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अमर उजाला कॉम्पैक्ट, 23 अक्टूबर 2010
आर्कटिक को पृथ्वी का फ्रिज (रेफ्रिजरेटर) भी कहा जाता है, क्योंकि पृथ्वी का ध्रुव यह बहुत अधिक ठंडा है। लेकिन वायुमंडल में प्रदूषण फैलने की वजह से अब यह भी अभूतपूर्व दर से गर्म होता जा रहा है। आर्कटिक का गर्म होना पूरी पृथ्वी के अस्तित्व के लिए खतरे का संकेत है। आर्कटिक के लगातार गर्म होने की घटना के कारण पूरा उत्तरी गोलार्ध सबसे अधिक संकट में है। यह बात अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने बताई, जिसमें कुल 69 सदस्य हैं।
शोधकर्ताओं ने बताया कि 2009-2010 में आर्कटिक के ताप में अप्रत्याशित वृद्घि हुई है, जिसके कारण वहां के ग्लैशियर काफी तेजी के साथ पिघल रहे हैं और समुद्र का जल-स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। यहां तक कि आर्कटिक का ग्लैशियर पिघलकर लगातार पतला होता जा रहा है। शोधकर्ताओं ने बताया कि पूरा आर्कटिक बर्फ से ढका हुआ है, लेकिन बढ़ते ताप के कारण बर्फ की परत हटती जा रही है।
प्रमुख शोधकर्ता जेन लुबचेनको ने बताया कि आर्कटिक के वातावरण में बदलाव के कारण वायुमंडलीय सर्कुलेशन में भी बदलाव हो रहा है ओर इसके कारण पूरी पृथ्वी का मौसम असमान गति से परिवर्तित हो रहा है। उन्होंने बताया कि आर्कटिक के वातावरण में बदलाव से दुनिया का कोई हिस्सा प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। इस घटना के कारण मनुष्यों, जानवरों के साथ-साथ पूरी प्रकृति को नुकसान है। उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया में मौसम को नियंत्रण करने में आर्कटिक के वातावरण का बहुत बड़ा हाथ होता है। आर्कटिक पक्षियों की कई प्रजातियों, स्तनपायी जंतुओं और मछलियों के जीवन का रक्षक भी है। इसलिए इसका तापमान बढ़ना सबके लिए बेहद खतरनाक है।