औद्योगिक अनुसंधान आज के युग में उद्योग का ऐसा कोई भी पक्ष नहीं है जिसमें रचानात्मक विचारों के सृजन की तथा उनकी क्रियान्वित करने की आवश्यकता न हो। रचनात्मक विचारों का लाभ समाज तथा देश को तभी प्राप्त हो सकता है जब कई क्रमबद्ध क्रियाओं द्वारा उनकी व्यावहारिकता का परीक्षण कर सफलता प्राप्त की जा सके। इन क्रमबद्ध क्रियाओं के सामूहिक रूप को हम औद्योगिक अनुसंधान कहते हैं।
औद्योगिक अनुसंधान के उद्देश्य- इस प्रतियोगिता के युग में प्रत्येक उद्योगपति को सदा इस बात की चिंता लगी रहती है कि वह अपने प्रतियोगियों की अपेक्षा अपने आपको अधिक समर्थ बना सके। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता है तो निश्चय है कि शीघ्र ही प्रतियोगी उसे औद्योगिक क्षेत्र छोड़ देने को बाध्य कर देंगे। इस चिंता और भय के कारण प्रत्येक उद्योगपति के मस्तिष्क में अनेक रचनात्मक विचार उत्पन्न होते रहते हैं। इन विचारों को कार्य रूप में परिणत करने के पहले उनकी व्यावसायिक उपयोगिता के संबंध में कई प्रकार के परीक्षण करना आवश्यक होता है।
प्रतियोगियों की अपेक्षा कम मूल्य पर वस्तुओं का निर्माण करना, वस्तुओं के गुणों में वृद्धि करना तथा उनको अधिक उपयोगी बनाने का प्रयत्न करना, बड़े पैमाने पर एकरूप वस्तुओं का निर्माण, बाजार में वस्तुओं की माँग का सही अनुमान लगाना तथा उसमें वृद्धि करने के उद्देश्य से सबसे अधिक प्रभावोत्पादक विज्ञानपनप्रणाली का प्रयोग करना, ये सब कुछ ऐसे उद्देश्य हैं जिनकी पूर्ति करने के लिए औद्योगिक अनुसंधान अनवरत रूप से चलता रहता है।
आयात किए हुए या मूल्यवान् साधनों के स्थान पर स्थानीय और सस्ते साधनों का उपयोग किया जाता है। निर्माणविधियों में सब प्रकार के पदार्थों तथा साधनों के अपव्यय को रोकने का प्रयत्न किया जाता है। अवशिष्ट पदार्थों का प्रयोग कर नए-नए पदार्थों के निर्माण का प्रयत्न किया जाता है। संक्षेप में कहें तो उपलब्ध साधनों सर्वाधिक लाभप्रद उपयोग कर कम लागत पर उत्तम से उत्तम वस्तुओं का निर्माण करना ही औद्योगिक अनुसंधान का उद्देश्य रहता है।
औद्योगिक अनुसंधान तथा वैज्ञानिक अनुसंधान- औद्योगिक अनुसंधान वैज्ञानिक अनुसंधान से भिन्न प्रकार का होने पर भी दोनों में निकटतम संबंध है। कई प्रकार के औद्योगिक अनुसंधान वैज्ञानिक अनुसंधानों पर ही पूर्णत: निर्भर है। वैज्ञानिक नए-नए सिद्धांतों की खोज करता है। इन सिद्धांतों का प्रयोग होने पर नई-नई निर्माणविधियाँ विकसित होती हैं तथा नए-नए पदार्थों का निर्माण संभव होता है। ये वैज्ञानिक सिद्धांत जनहित तभी कर सकते हैं जब उनका प्रयोग करके व्यापारिक स्तर पर निर्माण संभव हो सके। अत: वैज्ञानिक अनुसंधानों को, जो प्राकृतिक तथ्य तथा ज्ञान को सामने लाते हैं, अनेक परीक्षणों द्वारा व्यावसायिकता की कसौटी पर कसा जाता है। इस कसौटी पर जब वे खरे उतरते हैं तभी वे उद्योग में कार्यरूप में लाए जा सकते हैं। नए-नए सिद्धांतों का प्रयोग हो सकना या नई वस्तुओं का निर्माण हो सकना ही उद्योगपति