भाग नदी भाग

Submitted by editorial on Tue, 07/03/2018 - 14:00
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स्वभाव नाटक दल


भाग नदी भागभाग नदी भाग इस साल अप्रैल से, स्वभाव नाटक दल नदी और पानी पर आधारित एक नाटक को लेकर यात्रा कर रहा है। बांग्ला भाषा में ‘राखे नोदी मारे के’ नाम से इस नाटक की अब तक 12 प्रस्तुतियाँ बंगाल के अलग-अलग स्कूलों, बच्चों के लिये आश्रमों, पर्यावरण पर काम कर रही सामाजिक संस्थाओं और मोहल्लों में हो चुकी हैं।

जून में कुछ और शो करने के बाद, हम इसी नाटक के हिन्दी अनुवाद ‘भाग नदी भाग’ को लेकर अगस्त और सितम्बर में देश के अलग-अलग हिस्सों में जाना चाहते हैं। हम ऐसे लोगों/संस्थाओं/संगठनों को ढूँढ रहे हैं जो हमारे साथ जुड़ना चाहते हैं एवं हमारा नाटक आयोजित करना चाहते हैं।

भाग नदी भाग

‘भाग नदी भाग’ एक घण्टे का हिन्दी नाटक है जो पानी की कहानी नदी के माध्यम से बताता है। एक अजनबी आकर मस्त मुक्त बहती नदी शिवनाथ को उसके दोस्तों से दूर ले जाकर उसे बाँध में सीमित कर देता है। शिवनाथ को जबरदस्ती पाइप लाइन में बहाकर उसे टैंकरों के द्वारा बाँटता है, और उसे मिनरल वाटर बोतलों में डाल देता है। क्या शिवनाथ के दोस्त उसे बचा पाएँगे या फिर शिवनाथ इंसान के लालच का एक और शिकार बन जाएगा?

नाच-गानों से भरपूर यह नाटक गाँव वालों, शहर वालों, बच्चों और बड़ों-सब तक पहुँचने की कोशिश करता है। ‘नदी’, ‘जंगल’, ‘मिट्टी’ जैसे किरदारों को लेकर ये नाटक धरती पर जीवन के भविष्य के बारे में सवाल उठाता है। क्या इंसान प्रकृति को वश में कर सकता है? क्या दोस्ती ताकत को हरा सकती है विश्वव्यापी जल संकट के पीछे की सच्चाई क्या है और जल संकट का नदी के संकट के साथ क्या रिश्ता है?

यह नाटक ही क्यों

पानी की कमी, जल प्रदूषण, जलस्रोतों का विनाश - शायद हमारे समय का सबसे बड़ा संकट पानी का संकट है। स्थानीय स्तर पर हैडपम्प के झगड़ों से लेकर राज्यों और राष्ट्रों के बीच नदी के पानी को बाँटने पर युद्ध - सब पानी के लिये लड़ रहे हैं। वास्तविक समस्या अभाव की नहीं बल्कि पानी बाँटने में समानता की है। अमीर और गरीब के बीच, ऊँची और नीची जातियों के बीच, कम्पनी और समुदायों के बीच शहरों और गाँवों के बीच।

नदियाँ, खासकर आज अपने अस्तित्व को बचाने की जंग लड़ रही हैं। 1998 में शिवनाथ, महानदी की सबसे लम्बी उपनदी, का पानी बेचने का अधिकार एक प्राइवेट कम्पनी को दिया गया। सवाल यह उठता है कि नदी क्या किसी की जायदाद है जिसे वह अपनी मर्जी से खरीद और बेच सकता है? प्रकृति क्या कोई बाजार में बिकने वाला माल है? प्राकृतिक संसाधनों का शोषण और उन पर निर्भर समुदायों का शोषण अलग नहीं किया जा सकता और इसीलिये हमारा नाटक जरूरी है। प्रकृति को बचाने की एक पुकार, अपने आप को बचाने की एक पुकार।

स्वभाव नाटक दल

स्वभाव नाटक दल कोलकाता स्थित पीपल्स लर्निग सेंटर और नाटक संगठन है जहाँ अलग-अलग जगहों से युवा जुड़े हैं।हम पिछले दस सालों से सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर नाटक कर रहे हैं। 2013-14 में हमने विस्थापन के बारे में ‘मिस्टर इंडिया’ नामक नाटक के पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, महाराष्ट्र और गोवा के गाँवों और शहरों में 34 शो किये थे। हमने पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में नाटक दलों की स्थापना में भी मदद की है। नाटक तैयार करते वक्त समुदाय में एक साथ रहना हमारी थियेटर प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा है। वर्तमान टीम के सभी सदस्या फुल-टाइम नाटक-कर्मी हैं।

हम आयोजकों से क्या चाहते हैं

किसी भी गाँव या शहर के स्कूल, कॉलेज, सामुदायिक भवन, छत, आँगन, गोदाम इत्यादि में ये नाटक किया जा सकता है। हम आयोजकों से निम्न आशा रखते हैं।

1. नाटक दल के 8 सदस्यों के लिये भोजन, रहने और स्थानीय यात्रा की व्यवस्था ।
2. सबसे बेहतर यह रहेगा अगर कोई संगठन लगभग 5-7 दिनों तक आयोजन कर सके, जिससे हम 3-5 शो कर सकते हैं। लेकिन अगर आप एक या दो शो भी आयोजित कर सकते हैं, तो भी सम्पर्क करें।
3. इस नाटक का खर्चा 8000 रुपए प्रति शो पड़ता है। अगर कोई अधिक देने में सक्षम है, यह उन लोगों के लिये शो करने में मदद करेगा जो कम दे पाएँगे।
4. मंचन हेतु कम-से-कम 20x20 फीट की समतल जगह (ऊबड़-खाबड़ नहीं और ऊँचा मंच नहीं, बीच में खम्भे नहीं)
5. मंच के ऊपर छाँव रहे तो बेहतर है, ताकि धूप और बारिश से बच सकें। कलाकार माइक्रोफोन का उपयोग नहीं करेंगे इसलिये मंचन स्थल का घिरा होना ठीक रहेगा।
6. सेट हेतु पर्दे को लटकाने की व्यवस्था (दो मजबूत खम्भे अथवा हुक)
7. मंच के सामने से 2000 वाट के पीले हैलोजन बल्ब (1000x2 या 500 x 4)
नाटक के आयोजन/जानकारी के लिये सम्पर्क करेः ईमेल : vartika.poddar@gmail.com
मो. नं. : 9830032014 (वर्तिका), 9831794910 (अंकुर)