बासमती चावल से बढ़ रहा है जल संकट

Submitted by Shivendra on Sat, 12/19/2020 - 14:59
Source
इंडिया टुडे

 बासमती चावल से बढ़ रहा है जल संकट needpix.com फोटो

भारत मे बासमती को लंबे और खुशबूदार चावल के रूप में जाना जाता है इसका वैज्ञानिक नाम है ओराय्ज़ा सैटिवा है। भारत इसका सबसे बड़ा निर्यातक देश है उसके बाद भारत के ही पड़ोसी राज्य पाकिस्तान, नेपाल,, बांग्लादेश आते है बासमती की कई प्रजातियां है जो बाज़ार में  काफी महंगी बिकती है। बासमती की खुशबू के कारण ही घरों में ये स्पेशल व्यंजन के रूप में परोसी जाती है।जन्मदिन,शादी-त्योहारो या खास कार्यक्रमों में ही इसे पकाया जाता है। लेकिन जितनी ये खुशबूदार होती है उससे अधिक पानी पी गटक जाती है

दरसअल, भारत मे उगाई जाने वाली प्रमुख्य फसलों में से एक धान है। बासमती भी इसी ही की दूसरी प्रजाति के रूप में जानी जाती है। लेकिन धान के साथ सबसे बड़ी समस्या है कि इसमें पानी की खपत अधिक होती है साल में उगाने से लेकर तैयार होने तक ये बहुत पानी पी जाती है जिसका असर भूजल पर पड़ता है। आइये इस रिपोर्ट से समझते है इस पूरे मामले को।

तेल के भाव की तरह भविष्य में पानी के भी हलात हो सकते है .इसलिए पानी को भी एक करेंसी की तरह खर्च करना चाहिए। बात वर्ष 2014- 15 की है भारत ने करीब 37.1 लाख चावलों के निर्यात के साथ 10 ट्रिलियन लीटर पानी भी निर्यात किया था। दरअसल, इन धानो की फसल को  तैयार करने में 10 ट्रिलियन लीटर पानी की खपत हुई थी। तो हम कह सकते है की धान के साथ हमने पानी को भी निर्यात किया है अगर इसे वाटर करेंसी के रूप में मापे तो हम एक बहुत बड़ी वाटर करंसी लगा रहे है। 

लगातार बासमती के निर्यात में हो रहा है इजाफा

अप्रत्यक्ष रूप से घरेलू स्तर पर बोझ बढ़ रहा है। इस हिसाब से देखें तो बासमती का निर्यात एक तरह से काफी भारी पड़ रहा है। भारत दुनिया सबसे बड़ा धान निर्यातक  देश है  जो 37 फीसदी बासमती निर्यात करता है। बासमती की यह मात्रा बहुत बढ़ रही है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय मार्च में जारी रिपोर्ट के अनुसार 2014- 15 से अबतक बासमती के निर्यात में करीब 19 फीसदी का उछाल आया है। 

खेती से पंजब हरियाणा जैसे राज्यों में बढ़ा जल संकट 

बासमती का निर्यात आर्थिक दृष्टि से देखे बहुत सकून देने वाला है लेकिन पानी के हिसाब से देखे तो यह बहुत भारी पड़ रहा है। पंजाब में खेत का कुल रकबा लगभग 7.8 मिलियन हेक्टेयर है जिसमें 45 प्रतशित में गेहूं और 40 प्रतिशत में धान की खेती की जाती है। यानी 85 प्रतिशत खेतों में केवल 2 फसल ही पैदा की जाती है और इन दोनों फसलों में ही सबके अधिक पानी का प्रयोग होता है यहाँ फसलों की सिंचाई के लिये भूजल का अधिक इस्तेमाल किया जाता है। सेंटर फॉर ग्राउंड वॉटर के अनुसार पूरे पंजाब राज्य में करीब 80 प्रतिशत  भू जल का अति दोहन किया जा रहा है। सबसे बड़ी पानी की समस्या मध्य पंजाब में हो रही है जहाँ हर साल 0.74 मीटर से 1 मीटर तक की दर से जलस्तर में गिरावट  देखने को मिल रही है। फतेहगढ़, मोगा,कपूरथला,पटियाला बरनाला में हालात सबसे खराब है। 

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक जल संसधान का पानी का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा खेती में प्रयोग हो रहा है। और 10 प्रतिशत घरों, उद्योगों में इस्तेमाल होता है। पंजाब में पानी की  कितनी कमी है इस रिपोर्ट से ही अंदाजा लगा सकते है पूरे राज्य में पानी की सालाना मांग 60 बिलियन क्यूबिक मीटर है जबकि मौजूदा समय मे सिर्फ 46 बीसीएम पानी ही उपलब्ध है।

 1960 से 2018 तक पंजाब में धान के रकबा भी बढ़े है रकबा 20 हज़ार हेक्टेयर से 30 लाख की बढ़ोतरी हो गई है .साथ ही प्रदेश में भू जल से पानी इलेक्ट्रॉनिक पंपो की संख्या 16 फ़ीसदी का इजाफा हुआ है 

क्या है इसका समाधान 

इसका सबसे बड़ा समाधान ये है कि अगले 6 से 7 सालों में धान की खेती के क्षेत्रों को 10 लाख हेक्टेर कम किया जाए और विकल्प तौर धान की जगह खरीफ की फसलें उगाई जाये। जहाँ धान की फसल को 160 सेमी पानी की आवश्यकता होती है वही  मक्का और कपास की फसलों में  25 से 40 सेमी पानी का प्रयोग होता है। पंजाब सरकार के जल संसाधन विभाग के तहत आने वाले हाइड्रोलॉजी सेल का अनुमान बताता जी कि अलग अलाव  फसल लगाने   की कोशिशें से करीब 2 अरब घन मीटर सिंचाई से पानी की बचत हुई है।