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मध्य प्रदेश की ग्रीष्म ऋतु की प्राचीन राजधानी शिवपुरी ऐतिहासिक नगरी ग्वालियर से दक्षिण-पश्चिम में 117 कि.मी. तथा वीरांगना लक्ष्मीबाई की झांसी से पूर्व 51 कि.मी. पर स्थित है। शिवपुरी के राष्ट्रीय उद्यान के पास सड़कों पर खुले विचरण करते जंगली जानवरों को देख कर रोमांच हो उठता है। शिवपुरी के पास ही लुभावनी सुंदर झील है। भदैयाकुंड, सुरव सागर जलाशय शिवपुरी से मात्र तीन कि.मी. पर स्थित है। चट्टानी भूमि में इस दर्शनीय प्राकृतिक स्रोत को देखकर मन अह्लादित हो उठता है। बरसात में भीषण शोर करता इसका जल रोमांचित कर देता है।शिवपुरी के राष्ट्रीय उद्यान को अब ‘माधव राष्ट्रीय उद्यान’ के नाम से जाना जाता है, जो नेशनल हाइवे नं. 25 से करीब 55 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। सूखे स्थल को पार करने के पश्चात् चट्टानी भू भाग से होकर एक ऐसे स्थल पर पहुंच जाते हैं, जहां शीतल जल विद्यमान है। करेरा की इस झील को देहला झील कहा जाता है। यह झील बड़ी लुभावनी व चित्ताकर्षक है। बरसात के पानी पर ही इस झील की निर्भरता है। इस झील पर साइबेरियन सारस, बत्तख व अन्य आकाशी पक्षी पाये जाते हैं जैसे हुकना (जो शतुरमुर्ग जैसा लगता है, फर्क इतना है कि इसके दोनों पैरों में मिनी स्कर्ट नहीं होते) इसका सीना और सिर सफेद रंग का होता है। एक मीटर ऊंचाई वाले पक्षी की गर्दन काफी लम्बी होती है। नुकीली खूबसूरत चोंच वाला यह दुर्लभ पक्षी इस झील के अलावा कहीं देखने में नहीं आता। कभी-कभी झीलों के नगर शिवपुरी के आसपास जंगलों से निकल कर शेर सड़क पर विचरण करते देखे जा सकते हैं।
Hindi Title
भदैया तथा देहता झील
गुगल मैप (Google Map)
अन्य स्रोतों से
2 - भदैया कुंड के पानी के बारे में मान्यता
शिवपुरी। क्या कोई खास पानी पीने मात्र से दाम्पत्य जीवन सौहार्द्रपूर्ण हो सकता है। मध्यप्रदेश मे शिवपुरी के निकट स्थित भदैया कुंड के पानी के बारे में कुछ ऐसी ही मान्यता है। मान्यता यह है कि भदैया कुंड जल प्रपात में बने गोमुख से निकलने वाला पानी पीने से दाम्पत्य जीवन में प्रेम-सद्भाव बढ़ता है और आपसी विवाद छूमंतर हो जाते हैं।
ऐसी मान्यता है तो इसका असर भी होगा ही। यहां दाम्पत्य जीवन में प्रेम-सद्भाव बढ़ाने वालों का तांता लगा रहता है और अब तो भदैया कुंड एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल जैसा ही बन गया है। यहां आने वाले पर्यटकों में नव दम्पत्ति से लेकर दशकों से वैवाहिक जीवन बिता रहे वृद्ध-वृद्धाएं भी शामिल हैं।
जहां नवदम्पति सुखी दाम्पत्य जीवन की शुरुआत करने की तमन्ना से यहां आते हैं वहीं बुजुर्ग दम्पत्ति लम्बे समय के वैवाहिक जीवन में कभी-कभी होने वाली छोटी-मोटी खटपट को भी जड़ से उखाड़ फेंकने की इच्छा से भदैया का सहारा लेते हैं।
नगरीय क्षेत्र से लगा यह पर्यटक स्थल 1960 से 1985 तक दस्युओं का अड्डा रहा था। उन दिनों लोग अकेले यहां आने में डरते थे। लेकिन अब दुस्युओं पर अंकुश, आबादी के दबाव और नगरीय विस्तार के तहत होटल तथा अन्य सुविधाओं के बन जाने से लोगों का भय समाप्त हो गया है।बिना किसी भय के यहां आने वाले सैलानियों में नवदंपत्ति ज्यादा होते हैं और वे जलप्रपात से जो पानी एक कुंड में गिरता है उसमें तैरते और नहाते भी हैं।
संदर्भ
1 - प्रकाशन विभाग की पुस्तक - हमारी झीलें और नदियां - लेखक - राजेन्द्र मिलन -
2 - http://josh18.in.com/showstory.php