ऋषिकेश के कर्णप्रयाग फिर पिण्डर नदी के साथ-साथ एक सर्पीली सड़क थराली तक जाती है। यहां से बायीं ओर एक चौड़ा मार्ग कुराड़ गांव जाता है। इस गांव से 6 कि.मी. की ऊंचाई पर चढ़ने के बाद बांस-बुरास, मोरू, खरसू व कैल के वनों में कुछ दूर पैदल चलने के बाद एक विशाल मैदान ‘लोजगिला तोक’ मिलता है। इस मैदान से पुनः घने जंगलों को पार करके काफी नीचे ढलान से उतरकर भैकल ताल तक पहुंचते हैं। बियावन जंगल में घने वृक्षों से प्रतिबिम्बित यह शांत स्तब्ध झील लगभग 2 कि.मी. क्षेत्र में फैली हुई है। यहां से तीन किलोमीटर पर एक मनमोहक झील ब्रह्म ताल है जो एक कि.मी. लम्बी है।
भैकल ताल केवल नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए ही नहीं बल्कि स्थानीय लोगों की आस्था की पावन स्थली भी है। प्रतिवर्ष भगवान श्री कृष्ण की जन्माष्टमी पर यहां धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है। गोरखाओं के गढ़वाल आक्रमण के दौरान युद्धाभ्यास के चिन्ह स्वरूप आज भी पेड़ों पर गड़े लोहे के तीर देखकर पर्यटक रोमांचित हो जाते हैं।
भैकल ताल केवल नैसर्गिक सौन्दर्य के लिए ही नहीं बल्कि स्थानीय लोगों की आस्था की पावन स्थली भी है। प्रतिवर्ष भगवान श्री कृष्ण की जन्माष्टमी पर यहां धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है। गोरखाओं के गढ़वाल आक्रमण के दौरान युद्धाभ्यास के चिन्ह स्वरूप आज भी पेड़ों पर गड़े लोहे के तीर देखकर पर्यटक रोमांचित हो जाते हैं।
Hindi Title
भैकलताल व ब्रह्मताल
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