की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है। यह प्रयोग या निर्माण उस लागत तथा उस रूप में होना चाहिए जिसमें उसका व्यवसाय लाभप्रद हो तथा उसका उपयोग संभव हो। अत: औद्योगिक अनुसंधान एवं वैज्ञानिक की भिन्नता उनकी विधियों में नहीं वरन् उनके उद्देश्य में है। जहाँ वैज्ञानिक अनुसंधान के उद्देश्य तभी पूर्ण होता है जब इन सिद्धांतों का प्रयोग व्यापारिक स्तर पर तथा व्यावहारिक रूप में किया जा सकता हो।
निजी रूप से औद्योगिक अन्वेषण- जैसा हम ऊपर देख आए हैं, आधुनिक उद्योगपति की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कम से कम मूल्य पर उत्तम से उत्तम वस्तु बेच सके। सफलता के लिए उसे अपनी विज्ञापन व्यवस्था को अधिक प्रभावशाली बनाना चाहिए जिसमें उसका विज्ञापन हर संभावित ग्राहक तक पहुँच सके। ये सब कार्य करने के लिए प्रत्येक आधुनिक औद्योगिक संगठन का औद्योगिक अनुसंधान विभाग एक आवश्यक अंग बन गया है। उद्योगपति अपनी-अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार, औद्योगिक अनुसंधानों पर मुक्तहस्त व्यय करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी सफलता अंत में सफल औद्योगिक अनुसंधान पर ही निर्भर है।
व्यावसायिक संघों द्वारा अनुसंधान- निजी रूप से औद्योगिक अनुसंधान का कार्य संचालित करने में सबसे बड़ी कठिनाई यह होती है कि उद्योगपतियों के पास अनुंसधान कार्य के लिए पर्याप्त आर्थिक साधन नहीं होते। योग्य अन्वेषकों की भी कमी रहती है। व्यावसायिक संघ इन कठिनाइयों को दूर कर सकते हैं तथा सदस्य उद्योगपतियों के सहयोग से इस कार्य को अपने हाथ में ले सकते हैं। व्यावसायिक संघों का अन्वेषणकार्य केवल वस्तुओं के गुणों में वृद्धि तथा निर्माणविधियों के परीक्षणों तक ही सीमित नहीं रहता। वे सदस्य उद्योगपतियों द्वारा निर्माण के प्रतिमान भी निश्चित करते हैं जिनका पालन करना सदस्य उद्योगपतियों के लिए अनिवार्य होता है। इन उद्योगपतियों को प्रतिमान के पालन के प्रमाणपत्र भी इन संघों द्वारा दिए जाते हैं।
पाश्चात्य देशों में, विशेषत: संयुक्त राज्य, अमरीका में, व्यावसायिक संघ बड़े पैमाने पर अनुसंधान का कार्य करते हैं। संयुक्त राज्य के वाणिज्य विभाग के मतानुसार व्यावसायिक संघों के रचनात्मक कार्यों में वैज्ञानिक अनुसंधान से अधिक उपयुक्त या लाभदायक कोई अन्य कार्य नहीं है। उत्पादन तथा मितव्ययी विधियाँ निकालना व्यावसायिक संघों का एक प्रमुख कार्य हो गया है।
भारतवर्ष के कुछ व्यावसायिक संघों ने भी अनुसंधान कार्य को अपने कार्यों के एक प्रमुख अंग के रूप में अपनाया है। उदाहरण के लिए अहमदाबाद वस्त्र उद्योग अनुसंधानशाला को ही लीजिए। यह भव्य अनुसंधानशाला उद्योगपतियों द्वारा औद्योगिक अनुसंधान के कार्य में आपसी सहयोग का एक जीता जागता उदाहरण है। इस अनुसंधानशाला में, जिसे अहमदाबाद के वस्त्रनिर्माताओं ने संयुक्त रूप से स्थापित किया है, वस्त्रनिर्माण की आधुनिकतम मशीनों तथा विधियों के परीक्षण किए जाते हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के कपास तथा वस्त्र उद्योग में काम आनेवाले रंगों और अन्य रासायनिक पदार्थों के प्रयोग तथा विश्लेषणों के परिणामों के आधार पर सदस्य वस्त्रनिर्माताओं को व्यावहारिक सुझाव दिए जाते हैं।
