्वीप तक फैला है। इस महासागर के उत्तरी भाग में इस कूट को डालफिन कूट और दक्षिण में चैलेंजर कूट कहते हैं। इस कूट का विस्तार लगभग १०,००० फुट की गहराई पर अटूट है और कई स्थानों पर कूट सागर की सतह के भी ऊपर उठा हुआ है। अज़ोर्स, सेंट पॉल, असेंशन, ट्रिस्टाँ द कुन्हा, और बोवे द्वीप इसी कूट पर स्थित है। निम्न कूटों में दक्षिणी अटलांटिक महासागर का वालफिश कूट और रियो ग्रैंड कूट, तथा उत्तरी अटलांटिक महासागर का वाइविल टामसन कूट उल्लेखनीय हैं। ये तीनों निम्न कूट मुख्य कूट से लंब दिशा में फैले हैं।
ई. कोसना (१९२१) के अनुसार इस महासागर की औसत गहराई, अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर, ३,९२६ मीटर, अर्थात् १२,८३९ फुट है। इसकी अधिकतम गहराई, जो अभी तक ज्ञात हो सकी है, ८,७५० मीटर अर्थात् २८,६१४ फुट है और यह गिनी स्थली की पोर्टोरिकी द्रोणी में स्थित है।
नितल के निक्षेप (अंतर्गत समुद्रों सहित) अटलांटिक महासागर की मुख्य स्थली का ७४ प्रतिशत भाग तलप्लावी निक्षेपों (पेलाजिक डिपाजिट्स) से ढका है, जिसमें नन्हें नन्हें जीवों के शल्क (जैसे ग्लोबिजराइना, टेरोपॉड, डायाटम आदि के शल्क) हैं। २६ प्रतिशत भाग पर भूमि पर उत्पन्न हुए अवसादों (सेडिमेंट्स) का निक्षेप है जो मोटे कणों द्वारा निर्मित है।
पृष्ठधाराएँ अंध महासागर की पृष्ठधाराएँ नियतवाही पवनों के अनुरूप बहती हैं। परंतु स्थल खंड की आकृति के प्रभाव से धाराओं के इस क्रम में कुछ अंतर अवश्य आ जाता है। उत्तरी अटलांटिक महासागर की धाराओं में उत्तरी विषुवतीय धारा, गल्फ स्ट्रीम, उत्तरी अटलांटिक प्रवाह, कैनेरी धारा और लैब्रोडोर धाराएँ मुख्य हैं। दक्षिणी अटलांटिक महासागर की धाराओं में दक्षिणी विषुवतीय धारा, ब्राजील धारा, फाकलैंड धारा, पछवाँ प्रवाह और बैंगुला धाराएँ मुख्य हैं।
लवणता उत्तरी अटलांटिक महासागर के पृष्ठतल की लवणता अन्य समुद्रों की तुलना में पर्याप्त अधिक है। इसकी अधिकतम मात्रा ३.७ प्रतिशत है जो २० -३० उत्तर अक्षांशों के बीच विद्यमान है। अन्य भागों में लवणता अपेक्षाकृत कम है। (रा. ना. मा.)
