औद्योगिक विष-अनुसंधान-केंद्र की स्थापना सन् 1965 में औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के अंतर्गत लखनऊ में हुई। आजकल कुछ उद्योगों में विषैले पदार्थों का भी प्रयोग होता है जिसका कुप्रभाव उद्योग कर्मियों पर पड़ता है। इन विषैले पदार्थों के प्रभाव से रोगी उद्योग कर्मियों का निदान उक्त केंद्र में किया जाता है।
किसान कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए खेतों में प्राय: उर्वरकों और कीटनाशियों का प्रयोग करते ही हैं। इनके प्रयोग से खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि तो होती है लेकिन कृषकों को अनेक रोगों का शिकार होना पड़ता है। डी.डी.टी., लिडेन, डाइएल्ड्रिन और एल्ड्रिन आदि कीट नाशियों का प्रयोग खूब होता है। इनसे रक्तआल्पता (लो ब्लड प्रेशर) होने की आशंका रहती है। डी.डी.टी. से त्वचा की कोशिकाओं में परिवर्तन हो जाता है तथा बाल बहुत तेजी से झड़ने हैं। इसके अलावा अन्य कीटनाशियों पर केंद्र में शोध चल रहा है।
किसान कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए खेतों में प्राय: उर्वरकों और कीटनाशियों का प्रयोग करते ही हैं। इनके प्रयोग से खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि तो होती है लेकिन कृषकों को अनेक रोगों का शिकार होना पड़ता है। डी.डी.टी., लिडेन, डाइएल्ड्रिन और एल्ड्रिन आदि कीट नाशियों का प्रयोग खूब होता है। इनसे रक्तआल्पता (लो ब्लड प्रेशर) होने की आशंका रहती है। डी.डी.टी. से त्वचा की कोशिकाओं में परिवर्तन हो जाता है तथा बाल बहुत तेजी से झड़ने हैं। इसके अलावा अन्य कीटनाशियों पर केंद्र में शोध चल रहा है।
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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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