औद्योगिक अन्वेषण तथा एकस्वाधिकार- निजी रूप से तथा व्यावसायिक संघों द्वारा नई वस्तुओं की तथा नई निर्माणविधियों की खोज करने में अत्यधिक व्यय की आवश्यकता होती है। यदि उद्योगपतियों को इस बात का आश्वासन न प्राप्त हो कि अन्वेषण द्वारा की गई खोज के प्रयोग का सर्वाधिकार उन्हीं का रहेगा तो वे कभी भी इतना अधिक व्यय करने का साहस नहीं करेंगे। औद्योगिक अनुसंधान निर्विघ्न रूप से चलते रहने के लिए व्यापारचिह्न (ट्रेड मार्क) तथा एकस्वाधिकार के पंजीयन की व्यवस्था की आवश्यकता है। पंजीयन का अर्थ यह होता है कि पंजीयित आविष्कारों और एकस्वाधिकार का प्रयोग उनके आविष्कारक की अनुमति के बिना कोई अन्य उत्पादन नहीं कर सकता। व्यापारचिह्न के पंजीयन से एक अन्य लाभ यह होता है कि पंजीयित व्यापारचिह्न के अंतर्गत जिन वस्तुओं का विक्रय होता हो उनके संबंध में ग्राहकों को आश्वासन मिलता है कि वस्तुओं में वांछनीय गुण एक निश्चित मात्रा तक अवश्य हैं।
औषधियों के निर्माण में औद्योगिक अनुसंधान विशेष महत्वपूर्ण है। यदि अनुसंधान के व्यय को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश औषधियों की लागत प्राय: नगण्य होती है। अत: एकस्वाधिकार के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देशों के बीच समझौते होते हैं जिनके द्वारा एक देश में पंजीयित एकस्वाधिकार के अंतर्गत उद्योगपति के अधिकारों को अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्यता दी जाती है :
राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय- अनुसंधान द्वारा नई-नई वस्तुओं के निर्माण के अतिरिक्त वैज्ञानिक विश्लेषण द्वारा यह भी ज्ञात होता है कि किसी निर्मित वस्तु को व्यावसायिक दृष्टि से सफल होने के लिए उसमें कौन-कौन से न्यूनतम गुण होने चाहिए। यह जानकारी हो जाने पर उन वस्तुओं के संबंध में मानक निश्चित किए जा सकते हैं। मानक संस्थाएँ वस्तुओं के निर्माण में न्यूनतम आवश्यक गुण तथा माप आदि के संबंध में प्रतिबंध निश्चित कर देती हैं। निर्माताओं द्वारा निर्मित वस्तुओं का परीक्षण किया जाता है और यदि परीक्षण द्वारा यह सिद्ध होता है कि मानक के प्रतिबंधों का पूर्णत: पालन उस निर्माता द्वारा किया जाता है तो मानक संस्था उसे मानक के पालन का प्रमाणपत्र दे देती है।
कई वस्तुओं के निर्माण के संबंध में मानक निश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ भी स्थापित की गई हैं। ये संस्थाएँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानक निश्चित करते हैं।