इस महासागर का आकार लगभग अंग्रेजी अक्षर ८ के समान है। लंबाई की अपेक्षा इसकी चौड़ाई बहुत कम है। आर्कटिक सागर, जो बेरिंग जलडमरूमध्य से उत्तरी ध्रुव होता हुआ स्पिट्सबर्जेन और ग्रीनलैंड तक फैला है, मुख्यत अंधमहासागर का ही अंग है। इस प्रकार उत्तर में बेरिंग जल-डमरूमध्य से लेकर दक्षिण में कोट्सलैंड तक इसकी लंबाई १२,८१० मील है। इसी प्रकार दक्षिण में दक्षिणी जार्जिया के दक्षिण स्थित वैडल सागर भी इसी महासागर का अंग है। इसका क्षेत्रफल (अंतर्गत समुद्रों को लेकर) ४,१०,८१,०४० वर्ग मील है। अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर इसका क्षेत्रफल ३,१८,१४,६४० वर्ग मील है। विशालतम महासागर न होते हुए भी इसके अधीन विश्व का सबसे बड़ा जलप्रवाह क्षेत्र है।
नितल की संरचना अटलांटिक महासागर के नितल के प्रारंभिक अध्ययन में जलपोत चैलेंजर (१८७३-७६) के अन्वेषण अभियान के ही समान अनेक अन्य वैज्ञानिक महासागरीय अन्वेषणों ने योग दिया था। अटलांटिक महासागरीय विद्युत केबुलों की स्थापना के हेतु आवश्यक जानकारी की प्राप्ति ने इस प्रकार के अध्यायों को विशेष प्रोत्साहन दिया।
इसका नितल इस महासागर के एक कूट द्वारा पूर्वी और पश्चिमी द्रोणियों में विभक्त है। इन द्रोणियों में अधिकतम गहराई १६,५०० फुट से भी अधिक है। पूर्वोक्त समुद्रांतर कूट काफी ऊँचा उठा हुआ है और आइसलैंड के समीप से आरंभ होकर ५५ डिग्री दक्षिण अक्षांस के लगभग स्थित बोवे द्वीप तक फैला है। इस महासागर के उत्तरी भाग में इस कूट को डालफिन कूट और दक्षिण में चैलेंजर कूट कहते हैं। इस कूट का विस्तार लगभग १०,००० फुट की गहराई पर अटूट है और कई स्थानों पर कूट सागर की सतह के भी ऊपर उठा हुआ है। अज़ोर्स, सेंट पॉल, असेंशन, ट्रिस्टाँ द कुन्हा, और बोवे द्वीप इसी कूट पर स्थित है। निम्न कूटों में दक्षिणी अटलांटिक महासागर का वालफिश कूट और रियो ग्रैंड कूट, तथा उत्तरी अटलांटिक महासागर का वाइविल टामसन कूट उल्लेखनीय हैं। ये तीनों निम्न कूट मुख्य कूट से लंब दिशा में फैले हैं।
ई. कोसना (१९२१) के अनुसार इस महासागर की औसत गहराई, अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर, ३,९२६ मीटर, अर्थात् १२,८३९ फुट है। इसकी अधिकतम गहराई, जो अभी तक ज्ञात हो सकी है, ८,७५० मीटर अर्थात् २८,६१४ फुट है और यह गिनी स्थली की पोर्टोरिकी द्रोणी में स्थित है।
नितल के निक्षेप (अंतर्गत समुद्रों सहित) अटलांटिक महासागर की मुख्य स्थली का ७४ प्रतिशत भाग तलप्लावी निक्षेपों (पेलाजिक डिपाजिट्स) से ढका है, जिसमें नन्हें नन्हें जीवों के शल्क (जैसे ग्लोबिजराइना, टेरोपॉड, डायाटम आदि के शल्क) हैं। २६ प्रतिशत भाग पर भूमि पर उत्पन्न हुए अवसादों (सेडिमेंट्स) का निक्षेप है जो मोटे कणों द्वारा निर्मित है।
पृष्ठधाराएँ अंध महासागर की पृष्ठधाराएँ नियतवाही पवनों के अनुरूप बहती हैं। परंतु स्थल खंड की आकृति के प्रभाव से धाराओं के इस क्रम में कुछ अंतर अवश्य आ जाता है। उत्तरी अटलांटिक महासागर की धाराओं में उत्तरी विषुवतीय धारा, गल्फ स्ट्रीम, उत्तरी अटलांटिक प्रवाह, कैनेरी धारा और लैब्रोडोर धाराएँ मुख्य हैं। दक्षिणी अटलांटिक महासागर की धाराओं में दक्षिणी विषुवतीय धारा, ब्राजील धारा, फाकलैंड धारा, पछवाँ प्रवाह और बैंगुला धाराएँ मुख्य हैं।
लवणता उत्तरी अटलांटिक महासागर के पृष्ठतल की लवणता अन्य समुद्रों की तुलना में पर्याप्त अधिक है। इसकी अधिकतम मात्रा ३.७ प्रतिशत है जो २० -३० उत्तर अक्षांशों के बीच विद्यमान है। अन्य भागों में लवणता अपेक्षाकृत कम है। (रा. ना. मा.)
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