औषधीय वनस्पतियां अब संकट मेंश्रीनगर (गढ़वाल): विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में लगभग चार अरब लोग औषधीय वनस्पतियों पर विश्वास करते हैं और प्रयोग में लाई जाने वाली कुल दवाइयों में से 25 प्रतिशत वनस्पतियों से प्राप्त रसायनों से तैयार की जाती हैं। हिमालय में ऐसी जड़ी-बूटियों की प्रचुरता के मद्देनजर उनके सावधानीपूर्वक दोहन से क्षेत्र के विकास की प्रबल संभावनाएं हैं। पहले ये जड़ी-बूटी केवल स्थानीय स्तर पर बहुत कम मात्रा में प्रयोग में लाई जाती थीं, परन्तु आजकल कुछ प्रजातियों के वाणिज्यीकरण से उनकी मांग और दोहन बहुत बढ़ गया है। प्राकृतिक आवासों से इन वनस्पतियों के अत्यधिक दोहन, वन विनाश से उनके परिवेश में कमी और उच्च हिमालयी बुग्यालों (चरागाहों) पर अत्यधिक चुगान के दबाव से सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में जड़ी-बूटियों का अस्तित्व संकट में आ गया है।
हिमालय अपने प्राकृतिक वन सम्पदा के कारण जैव संवेदी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। हिमालय के ऐसे ही एक क्षेत्र सिक्किम में 7096 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में करीब पांच हजार पुष्प वनस्पतियां पाई जाती हैं। इनमें से करीब चार सौ वनस्पतियां औषधीय उपयोग में लाई जाती हैं। गोविन्द बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान की सिक्किम इकाई तांदोग के वैज्ञानिक डॉ. एल.के.राय, डॉ. पंकज प्रसाद रतूड़ी एवं डॉ. एकलव्य शर्मा ने सिक्किम हिमालय की छह वनस्पतियों अतीस, जटामासी, वनककड़ी, कुटकी, चिरायता, पाषाण भेद में से प्रथम चार का अस्तित्व खतरे में पाया। चिरायता के अतिरिक्त पांचों अन्य प्रजातियाँ उच्च हिमालय क्षेत्रों में ही उगती हैं, जबकि चिरायता मध्यम ऊंचाइयों की वनस्पति है।
अतीस की सूखी जड़ें बुखार एवं शारीरिक दर्द में काम लाई जाती हैं। पसीना लाने वाली दवा, पेशाब संबंधी बीमारी, कफ एवं उदर विकारों में भी इसे वैकल्पिक दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वनककड़ी की जड़ें उल्टीव दस्त रोकने, पेट साफ करने वाली औषधि और वैकल्पिक तौर पर रक्तशोधक के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। इसकी जड़ों में पोडो फाइलाटॉक्सिन नामक रसायन होता है, जो कैंसररोधी है। जटामासी एक शाकीय पौधा है, जो पसीना लाने वाली दवा है। मरोड़ एवं ऐंठन, मिर्गी, हिस्टीरिया, हैजा आदि में भी इसका इस्तेमाल होता है। चिरायता का जलीय निक्षेप बुखार में प्रयोग लाया जाता है। यह दमा, अजीर्ण (अपच) और शक्तिहीनता (दुर्बलता) में प्रयुक्त होती है। मियादी बुखार और अम्लता की यह रामबाण औषधि है।
पाषाणभेद एक बेलयुक्त शाक है। डायरिया और उल्टी में इसका प्रयोग लाभदायक होता है। बुखार, कफ और फेफड़ों के संक्रमण में भी इसका उपयोग किया जाता है। कुटकी का टॉनिक के रूप में प्रयोग होता है। इसके अतिरिक्त यह बुखार और बिच्छू डंक में भी प्रयोग की जाती है। बाजार में पहुंचने वाली सभी हिमालयी औषधीय वनस्पतियां का दोहन जंगलों से ही किया जाता है। ज्यादातर व्यापारी इनका दोहन अशिक्षित व अप्रशिक्षित मजदूरों से परम्परागत तरीके से करवाते हैं। इस प्रकार के दोहन में सामान्यत: पौधों को जड़ से उखाड़ कर प्रयुक्त किया जाता है, जिससे पौधे के पुन: अंकुरण की संभावना ही समाप्त हो जाती है।
Source
नवभारत टाइम्स