भारतवर्ष में भी अब भारतीय मानक संस्था की स्थापना हो गई है। इस संस्था की स्थापना केंद्रीय शासन द्वारा की गई है। इस संस्था द्वारा अनेक परीक्षणों तथा विश्लेषणों के बाद कई वस्तुओं के निर्माण के मानक निश्चित किए गए हैं। इस मानक संस्था को अपने कार्य में राष्ट्रीय अनुसंधानशालाओं का भी सहयोग प्राप्त होता है। जो उद्योगपति इस संस्था द्वारा निश्चित मानकों का पालन अपनी वस्तुओं के निर्माण में करते हैं उन्हें भारतीय मानक संस्था के प्रमाणपत्र का उपयोग करने का अधिकार दे दिया जाता है।
औद्योगिक अनुसंधान और श्रमजीवी- औद्योगिक उत्पादन में श्रमजीवी एक प्रमुख सहयोगी के रूप में कार्य करते हैं। अत: यह स्वाभाविक है कि प्रत्येक औद्योगिक अनुसंधान उनको भी प्रभावित करे। अनुसंधान के परिणामस्वरूप दिन प्रति दिन उत्पादन में मशीनों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। मशीनों के प्रयोग में वृद्धि होने का प्रभाव यह होता है कि पहले की अपेक्षा कमसंख्या में श्रम जीवियों की आवश्यकता होती है तथा बहुत से श्रमजीवी बेकार हो जाते हैं। औद्योगिक अनुसंधान का अर्थ केवल यह नहीं होना चाहिए कि अधिक और सस्ता उत्पादन हो सके। इस अन्वेषण का यह भी प्रयत्न होना चाहिए कि मशीनों का ऐसा नियोजित उपयोग हो कि देश में बेकारी न उत्पन्न हो तथा श्रमजीवियों की कार्यक्षमता में वृद्धि हो। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मशीनों का उद्योग में प्रयोग करने के पहले उनके संबंध कई प्रकार के परीक्षण करने की आवश्यकता होती है। केवल ग्राहकों को ही संतुष्ट रखने से किसी उत्पादक को पूर्ण सफलता नहीं प्राप्त हो सकती। ग्राहकों के साथ-साथ श्रमजीवियों तथा अन्य औद्योगिक कार्यकर्ताओं को संतुष्ट रखना भी उसके लिए उतना ही आवश्यक होता है। कोई भी ऐसा अनुसंधान जो केवल एक पक्ष को संतुष्ट करता हो तथा दूसरे पक्ष को असंतुष्ट, तब तक वांछनीय नहीं है जब तक उसके द्वारा उत्पन्न दूसरे पक्ष के असंतोष का यथोचित समाधान न हो जाए। यह कार्य अनुसंधान द्वारा ही संभव है।
औद्योगिक अनुसंधान तथा श्रमजीवियों की सुरक्षा- उद्योगों में मशीनों तथा विद्युत् का बड़े पैमाने पर प्रयोग आरंभ हो जाने से कई समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। इनमें से एक प्रमुख समस्या श्रमजीवियों की सुरक्षा की भी है। किसी भी ऐसी मशीन या विधि के उपयोग की आज्ञा शासन द्वारा नहीं दी जानी चाहिए जिसके प्रयोग से औद्योगिक कार्य-कर्ताओं का जीवन अरक्षित हो जाने की आशंका हो। ऐसी मशीनों तथा विधियों को परीक्षणों द्वारा पूर्णत: रक्षित बनाने का प्रयत्न अनिवार्य है। अधिकांश देशों में मजदूरों की सुरक्षा का प्रबंध आवश्यक कर दिया गया है जिसमें दुर्घटनाएँ यथासंभव न हों।
प्रत्येक गतिशील उद्योगपति श्रमजीवियों की सुरक्षा का ध्यान तो रखता ही है, साथ ही वह उनके कार्य को अधिक सुविधाजनक बनाने का भी प्रयत्न करता है। यह थकावट उत्पन्न करनेवाली प्रत्येक निर्माणविधि के स्थान पर ऐसी पद्धति अपनाने का प्रयत्न करता है जो कार्य को सरल तथा कम से कम कष्टसाध्य बना सके। श्रमजीवियों के दैनिक कार्यकाल के बीच उन्हें उपयुक्त समय पर विश्राम देने से थकावट कम प्रतीत होती है तथा वे आनंदपूर्वक कार्य करते हैं। श्रमव्यवस्था की कार्यक्षमता एक विज्ञान बन गई है। इस विज्ञान का उद्देश्य श्रमजीवियों की कार्यक्षमता बढ़ाना तथा उनके जीवन को अधिक सुखमय और संतुष्ट बनाना है।
