बाजरा की उन्नतशील खेती

Submitted by Hindi on Tue, 08/09/2011 - 16:32

परिचय


उत्तर प्रदेश में क्षेत्रफल की दृष्टि से बाजरा का स्थान गेहू, धान और मक्का के बाद आता है। कम वर्षा वाले स्थनों के लिए यह एक अच्छी फसल है। 40 से 50 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। बाजरा की खेती मुख्यत: आगरा, बरेली एवं कानपुर मंडलों में होती है।

भूमि का चुनाव


बाजरा के लिए हल्की या दोमट बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। भूमि का जल निकास उत्तम होना आवश्यक है।

(अ) संकुल प्रजाति

आई.सी.एम.बी.-155

डब्ल्यू.सी.सी.-75

आई.सी.टी.पी.-8203

राज 171

पकने के अवधि

80-100

85-90

70-75

70-75

ऊँचाई (सेमी.) में

200-250

185-210

70-95

150-210

दाने की उपज कुल/ हे.

18-24

18-20

16-23

18-20

सूखे चारे की उपज कुल/हे.

70-80

85-90

60-65

50-60

(ब) संकर प्रजाति

पूसा 322

पूसा 23

आई.सी.एम.एच. 451

 

पकने के अवधि

75-80

80-85

85-90

 

ऊंचाई (सेमी.) में

150-210

180-210

175-180

 

दाने की उपज कुल/हे.

25-30

17-23

20-23

 

बाली के गुण

40-50

40-50

50-60

 

बाली के गुण

मध्यम ठोस

मध्यम ठोस

मोटा ठोस

 



खेत की तैयारी :


पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य 2-3 जुताइयां देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लेना चाहिए।

बुवाई का समय तथा विधि :


बाजरे की बुवाई जुलाई के मध्य से अगस्त के मध्य तक सम्पन्न कर ले। बुवाई 50 सेमी की दूरी पर 4 सेमी गहरे कूड में हल के पीछे करें।

बीज दर :


4-5 किलोग्राम प्रति हे0

बीज का उपचार :


यदि बीज उपचारित नहीं है तो बोने से पूर्व एक किग्रा0 बीज को एक प्रतिशत पारायुक्त रसायन या थिरम के 2.50 ग्राम से शोधित कर लेना चाहिए। अरगट के दानो को 20 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोकर निकला जा सकता है

उर्वरको का प्रयोग :


भूमि परिक्षण के आधार पर उर्वरको का प्रयोग करें। यदि भूमि परिक्षण के परिणाम उपलब्ध न हो तो संकर प्रजाति के लिए 80-100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश तथा देशी प्रजाति के लिए 40-50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फास्फोरस तथा 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हे. प्रयोग करें। फास्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई से पहली ड्रेसिंग और शेष आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में जब पौधे 25-30 दिन के हो, देनी चाहिए।

सिंचाई :


खरीफ में फसल की वुबाई होने के कारण वर्षा का पानी ही उसके लिए पर्याप्त होता है। इसके अभाव में 1 या 2 सिंचाई फुल आने पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।

छटनी (थिंनिग) तथा निराई-गुड़ाई :


बुवाई के 15 दिन बाद कमजोर पौधों को खेत से उखाड़कर पौधे से पौधे की दूरी 10 -15से.मी. कर ली जाये। साथ ही साथ घने स्थान से पौधे उखाड़कर रिक्त स्थानों पर रोपित कर लें, खेत में उगे खरपतवारों को भी निराई-गुड़ाई कर के निकाल देना चाहिए एट्राजीन 50 % को 1.5-2.0 कि.ग्रा./हे. की दर से 700-800 ली. पानी में मिलाकर वुबाई के बाद व जमाव से पूर्व एकसमान छिडकाव करें। इनसे अधिकतर खरपतवार समाप्त हो जाते हैं

रोग:


बाजरा का अरगट:


पहचान: यह रोग केबल भुट्टों के कुछ दानो पर ही दिखाई देता है इसमें दाने के स्थान पर भूरे काले रंग के सींक के आकार की गांठें बन जाती हैं जिन्हें स्केलेरेशिया कहते हैं | संक्रमित फूलों में फफूंद विकसित होती है जिनमे बाद में मधु रस निकलता है। प्रभावित दाने मनुष्यों एवं जानवरों के लिए हानिप्रद होते हैं।

उपचार:


1. यदि बीज प्रमाणित नहीं हो तो बोने से पहले 20% नमक के घोल में बीज डुबोकर तुरंत स्केलेरेशिया को स्वयं अलग कर देना चाहिए तथा शुद्ध पानी से4-5 बार प्रयोग किया जाय। खेत में गर्मी की जुताई अवश्य करें।
2. फसल से फुल जाते ही निम्न फफूंद नाशकों में से किसी एक का छिड़काव 5-7 दिन के अंतर पर करना चाहिए।
(अ) जीरम 80% घुलनशील चूर्ण 2.00 कि.ग्रा. अथवा जीरम 27% तरल को 3.0 ली.।
(ब) मैन्कोजेब घुलनशील चूर्ण 2.0 कि. ग्रा./ हे.।
(स) जिनेब 75 % घुलनशील चूर्ण 2.0 कि.ग्रा. / हे.।

2. बाजरा का कंदुआ :


पहचान: कंदुआ रोग से बीज आकर में बड़े गोल अंडाकार हरे रंग के होते हैं, जिसमे पीला चूर्ण भरा रहता है।

उपचार:


1. बीज शोधित कर के बोना चाहिए।
2. एक ही खेत में प्रति वर्ष बाजरा की खेती नहीं करनी चाहिए।
3. रोग ग्रसित वालिओं को साबधानीपूर्वक निकलकर जला देना चाहिए।

Hindi Title


विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
1 -
2 -
3 -