भेड़ स्तनी

Submitted by Hindi on Sat, 08/27/2011 - 12:37
भेड़ स्तनी (Mammalia) वर्ग, अंगुलेटा (Ungulata) गण, बोविडी (Bovidae) कुल तथा ओविस (Ovis) वंश का प्राणी है। इसकी दुम छोटी, पैर लंबे और खुर छोटे, भुथरे एवं ठोस होते हैं। इसका सींग आधार के पास मोआ और सिरे पर पतला हो जाता है। संपूर्ण सींग खोखला एवं सर्पिल होता है। प्राय: नर और मादा दोनों के सींग होते हैं, किंतु मादा के सींग नर की अपंक्षा छोटे होते हैं। कुछ जाति की मादा को सींग नहीं होता। नर भेड़ की दाढ़ी नहीं होती, किंतु इसको बालों का कंठा (ruff) हो सकता है। नर और मादा दोनों में आगे के दोनों बड़े खुरों के मध्य में ग्रंथि-गर्त (gland-pit) होते हैं।

भेड़ पहाड़ी पशु है ओर अच्छी आरोही है, किंतु बकरी की तरह कठिन चढ़ाई पर यह नहीं चढ़ सकती। ये अधिकतर शाकपात खाना पसंद करती हैं। इनकी ध्राण एवं दृष्टि तीव्र और चाल तेज होती है। भेड़ के ऊपरी जबड़े में कृंतक दाँत नहीं होते, किंतु नीचे के जबड़े में आठ कृंतक दाँत होते हैं। प्रत्येक जबड़े के पिछले भाग में छह पेषण दाँत होते हैं। भेड़ जमीन के बहुत पास से घास काटती है।

भेड़ की आयु लगभग 13 वर्ष की होती है। जब नर और मादा एक वर्ष के हो जाते हें, तब ये जनन के योग्य हो जाते हैं। मादा पाँच महीने तक गर्भधारण करने के पश्चात्‌ बच्चा जनती है। मादा वर्ष में केवल एक बार गर्भधारण करती है। एक भेड़ा 50 भेड़ों तक को गर्भधारण कराने के लिये रखा जाता है।

भेड़ें अनेक परजीवियों से पीड़ित रहती है। खुरसड़ा एवं मुखब्रण भेड़ों की साधारण बीमारियाँ हें। चूहों एवं किलनियों से इन्हें खुजली हो जाती है। शरीर के भार में कमी भेड़ों के लिये धातक बीमारी है। अन्य रोगों का गंभीर परिमाण नहीं होता।

भेड़ का मूलस्थान मध्य एशिया है। इसकी मुख्य तीन जातियाँ हैं : अर्गली (Argali), ऊरियल (Urial) तथा भाराल (Bharal) या नीली भेड़।

अर्गली - इसका प्राणिविज्ञानीय नाम ओविस ऐमॉन (Ovis ammon) है। यह मध्य और उत्तरी एशिया में बंखारा से कैमचटका तक मिलती है। इसकी लगभग एक दर्जन प्रजातियाँ हैं। जिनमें से दो भारत में पाई जाती है: होद्ग्सोनी (Hodgsoni) तथा पोली (Poli)। ये दोनों प्रजातियाँ 15,000 फुट की ऊँचाई पर रहती हैं। होदग्सानी के नर की सींग बहुत बड़ी तथा वृत्ताकार होती है। पोली प्रजाति के नर की सींग की लंबाई 75 इंच तक होती है। इसकी चाल बहुत तेज होती है। अर्गली का शिकार भी किया जाता है। मध्य शीतकाल इसका मदकाल (rutting season) होता है और मध्य ग्रीष्म में बच्चे होते हैं। तिब्बत भेड़िए इसके मुख्य शत्रु हैं। इसके शरीर के ऊपरी भाग का रंग भूरा तथा पैर, थूथन, कंठा और नितंब सफेद होते हैं। ग्रंथिगर्त आँख के नीचे होता है।ऊरियल - इसका प्राणिविज्ञानीय नाम आविस विजनी (Ovis vignei) तथा पंजाबी नाम कोच (Koch) है। मध्य एशिया में तुर्किस्तान और उत्तर पश्चिम भारत में इस जाति की भेड़ें मिलती हैं। इसकी लंबाई लगभग एक गज होती है तथा पूंछ की लंबाई चार इंच। पूर्ण वयस्क भेड़े को कंठा होता है। ग्रीष्मऋतु में ऊरियल का रंग पीलापन लिए लाल भूरा होता है, किंतु शीत ऋतु में रंग अवरक्त पीत होता है। वयस्क भेड़े के पैर, पेट और नितंब का रंग सफेद तथा कंठे का रंग काला होता है। भेड़ ओर बच्चे पूर्णत: भूरे होते हैं। आँख के नीचे ग्रंथिगर्त होता है। इसकी सींग वलियुक्त, लगभग वृत्ताकार होती हैं। और इनकी लंबाई 37.75 इंच तक होती हैं। इस जाति की भेड़ों को नमक प्रिय है, अत: ये प्राय: नमक की खानों के पास दिखाई पड़ते हैं। पंजाब में ये सिंतबर मास में संगम करते हैं। इस जाति के भेड़े पालतू भेड़ों से भी संगम करते देखे गए हैं।भराल या नीली भेड़ - इसका प्राणिविज्ञानीय नाम ओविस भाराल (Ovis bharal) तथा हिंदी नाम शाह है। यह 10,000 से 16,000 फुट तक की ऊँचाई पर पाई जाती है। इसके नर की पूँछ सात इंच तक लंबी होती है। भेड़ा एक गज लंबा होता है, पर मादा छोटी होती है। इसे अयाल या कंठा नहीं होता। जाड़े में भराल का रंग धूसर नीला और गरमियों में भूरा रहता है। सींग पहले बाहर की ओर मेहराब बनाती है और बाद में पीछे की ओर मुड़ जाती है। सींग की लंबाई 30 इंच तक पाई गई है, किंतु मादा की सींग नर से छोटी होती है। आँख के नीचे ग्रंथिगर्त नहीं पाया जाता। झुंड में 1.0 में रहती हैं। इनकी संगम ऋतु ग्रीष्म है। यह ऊरियल की तरह पालतू भेड़ों से जोड़ा नहीं बाँधती।