औद्योगिक अनुसंधान के उद्देश्य- इस प्रतियोगिता के युग में प्रत्येक उद्योगपति को सदा इस बात की चिंता लगी रहती है कि वह अपने प्रतियोगियों की अपेक्षा अपने आपको अधिक समर्थ बना सके। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता है तो निश्चय है कि शीघ्र ही प्रतियोगी उसे औद्योगिक क्षेत्र छोड़ देने को बाध्य कर देंगे। इस चिंता और भय के कारण प्रत्येक उद्योगपति के मस्तिष्क में अनेक रचनात्मक विचार उत्पन्न होते रहते हैं। इन विचारों को कार्य रूप में परिणत करने के पहले उनकी व्यावसायिक उपयोगिता के संबंध में कई प्रकार के परीक्षण करना आवश्यक होता है।
प्रतियोगियों की अपेक्षा कम मूल्य पर वस्तुओं का निर्माण करना, वस्तुओं के गुणों में वृद्धि करना तथा उनको अधिक उपयोगी बनाने का प्रयत्न करना, बड़े पैमाने पर एकरूप वस्तुओं का निर्माण, बाजार में वस्तुओं की माँग का सही अनुमान लगाना तथा उसमें वृद्धि करने के उद्देश्य से सबसे अधिक प्रभावोत्पादक विज्ञानपनप्रणाली का प्रयोग करना, ये सब कुछ ऐसे उद्देश्य हैं जिनकी पूर्ति करने के लिए औद्योगिक अनुसंधान अनवरत रूप से चलता रहता है।
आयात किए हुए या मूल्यवान् साधनों के स्थान पर स्थानीय और सस्ते साधनों का उपयोग किया जाता है। निर्माणविधियों में सब प्रकार के पदार्थों तथा साधनों के अपव्यय को रोकने का प्रयत्न किया जाता है। अवशिष्ट पदार्थों का प्रयोग कर नए-नए पदार्थों के निर्माण का प्रयत्न किया जाता है। संक्षेप में कहें तो उपलब्ध साधनों सर्वाधिक लाभप्रद उपयोग कर कम लागत पर उत्तम से उत्तम वस्तुओं का निर्माण करना ही औद्योगिक अनुसंधान का उद्देश्य रहता है।
औद्योगिक अनुसंधान तथा वैज्ञानिक अनुसंधान- औद्योगिक अनुसंधान वैज्ञानिक अनुसंधान से भिन्न प्रकार का होने पर भी दोनों में निकटतम संबंध है। कई प्रकार के औद्योगिक अनुसंधान वैज्ञानिक अनुसंधानों पर ही पूर्णत: निर्भर है। वैज्ञानिक नए-नए सिद्धांतों की खोज करता है। इन सिद्धांतों का प्रयोग होने पर नई-नई निर्माणविधियाँ विकसित होती हैं तथा नए-नए पदार्थों का निर्माण संभव होता है। ये वैज्ञानिक सिद्धांत जनहित तभी कर सकते हैं जब उनका प्रयोग करके व्यापारिक स्तर पर निर्माण संभव हो सके। अत: वैज्ञानिक अनुसंधानों को, जो प्राकृतिक तथ्य तथा ज्ञान को सामने लाते हैं, अनेक परीक्षणों द्वारा व्यावसायिकता की कसौटी पर कसा जाता है। इस कसौटी पर जब वे खरे उतरते हैं तभी वे उद्योग में कार्यरूप में लाए जा सकते हैं। नए-नए सिद्धांतों का प्रयोग हो सकना या नई वस्तुओं का निर्माण हो सकना ही उद्योगपति की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है। यह प्रयोग या निर्माण उस लागत तथा उस रूप में होना चाहिए जिसमें उसका व्यवसाय लाभप्रद हो तथा उसका उपयोग संभव हो। अत: औद्योगिक अनुसंधान एवं वैज्ञानिक की भिन्नता उनकी विधियों में नहीं वरन् उनके उद्देश्य में है। जहाँ वैज्ञानिक अनुसंधान के उद्देश्य तभी पूर्ण होता है जब इन सिद्धांतों का प्रयोग व्यापारिक स्तर पर तथा व्यावहारिक रूप में किया जा सकता हो।
