बढ़ती झीलों से सैलाब का खतरा 

Submitted by Shivendra on Tue, 03/09/2021 - 11:28
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इंडिया हिंदी वाटर पोर्टल

 बढ़ती झीलों से सैलाब का खतरा Source: needpix.com फोटो

07 फरवरी सुबह तबाही की शुरुआत उत्तराखंड के जोशीमठ से 15 किलोमीटर दूर रेणी गांव से हुई थी।अचानक एक गलेशियर टूटने से ऋषिगंगा नदी का जलस्तर बढ़ गया। और देखेते ही देखते नदी का पानी सैलाब में बदल गया। इससे सबसे बड़ा नुकसान ऋषि गंगा पावर पोजेक्ट को हुआ । सैलाब के कारण  डैम की दीवारे पूरी तरह टूट गई,और कुछ मिनटों में मलबा टर्नल में भर गया। टर्नल में 200 से अधिक लोग काम कर रहे थे। जिसमें से सिर्फ 35 लोग ही बच पाए है। 

ऋषि गंगा में आये इस जलजले के बाद भी लोगों में एक और जलजले का डर सता रहा है। क्योंकि रैणी गांव के ऊपर एक झील बनी है जो करीब 350 मीटर लंबी है, घटना के कुछ दिन बाद एसडीआरएफ की 8 सदस्य  टीम भी हालात का जायजा लेने के लिए वहां पहुंची टीम का कहना है कि झील से पानी का बहाव धीरे-धीरे रीस रहा है। 

झीले किसे कहते है और ये कैसे बनती है?

चारों और से धरती से घिरे हुए किसी जल क्षेत्र को ही झील कहा जाता है।कई झीलें काफी बड़ी होती हैं जबकि कुछ छोटी। कुछ गहरी होती हैं तो कुछ उथली। कुछ मीठे पानी की झीलें होती हैं तो कुछ खारें पानी की। राजस्थान में खारे पानी की कुछ झीलें हैं जिनमें से सांभर झील बहुत मशहूर है।

दुनिया की सबसे बड़ी झील कौन सी है? यह है कैस्पियन झील, जिसे कैस्पियन सागर भी कहते हैं। इस झील का निर्माण धरती की हलचल के कारण ही हुआ। दरअसल, धरती की हलचल भूमि की एक परत के उठाव का कारण बनी। इस उठाव के चलते कालासागर (ब्लैक सी) का पानी फिर से उसमें में नहीं जा सका और इस तरह निर्माण हुआ कैस्पियन झील का जो दुनिया की सबसे बड़ी (खारे पानी की) झील हैं। मीठे पानी के झीलों में अमेरिका की सुपीरियर झील संसार की सबसे बड़ी झील है।

दुनिया की सबसे गहरी झील बेकाल झील है जो पूर्वी साइबेरिया में है। आखिर ये झीलें बनती कैसे हैं?कुछ झीले ज्वालामुखी से बनती है ज्वालामुखी के शांत  होने के बाद उनके मुख में बारिश का पानी जामा होता रहता है और धीरे-धीरे वह झील में तब्दील हो जाती है।  महाराष्ट्र के बुलढाना जिले में लोनार झील भी कुछ इसी तरह बनी  है। ऐसी झीलें देखने में बड़ी सुंदर और आकर्षक होती हैं। इनका पानी बिल्कुल नीला और साफ होता है।

अपरदन यानी कटाव से भी झीलों का निर्माण होता है। जब नदियां अपने रास्ते की घुलनशील चट्टानों को काट देती हैं तो बड़े-बड़े गड्ढें बन जाते हैं। इन गड्ढों में पानी भर जाने पर ये झीलों में बदल जाती है। आयरलैंड की शेनन नदी से इसी प्रक्रिया के जरिए ही लीन और डर्ग झीलें बनीं।भूस्खलन यानी चट्टानों के खिसकने से भी झीलें बन सकती हैं। असल में चट्टानों की उलट-पुलट से कभी नदी का पानी रुक जाता है तो झीलें बनती हैं।

गढ़वाल की मोहना झील भी गंगा के प्रवाह से हुए विशाल भूस्खलन से बनी है और स्फीति घाटी की चंद्रताल झील भी भूस्खलन से बनी है। स्फीति घाटी की चंद्रताल झील भी भूस्खलन का ही परिणाम है। मोंटाना की भूकंप झील भी इसी तरह की झील का उदाहरण है।डेल्टा प्रदेश में नदियों का रास्ता बड़ा टेढ़ा-मेढ़ा होता है। मिट्टी के खिसकने से कभी-कभी धारा रुक जाती है। ऐसे में नदी को नया रास्ता ढूंढना पड़ता है और जहां नदी की धारा रुक गई थी वहां झील बन जाती है मिसीसिपी की पांचस्ट्रियन झील इसी का उदाहरण है।

हिम नदों में कटाव और जमाव से भी अनगिनत झीलें अस्तित्व में आती है। बर्फ की चट्टानों द्वारा जमा किया गया कचरा ही इस कटाव और जमाव के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होता है। घुमावदार पहाड़ियों से ऐसी रुकावटों से छोटी पहाड़ी झीलें बनती हैं।हिमघाटियों के मुंह पर जब कचरा रुकावट पैदा करता है तो भी झीलें बनती हैं। लेकिन इस तरह बनने वाली झीलें लंबी और संकरी होती हैं। न्यूयार्क की फिंगर झील, इंग्लैंड की डिस्ट्रिक झील, स्वीडन की ग्लिंट लाइन झील और इटली की कोमी, गार्दा और मेगोइर इसी तरह की झीलों के उदाहरण हैं।

जलवायु परिवर्तन से झीलों की संख्या बढ़ रही है

जलवायू परिवर्तन के कारण गिलेशियर  तेजी से पिघल रहे है जिससे कुत्रिम झीलों का निर्माण में काफी बढ़ोतरी हुई  है ।शोधकर्ताओं  के अनुसार पिछ्ले कुछ वर्षों में बहुत झीलों का निर्माण हुआ है चिनाब, रावी और ब्यास में  100  से अधिक झीले बनी है । वर्ष 2014 में सतलज में लगभग 391 झीलें थी जो बढ़कर 500 हो गई है । इसी तरह चिनाब घाटी  में 120, ब्यास में 100 और रावी में 50 झीलों का निर्माण हुआ है। 

वैज्ञानिकों  का मानना है जिस दर से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। उसे देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हिमालय क्षेत्र में  आने वाले वर्षों में झीलों का बनना जारी रह सकता है जो वाकई में खतरनाक हो सकता है। अगर इनका आकार बढ़ेगा तो इनका टूटने का खतरा बना रहेगा। अगर ये टूटती है तो केदारनाथ और तपोवन चमोली जैसा सैलाब एक फिर देखने को मिल सकती  है।