भैंसा

Submitted by Hindi on Sat, 08/27/2011 - 12:38
भैंसा (Buffalo) अंगूलेटा (Ungulata) गण या खुरदार जानवों के बोविडी (Bovidae) का प्रसिद्ध जीव है। इसकी सींग बड़ी, जड़ के पास चौड़ी और पीछे की ओर गोलाई में धूमी रहती है। ये भारत ओर मलाया में प्रागैतिहासिक काल में ही जंगली जातियाँ, अफ्रीका ओर एशिया के जंगलों मे पाई जाती हैं। रंग रूप में पालतू जातियों से मिलते जुलते रहने पर भी जंगली जातियाँ पालतू पशुओं से जोड़ा नहीं बाँधतीं।भारत ओर मलाया के पश्चात्‌, भैंसे मिस्र, इटली, गैस्कोनी, ऑस्ट्रेलिया और हंगरी आदि में भी काफी संख्या में फैल गए हैं, जहाँ उनसे, खेती और बोझा ढोने का काम लिया जाता है। मादा दूध के लिये पाली जाती है।हमारे देश के भैंसे कद में बैलों से बड़े होते हैं, लेकिन ये उनके समान आज्ञाकारी और बुद्धिमान नहीं होते। ये खेती, ढुलाई और गाड़ी खींचने का काम करते हें। मादा गाय से अधिक दूध देती हैं, जो गाढ़ा और पौष्टिक होता है।

ये 4 से 4.5 फुट तक ऊँचे जानवर है, जिनके शरीर का रंग कलछौह, या गाढ़ा सिलेटी, रहता है। इनकी सींग स्थायी रहती है। ये ठोस हड्डी की होती हैं, जिनके ऊपर कड़ी खोल की परत चढ़ी रहती है। ये टेढ़ी, जड़ के पास चौड़ी और पीछे की ओर घूमी रहती हैं। भैंसों को कीचड़ में पड़े रहना बहुत पसंद है और जंगली एवं पालतू जातियाँ अपना काफी समय दलदलों में ही बिताती है।

अफ्रीका के जंगली भैसों की दो निम्नलिखित मुख्य जातियाँ पाई जाती है:

1. केप भैंसा (Cape Buffalo) - इसका प्राणिविज्ञानीय नाम सिनसेरस कैफर (Syncerus caffer) है। यह सहारा के दक्षिणी भाग के जंगलों का निवासी है। इसका सिर छोटा होता है। कान कटावदार और रीढ़ पर के बाल पीछे की ओर मुड़े रहते हैं।

केप भैंसे काले रंग के, पाँच फुट ऊँचे जानवर हैं, जिनकी सींग जड़ के पास काफी चौड़ी रहती हैं और जो पहले नीचे की ओर झुककर पीछे जाते जाते, ऊपर की ओर मुड़ जाती है। ये खुले पहाड़ी ओर झाड़ी से भरे हुए जंगलों में पानी और कीचड़ के आस पास ही रहना पसंद करते हैं।

इस जाति के भैंसे बहुत कद्दावर होते हैं और इन्हें सिंह और बाघ तक आसानी से नहीं मार पाते। इनका शिकार बहुत खतरनाक होता है, क्योंकि घायल हो जाने पर ये बहुत ही भयंकर हमला करते हैं।बौना भैंसा या ड्वार्फ बफैलो (Dwarf Buffalo) - यह अफ्रीका के कांगो के जंगलों का निवासी है, जो ऊँचाई में 3 से 3.5 फुट तक पहुँच जाता है। ये खैरे रंग के होते हैं, नर पुराने हो जाने पर काले हो जाते हैं। इनकी सींग छोटी और कम घुमावदार होती है।

एशिया के जंगली भैंसों की तीन मुख्य जातियाँ पाई जाती है:

1. भारत का अरना (Arna) भैंसा (Anca bubalis) - यह कद में काफी ऊँचा होकर भी शकल सूरत में हमारे यहाँ के पालतू भैंसे जैसा ही होता है। यह काले या गाढ़े सिलेटी रंग का जानवर है, जिसकी टाँगे धुटनों तक गंदे सफेद रंग की रहती है। इसका तीन, साढ़े तीन फुट लंबा सींग, चौड़ा, तिकोना और पीछे की और अर्द्धचंद्राकार घूमा रहता है। सिर बड़ा होता है और कान छोटे तथा बिन कटाव के हाते हैं। रीढ़ पर के बालों की पंक्ति आगे की ओर मुड़ी रहती है। ये प्रात: तराई के जंगलों में ऊँची घास और नरकुलों के बीच दलदलों के आसपास रहना अधिक पसंद करते हैं

अरने झुँड में रहने वाले जानवर हैं, जो बहुत निडर और साहसी होते है। इनके गिरोह पर शेर जैसे खूँखार और पराक्रमी जीव को भी हमला करने की हिम्मत नहीं पड़ती। ये वैसे तो सीधे सादे जीव हैं, लेकिन घायल हो जाने पर ये बहुत भयंकर हो जाते हैं और हाथियों तक पर हमला कर बैठते हैं इनका शिकार खतरे से खाली नही रहता।

इन्हीं जंगली भैंसों को पालतू करके हमारे देश की पालतू जाति बनी हैं। इनकी मादा 10 महीने पर बच्चा देती है।

2. फिलीपाइन का टमराऊ (tamrao) भैंसा (anoa mindorensis) -श् यह कद में अरना से छोटा, करीब 3 1/2 फुट ऊँचा होता है। इसका सींग छोटा और ऊपर की ओर उठा रहता है। यह सीधा जीव है जो अरना या कोप भैंसे की तरह खूंखार नहीं होता।

3. सेलेबीज (Celebes) का छोटा भैंसा (Anoa mindorensis) - यह कद में तीन फुट से कुछ ही अधिक ऊँचा होता है। इसका सींग पतला, नुकीला, ऊपर की ओर उठा हुआ और भैसों के की अपेक्षा हरिणों के सींगों के अधिक अनुरूप होता है। इसके शरीर की बनावट भी भारी भरकम न होकर हलकी होती है।

सुरेश सिंह कुँअर

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