निजी रूप से औद्योगिक अन्वेषण- जैसा हम ऊपर देख आए हैं, आधुनिक उद्योगपति की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कम से कम मूल्य पर उत्तम से उत्तम वस्तु बेच सके। सफलता के लिए उसे अपनी विज्ञापन व्यवस्था को अधिक प्रभावशाली बनाना चाहिए जिसमें उसका विज्ञापन हर संभावित ग्राहक तक पहुँच सके। ये सब कार्य करने के लिए प्रत्येक आधुनिक औद्योगिक संगठन का औद्योगिक अनुसंधान विभाग एक आवश्यक अंग बन गया है। उद्योगपति अपनी-अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार, औद्योगिक अनुसंधानों पर मुक्तहस्त व्यय करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी सफलता अंत में सफल औद्योगिक अनुसंधान पर ही निर्भर है।
व्यावसायिक संघों द्वारा अनुसंधान- निजी रूप से औद्योगिक अनुसंधान का कार्य संचालित करने में सबसे बड़ी कठिनाई यह होती है कि उद्योगपतियों के पास अनुंसधान कार्य के लिए पर्याप्त आर्थिक साधन नहीं होते। योग्य अन्वेषकों की भी कमी रहती है। व्यावसायिक संघ इन कठिनाइयों को दूर कर सकते हैं तथा सदस्य उद्योगपतियों के सहयोग से इस कार्य को अपने हाथ में ले सकते हैं। व्यावसायिक संघों का अन्वेषणकार्य केवल वस्तुओं के गुणों में वृद्धि तथा निर्माणविधियों के परीक्षणों तक ही सीमित नहीं रहता। वे सदस्य उद्योगपतियों द्वारा निर्माण के प्रतिमान भी निश्चित करते हैं जिनका पालन करना सदस्य उद्योगपतियों के लिए अनिवार्य होता है। इन उद्योगपतियों को प्रतिमान के पालन के प्रमाणपत्र भी इन संघों द्वारा दिए जाते हैं।
पाश्चात्य देशों में, विशेषत: संयुक्त राज्य, अमरीका में, व्यावसायिक संघ बड़े पैमाने पर अनुसंधान का कार्य करते हैं। संयुक्त राज्य के वाणिज्य विभाग के मतानुसार व्यावसायिक संघों के रचनात्मक कार्यों में वैज्ञानिक अनुसंधान से अधिक उपयुक्त या लाभदायक कोई अन्य कार्य नहीं है। उत्पादन तथा मितव्ययी विधियाँ निकालना व्यावसायिक संघों का एक प्रमुख कार्य हो गया है।
भारतवर्ष के कुछ व्यावसायिक संघों ने भी अनुसंधान कार्य को अपने कार्यों के एक प्रमुख अंग के रूप में अपनाया है। उदाहरण के लिए अहमदाबाद वस्त्र उद्योग अनुसंधानशाला को ही लीजिए। यह भव्य अनुसंधानशाला उद्योगपतियों द्वारा औद्योगिक अनुसंधान के कार्य में आपसी सहयोग का एक जीता जागता उदाहरण है। इस अनुसंधानशाला में, जिसे अहमदाबाद के वस्त्रनिर्माताओं ने संयुक्त रूप से स्थापित किया है, वस्त्रनिर्माण की आधुनिकतम मशीनों तथा विधियों के परीक्षण किए जाते हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के कपास तथा वस्त्र उद्योग में काम आनेवाले रंगों और अन्य रासायनिक पदार्थों के प्रयोग तथा विश्लेषणों के परिणामों के आधार पर सदस्य वस्त्रनिर्माताओं को व्यावहारिक सुझाव दिए जाते हैं।