पालतू भेड़ों का उद्भव ऊरियल ओर मूफलान (mouflon) जाति के भेड़ों से हुआ है। इसके वशंज अपने पूर्वजों के सदृश हैं। जंगली भेड़ें ऊन (fleece), दूध और खाल के लिये पाली गई और बोझ ढोने के लिये भी इनका उपयोग किया गया। प्रजनन के द्वारा इनके कड़े बाल कोमल बालों में परिवर्तित किए गए। अंतिम दो सौ वर्षों में प्रजनकों ने मांस के लिये भेड़ों का विकास किया गया। भेड़ों को ऊन की विशेषता के आधार पर चार वर्गों में विभक्त किया गया है : लंबे ऊन (long wool) वाली, मध्यम ऊन (medium wool) वाली, कोमल ऊन (fine wool) वाली तथा मोटे ऊन (carpet wool) वाली। लंबें ऊन वाली भेड़ें - इस प्रकार की भेड़ें मुख्यत: मांस के लिये पाली जाती हैं, किंतु ऊन भी इनसे मिलता है। इस प्रकार के ऊन वाली भेड़ों की मुख्य नस्लें है: हैंपशिर डाउन (Hampshire down), श्रॉपशिर (Shropshire), साउथडाउन (Southdonw) तथा सफक (Suffolk)।

कोमल ऊनवाली भेड़ें - स्पेन की मेरिनो (Merino) भेड़ कोमल ऊनवाली भेड़ है। कोमल ऊनवाली भेड़ों से हुआ है। सयुक्त राज्य, अमरीका, की मेरिनों भेड़ संसार में सर्वोत्कृष्ट समझी जाती है। इस भेड़ का मुँह और पैर सफेद होता है। यह पादांगुलि तक घने कोमल ऊन से ढकी रहती है। इस नस्ल के भेड़े को सींग होती है। मेरिनो भेड़ ओर गर्दन पर त्वचा के वलय रहते हैं। इस नस्ल की कुछ प्रजातियों में शरीर पर भी वलय रहते हैं।

संसार में सबसे अधिक भेड़ें ऑस्ट्रेलिया में पाली जाती हैं। आस्ट्रेलिया में भेड़ों की संख्या वहाँ की जनसंख्या की 30 गुनी है। भेड़ पालनेवाले राष्ट्रों में भारत का स्थान चौथा है।

मांस और ऊन के अतिरिक्त भेड़ से लोमयुक्त चमड़ा मुख्य उपजात के रूप में प्राप्त होता है। भेड़ का लोमविहीन शोधित चमड़ा सोफासाजी, जिल्दसाजी, दस्ताना, पोशाक तथा जूते का ऊपरी भाग बनाने के काम आता है। धड़ के अतिरिक्त भेड़ का यकृत, हृदय, वृक्क तथा कुछ अन्य भाग मनुष्य खाद्य के रूप में काम में आता है। भेड़ की कुछ ग्रंथियाँ ओषधि बनाने में प्रयुक्त होती है। शल्यकर्म तथा वाद्य यंत्र में प्रयुक्त होनेवाली ताँत (catgut) भेड़ की क्षुद्र आंत्र से तैयार की जाती है। भेड़ के ऊन से प्राप्त होनेवाली ऊर्णावसा (lanolin) मरहम तथा श्रृंगार सामग्री बनाने में प्रयुक्त होती है। भेड़ की वसा (tallow) खाद्य और अखाद्य दोनों रूप में प्रयुक्त होती है।

सं0 ग्रं0 - फिन, फ्रैंक : स्टर्नडेल मैमेलिया ऑव इंडिया पैकर स्पिंक ऐंड कं0, बंबई।(अजितनारायण मेहरोत्रा)

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संदर्भ
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