भारत में जलवायु परिवर्तन

Submitted by admin on Fri, 04/11/2014 - 09:39
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पर्यावरण विमर्श
जी-20 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए पश्चिमी देश स्वच्छ पर्यावरण के नाम पर शुल्कों की दीवार खड़ी कर रहे हैं। इसके तहत आयात पर भी टैक्स लगाने का जोड़-घटाव किया जाएगा। सन् 2019 तक जलवायु परिवर्तन पर कोई ग्लोबल समझौता होता नहीं दिखता। ऐसे में अमेरिका वैसे देशों के आयात पर इकतरफा सीमा शुल्क लगाने की तैयारी कर रहा है, जिन्होंने अभी तक उत्सर्जन कम करने के लिए कदम नहीं उठाए हैं।वायुमंडलीय परिसंचरण में परिवर्तन होने तथा पृथ्वी वायुमंडल सिस्टम के पांच संघटकों जैसे-वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल, जीवमंडल तथा हिममंडल में धरातल पर प्राप्त सौर्य ऊर्जा तथा सौर्य ऊर्जा के वितरण, पुनर्वितरण एवं अवशोषण के संदर्भ में होने वाली अंतःक्रियाओं में परिवर्तन के कारण जलवायु में परिवर्तन होते हैं। जलवायु परिवर्तन करने वाली इस तरह की अंतःक्रियाओं के कारणों के मुख्य रूप से तीन स्रोत होते हैं-

1. बाह्य स्रोत या पृथ्वीतर स्रोत, 2. आंतरिक स्रोत या पार्थिव स्रोत तथा 3. मानव-जनित स्रोत। जलवायु परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। जलवायु शास्त्रियों और मौसम वैज्ञानिकों में अतीत के ऐसे अनेक जलवायु परिवर्तनों के प्रभाव ढूंढ निकाले हैं। भारत में भी अतीत के जलवायु परिवर्तनों के अनेक संकेत पाए गए हैं। सिकंदर के आक्रमण के पहले तक राजस्थान का क्षेत्र आर्द्र और हरा-भरा था। तभी यहां सिंधु घाटी की समृद्ध संस्कृति का विकास हो पाया था। दामोदर, सोना आदि नदियों के क्षेत्र घने, सदाबहार विषुवतीय वनों से आवृत थे, जिन जमीन के अंदर दब जाने से ही इन क्षेत्रों में कोयले का निर्माण हुआ है। समुद्र तटों के अध्ययन से अनेक बार सागर तल के ऊपर उठने एवं नीचे गिरने के साक्ष्य मिलते हैं। महाभारतकालीन द्वारका ऐसे ही जल-प्लावन से सागर में डूब गई थी।

भारत के लिए जलवायु परिवर्तन का मुद्दा मुख्यतः चार कारणों से महत्वपूर्ण है-

1. पहला, यहां की अर्थव्यवस्था पूर्णतः कृषि पर निर्भर है। कृषि के लिए जल का महत्व स्वयंसिद्ध है। पहले ही मानसुन की अनिश्चितता की वजह से भारतीय कृषि उसका शिकार रही है। तेजी से बदलते मौसम के मिजाज और पिघलते ग्लेशियरों ने इस समस्या को और भी बढ़ाया है। देश का अन्नदाता किसान जलवायु परिवर्तन की वजह से फसल के नष्ट होने से आत्महत्या करने को विवश है। इसलिए हमें ऐसी आधारभूत संरचना पर फोकस करना होगा, जो बदलते मौसम और सूखा तथा बाढ़ के कारण फसलों के पैटर्न में बदलाव के लिए तैयार रहे।

2. दूसरा, भारत का काफी बड़ा क्षेत्र समुद्र तट से लगा है। इसलिए समुद्र तट वाले मुंबई, चेन्नई जैसे शहरों में इसका व्यापक प्रभाव पड़ने की पूरी संभावना है।

3. तीसरा, जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य सुरक्षा से भी अमिट संबंध है। लू, तूफान, बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं के बढ़ने से लोगों के जानमाल की हानि तो होती ही है। ओजोन परत में छेद के बढ़ते जाने से अल्ट्रावायलेट किरणों की मात्रा बढ़ने से मोतियाबिंद, इंफेक्शन, सांस की बीमारियां बढ़ती हैं। साथ ही पेचिश, हैजा, मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, फाइलेरिया और कुपोषण से भी प्रतिवर्ष हजारों लोग असमय में काल-कवलित हो जाते हैं।

4. सूचना क्रांति के दौर में ई-कचरा भी भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 20.000 टन कचरा विदेशों से राजधानी में आ रहा है। अकेले भारत में लगभग 3.80 लाख टन ई-वेस्ट सालाना निकल रहा है और इसके आगामी 5 वर्षों में 41 लाख टन हो जाने की उम्मीद है। ई-कचरे में सीसा, कैडमियम, पारा, निकल, लिथियम, प्लास्टिक, एल्यूमीनियम आदि धातुएं शामिल होती हैं, जो पर्यावरण के साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी खतरा हैं। इसलिए रिसाइक्लिंग की टेक्नोलॉजी में सुधार और इस बाबत कठोर नियमों और कानूनों की सख्त जरूरत है।

जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने हेतु 8 मिशन निम्नानुसार हैं-

1. राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन-भारत में वर्ष भर 250-300 दिन धुप खिली रहती है, इसलिए सौर-ऊर्जा से बिजली उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन अभी इसकी लागत प्रति मेगावॉट 20-22 करोड़ है, जबकि कोयेले से बिजली बनाने में यह खर्च लगभग 5 करोड़ रुपए आता है, इसलिए इस मिशन के अंतर्गत सौर बिजली सस्ती बनाने पर जोर है।

2. ऊर्जा क्षमता बढ़ाने से संबंध मिशन- इसके तहत ऐसी टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दिया जाएगा, जो कम ऊर्जा खर्च करेगी। 42 फीसदी ऊर्जा उद्योगों में खर्च होती है और 31 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन उद्योगों से होता है।

3. रहन-सहन के लिए मिशन- घरों में 13.3 फीसदी ऊर्जा की खपत होती है। कम ऊर्जा खपत करने वालों आवासों का विकास किया जाएगा। कचरे की रि-साइक्लिंग से ऊर्जा पैदा की जाएगी। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को बेहतर किया जाएगा।

4. जल संरक्षण मिशन- भारत में प्रतिवर्ष 4000 अरब क्यूबिक मीटर पानी बरसता है, लेकिन सतह पर भूजल रिचार्ज के रूप में इसमें से सिर्फ 1000 अरब क्यूबिक मीटर का ही इस्तेमाल हो पाता है। मिशन के तहत इस पानी के संरक्षण तथा जरूरी तकनीकों के विकास पर ध्यान दिया जाएगा।

5. हिमालय के लिए मिशन-हिमालय के ग्लेशियरों की भूमिका महत्वपूर्ण है, नदियों की खातिर ग्लेशियरों को पिघलने से बचाना आवश्यक है।

6. ग्रीन इंडिया मिशन-इस मिशन के अंतर्गत वनों के विकास पर जोर दिया जाएगा। राष्ट्रीय वन नीति में 33 फीसदी भूभाग को वनाच्छादित बनाने का लक्ष्य है। दूसरा लक्ष्य जैवविविधता को बढ़ावा देना है।

7. टिकाऊ कृषि मिशन- जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव कृषि पर पड़ेगा। इससे लगभग 60 फीसदी लोगों को रोजगार मिला हुआ है और एक अरब से ज्यादा लोगों के लिए भोजन जुटाया जा रहा है, इसलिए मिशन में टिकाऊ कृषि पर जोर दिया गया है।

8 ज्ञान का राजनीतिक मिशन- इसके तहत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर उनके खतरों का आकलन किया जाएगा। इनकी सूचनाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए तंत्र की स्थापना की जाएगा।

अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की परिस्थिति


जी-20 सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए पश्चिमी देश स्वच्छ पर्यावरण के नाम पर शुल्कों की दीवार खड़ी कर रहे हैं। इसके तहत आयात पर भी टैक्स लगाने का जोड़-घटाव किया जाएगा। सन् 2019 तक जलवायु परिवर्तन पर कोई ग्लोबल समझौता होता नहीं दिखता। ऐसे में अमेरिका वैसे देशों के आयात पर इकतरफा सीमा शुल्क लगाने की तैयारी कर रहा है, जिन्होंने अभी तक उत्सर्जन कम करने के लिए कदम नहीं उठाए हैं।

यद्यपि डब्ल्यू.टी.ओ. के तहत पूंजी का प्रवाह पूरी दुनिया में खुला हो गया है, लेकिन श्रम के मुक्त-प्रवाह पर विकसित देशों द्वारा तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। कई वर्षों से कई विकसित देश भारतीय श्रम-प्रधान उद्योग में बालश्रम के उपयोग की बात कहकर भारत से निर्यात को रोक रहे हैं। अब विकासशील देशों से आयात पर कार्बन कर लगाकर विकासशील देशों के निर्यात को हतोत्साहित करने का प्रयास किया जा रहा है। इन सबसे भारत सहित विकासशील देशों को काफी नुकसान होना संभावित है।

चूंकि भारत में सन् 2025 तक कार्बन उत्सर्जन में 20 प्रतिशत कटौती का वादा किया है, अतः अमेरिका और यूरोपीय संघ को कार्बन उत्सर्जन में कटौती की आड़ में भारत के निर्यात पर कार्बन कर लगाने से बचना चाहिए

संदर्भ


1. पर्यावरण भूगोल, सविंद्र सिंह, प्रयाग पुस्तक भवन, 20-ए, यूनिवर्सिटी रोड, इलाहाबाद-211002
2. भारत का भूगोल, रामचंद्र तिवारी, प्रयाग पुस्तक भवन, 20-ए, यूनिवर्सिटी रोड, इलाहाबाद-211002
3. प्रतियोगिता दर्पण, जनवरी, 2010
4. प्रतियोगिता, दर्पण दिसंबर, 2010

सहायक प्राध्यापक, शिक्षा संकाय,
कल्याण पी.जी. कॉलेज,
भिलाई नगर (छ.ग.)