औद्योगिक अन्वेषण तथा एकस्वाधिकार- निजी रूप से तथा व्यावसायिक संघों द्वारा नई वस्तुओं की तथा नई निर्माणविधियों की खोज करने में अत्यधिक व्यय की आवश्यकता होती है। यदि उद्योगपतियों को इस बात का आश्वासन न प्राप्त हो कि अन्वेषण द्वारा की गई खोज के प्रयोग का सर्वाधिकार उन्हीं का रहेगा तो वे कभी भी इतना अधिक व्यय करने का साहस नहीं करेंगे। औद्योगिक अनुसंधान निर्विघ्न रूप से चलते रहने के लिए व्यापारचिह्न (ट्रेड मार्क) तथा एकस्वाधिकार के पंजीयन की व्यवस्था की आवश्यकता है। पंजीयन का अर्थ यह होता है कि पंजीयित आविष्कारों और एकस्वाधिकार का प्रयोग उनके आविष्कारक की अनुमति के बिना कोई अन्य उत्पादन नहीं कर सकता। व्यापारचिह्न के पंजीयन से एक अन्य लाभ यह होता है कि पंजीयित व्यापारचिह्न के अंतर्गत जिन वस्तुओं का विक्रय होता हो उनके संबंध में ग्राहकों को आश्वासन मिलता है कि वस्तुओं में वांछनीय गुण एक निश्चित मात्रा तक अवश्य हैं।
औषधियों के निर्माण में औद्योगिक अनुसंधान विशेष महत्वपूर्ण है। यदि अनुसंधान के व्यय को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश औषधियों की लागत प्राय: नगण्य होती है। अत: एकस्वाधिकार के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देशों के बीच समझौते होते हैं जिनके द्वारा एक देश में पंजीयित एकस्वाधिकार के अंतर्गत उद्योगपति के अधिकारों को अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्यता दी जाती है :
राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय- अनुसंधान द्वारा नई-नई वस्तुओं के निर्माण के अतिरिक्त वैज्ञानिक विश्लेषण द्वारा यह भी ज्ञात होता है कि किसी निर्मित वस्तु को व्यावसायिक दृष्टि से सफल होने के लिए उसमें कौन-कौन से न्यूनतम गुण होने चाहिए। यह जानकारी हो जाने पर उन वस्तुओं के संबंध में मानक निश्चित किए जा सकते हैं। मानक संस्थाएँ वस्तुओं के निर्माण में न्यूनतम आवश्यक गुण तथा माप आदि के संबंध में प्रतिबंध निश्चित कर देती हैं। निर्माताओं द्वारा निर्मित वस्तुओं का परीक्षण किया जाता है और यदि परीक्षण द्वारा यह सिद्ध होता है कि मानक के प्रतिबंधों का पूर्णत: पालन उस निर्माता द्वारा किया जाता है तो मानक संस्था उसे मानक के पालन का प्रमाणपत्र दे देती है।
कई वस्तुओं के निर्माण के संबंध में मानक निश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ भी स्थापित की गई हैं। ये संस्थाएँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानक निश्चित करते हैं।
भारतवर्ष में भी अब भारतीय मानक संस्था की स्थापना हो गई है। इस संस्था की स्थापना केंद्रीय शासन द्वारा की गई है। इस संस्था द्वारा अनेक परीक्षणों तथा विश्लेषणों के बाद कई वस्तुओं के निर्माण के मानक निश्चित किए गए हैं। इस मानक संस्था को अपने कार्य में राष्ट्रीय अनुसंधानशालाओं का भी सहयोग प्राप्त होता है। जो उद्योगपति इस संस्था द्वारा निश्चित मानकों का पालन अपनी वस्तुओं के निर्माण में करते हैं उन्हें भारतीय मानक संस्था के प्रमाणपत्र का उपयोग करने का अधिकार दे दिया जाता है।
