औरों की तरह हैं-चिचोली और आमला

Submitted by admin on Wed, 03/03/2010 - 09:18
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राकेश दीवान
बैतूल जिले के प्रमुख कस्बे चिचोली की गाथा भी हर जगह की तरह पानी उलीचने और बगराने की गाथा रही है। पहले यहाँ भी दस-पन्द्रह हाथ पर खूब पानी निकल आता था। लोकहित में खुदवाए जाने वाले कुओं-बावड़ियों में मीठा पानी रहता था और सिंचाई के लिए इनमें मोट, रहट या बावन बाल्टी लगाकर पानी निकाला जाता था। 20-25 हाथ चौड़ी और गहरी बावड़ियाँ इन तरीकों के लिए आदर्श होती थीं। कुओं पर जगत, घिर्री या चका-परोंता लगाकर पानी खींचने को सुविधाजनक और सुन्दर बनाया जाता था। चिचोली में पुनारे-नए मिलाकर 25 कुएँ और एक तालाब है लेकिन मुरम होने के कारण इसमें पानी नहीं ठहरता। एक तालाब अंग्रेजों के जमाने में अकाल के दौरान भी खोदा गया था।

1971 में कस्बे में बिजली आयी और तब मोटर लगाकर पानी लेने का चलन शुरू हुआ। नल योजना बनी तो कुछ पुराने कुएँ पूर दिए गए और कुछ का पानी कम हो गया। नतीजे में कुंओं में लगने वाली मोट या बावड़ियों की रहट या बावनबाल्टी भी ठप्प हो गई।