औद्योगिक अनुसंधान और श्रमजीवी- औद्योगिक उत्पादन में श्रमजीवी एक प्रमुख सहयोगी के रूप में कार्य करते हैं। अत: यह स्वाभाविक है कि प्रत्येक औद्योगिक अनुसंधान उनको भी प्रभावित करे। अनुसंधान के परिणामस्वरूप दिन प्रति दिन उत्पादन में मशीनों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। मशीनों के प्रयोग में वृद्धि होने का प्रभाव यह होता है कि पहले की अपेक्षा कमसंख्या में श्रम जीवियों की आवश्यकता होती है तथा बहुत से श्रमजीवी बेकार हो जाते हैं। औद्योगिक अनुसंधान का अर्थ केवल यह नहीं होना चाहिए कि अधिक और सस्ता उत्पादन हो सके। इस अन्वेषण का यह भी प्रयत्न होना चाहिए कि मशीनों का ऐसा नियोजित उपयोग हो कि देश में बेकारी न उत्पन्न हो तथा श्रमजीवियों की कार्यक्षमता में वृद्धि हो। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मशीनों का उद्योग में प्रयोग करने के पहले उनके संबंध कई प्रकार के परीक्षण करने की आवश्यकता होती है। केवल ग्राहकों को ही संतुष्ट रखने से किसी उत्पादक को पूर्ण सफलता नहीं प्राप्त हो सकती। ग्राहकों के साथ-साथ श्रमजीवियों तथा अन्य औद्योगिक कार्यकर्ताओं को संतुष्ट रखना भी उसके लिए उतना ही आवश्यक होता है। कोई भी ऐसा अनुसंधान जो केवल एक पक्ष को संतुष्ट करता हो तथा दूसरे पक्ष को असंतुष्ट, तब तक वांछनीय नहीं है जब तक उसके द्वारा उत्पन्न दूसरे पक्ष के असंतोष का यथोचित समाधान न हो जाए। यह कार्य अनुसंधान द्वारा ही संभव है।
औद्योगिक अनुसंधान तथा श्रमजीवियों की सुरक्षा- उद्योगों में मशीनों तथा विद्युत् का बड़े पैमाने पर प्रयोग आरंभ हो जाने से कई समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। इनमें से एक प्रमुख समस्या श्रमजीवियों की सुरक्षा की भी है। किसी भी ऐसी मशीन या विधि के उपयोग की आज्ञा शासन द्वारा नहीं दी जानी चाहिए जिसके प्रयोग से औद्योगिक कार्य-कर्ताओं का जीवन अरक्षित हो जाने की आशंका हो। ऐसी मशीनों तथा विधियों को परीक्षणों द्वारा पूर्णत: रक्षित बनाने का प्रयत्न अनिवार्य है। अधिकांश देशों में मजदूरों की सुरक्षा का प्रबंध आवश्यक कर दिया गया है जिसमें दुर्घटनाएँ यथासंभव न हों।
प्रत्येक गतिशील उद्योगपति श्रमजीवियों की सुरक्षा का ध्यान तो रखता ही है, साथ ही वह उनके कार्य को अधिक सुविधाजनक बनाने का भी प्रयत्न करता है। यह थकावट उत्पन्न करनेवाली प्रत्येक निर्माणविधि के स्थान पर ऐसी पद्धति अपनाने का प्रयत्न करता है जो कार्य को सरल तथा कम से कम कष्टसाध्य बना सके। श्रमजीवियों के दैनिक कार्यकाल के बीच उन्हें उपयुक्त समय पर विश्राम देने से थकावट कम प्रतीत होती है तथा वे आनंदपूर्वक कार्य करते हैं। श्रमव्यवस्था की कार्यक्षमता एक विज्ञान बन गई है। इस विज्ञान का उद्देश्य श्रमजीवियों की कार्यक्षमता बढ़ाना तथा उनके जीवन को अधिक सुखमय और संतुष्ट बनाना है।
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