ऐसी हालत में कोई अबोध व्यक्ति या दल, भय और भ्रमपूर्ण यह सवाल लोगों से पूछता फिरे कि कोसी बांध भीमनगर (नेपाल) में बनाकर भारत सरकार ने क्या अदूरदर्शिता का परिचय नहीं दिया है? तो, उसकी शंका के निवारण के लिए पंचशील तटस्थता, भाईचारे, सांस्कृतिक एकता आदि शब्दों से खचित कोई वक्त्व पर्याप्त नहीं होगा। कोसी को वे ‘डायन’ मानते ही रहेंगे। डायन जो अपने ही बच्चों को खा जाती है।
24 अप्रैल 1965 को भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री नेपाल सरकार के अतिथि के रूप में, बिहार-नेपाल (भारत-नेपाल) सीमा पर (नेपाल की धरती पर) निर्मित विशाल ‘कोसी बांध’ की पश्चिमी नहर के खनन-समारोह के अवसर पर नेपाल के महाराजाधिराज श्री महेंद्र वीर विक्रमशाह देवज्यू के साथ, भीमनगर-वीरपुर पधार रहे हैं। चीनी विदेशमंत्री के प्रस्थान के बाद, काठमांडू की घाटियाँ, नेपाल की मित्र देश की मैत्री और भाईचारे की भावना को जगाने वाले नारों से गूंज उठेंगी। शाही तथा दूतावास के भोजों में पद-पद पर औपचारिकता का निर्वाह दोनों देशों की ओर से किया जायेगा। भारत-नेपाल की अटूट दोस्ती पर प्रकाश डालते हुए इसे और भी सुदृढ़ बनाने की बातें की जायेंगी। गरज यह है कि चीनी विदेशमंत्री चेन यी के स्वागत-सत्कार में काठमांडूवासियों और शाही अधिकारियों ने जितना उत्साह प्रदर्शित किया है, भारत के प्रधानमंत्री के आगमन पर उससे कहीं अधिक चहल-पहल और खुशी दिखायी पड़ेगी। किंतु, लालबहादुर शास्त्री के कार्यक्रम में ‘पशुपतिनाथ-दर्शन’ की विशेष व्यवस्था अवश्य होगी और भीमनगर-बीरपुर आने के पहले संभवतः बाबा पशुपतिनाथ का फूल, चंदन, प्रसाद पा चुके होंगे: भारत-नेपाल की मैत्री और भाईचारे की रेशम-डोरी युगयुगांतर से पशुपतिनाथ, गुह्यकाली, महाकाली, वराहक्षेत्र, दंतकाली आदि देव-देवियों के हाथों रही है और आज भी है-तमाम राजनैतिक उलट-फेर के बावजूद। इसलिए, जब वेदमंत्र के पवित्र उच्चारण और शंखध्वनि के बीच नेपाल-नरेश कोसी बांध की पश्चिमी नहर के खनन का श्रीगणेश करेंगे तब भारत तथा नेपाल के संबंध सुदृढ़ होने के साथ पवित्र भी हो जायेंगे।अनुष्ठान का संवाद
किंतु, इस शुभ अवसर के सात दिन पूर्व तक – सीमा के दोनों ओर दस मील की दूरियों तक-बिहार तथा नेपाल तराई के गांवों में इस अनुष्ठान की कोई खबर नहीं। हां, वीरपुर सरकिट हाउस के बावर्ची-बैरे को लगता है कि जरूर कोई बड़े नेता आ रहे हैं। क्योंकि, सरकिट हाउस के बड़े भोज-घर की दीवारों की लिपाई-पुताई हो रही है और कमरा ठंडा करनेवाले इंजीनियर साहब उनकी नाप-जोख कर गये हैं। सभा के मैदान में, जहां नेहरुजी का भाषण हुआ था, नये खूँटे गाड़े जा रहे हैं।
यों वीरपुर कालोनी में बसनेवाले बड़े-छोटे और मंझले कर्मचारियों के चेहरों पर छायी हुई सामूहिक झुँझलाहट को देखकर भी इस समाचार पर विश्वास किया जा सकता है कि जरूर कोई बड़े नेता आने वाले हैं। हफ्तों का आराम हराम हुआ !
अथवा, सहरसा-पूर्णियां की राजनीति में समान रूप से हाथ रखने और मारने वाले किसी कांग्रेसजन से प्रधानमंत्री के आगमन की बात दर्याफ्त करने पर यह जवाब भी मिल सकता है- ‘साहब, प्रधानमंत्री आ रहे हैं या नहीं, यह जानें ‘फलाने बाबू’-कोसी-प्रोजेक्ट की कृपा से जो ‘तर’ गये हैं। अपने प्रबल प्रभाव से दुधनाहा-वीरपुर रोड को छःमील बढ़वाकर, अपने गांव तक पहुंचाकर, तब सीधे उत्तर की ओर मुड़वानेवाले देश को ‘मूंड’ कर छोड़ेगे।’ इसमें सच्चाई भले ही न हो, मगर इस तरह के विक्षोभ की गूंज-अनुगूंज जगह-जगह सुनायी देती है।
डायन कोसी
छिन्नमस्ता डायन कोसी को साध लिया गया है, हालांकि उसकी छटपटाहट बतलाती है कि साधकों के सामने वह कभी भी नयी समस्या उपस्थित कर दे सकती है। हर साल लाखों एकड़ धरती को डुबाकर तबाह करने-वाली, उर्वर भूमि को बालू से पाट कर बंजर बना देनेवाली, हर साल राह काटने-वाली, लाखों प्राणियों को लीलनेवाली वेगवती कोसी की विनाश लीला का कहानियाँ अब पौराणिक कहानियाँ हो जायेंगी। और, कोसी को ‘नाथने’- साधने के बाद ऐसी ही नयी कहानियाँ लिखी-कही जा रही हैं।
नई कहानियाँ
पिछले साल मुख्य पूर्वी नहर में अनुष्ठान के बाद पहली बार ऐन बरसात में पानी दिया गया। तब पता चला कि मुख्य नहर के बहुत-से पुल-पुलियों, फाटक आदि के निर्माण में ठेकेदारों ने अपनी चतुराई का प्रचुर परिचय दिया है। मुख्य नहर के अलावा उप-नहर, शाखा-नहर पर निर्मित पुलों की दुर्दशा देखकर अबोध जनता में यह भय फैलना स्वाभाविक है कि कहीं भीमनगर का कारबार भी ऐसा ही कच्चा तो नहीं? वह स्वप्न-भंग कैसा होगा!
इस क्षेत्र का बच्चा-बच्चा जानता है कि नहर वाले ठेकेदारों से सस्ती दर पर ईंट-सीमेंट, लोहे के छड़ खुले आम खरीदे जा सकते हैं। न खरीदनेवाला इस कर्म को अवैध मानता है और न ही बेचनेवाला। और, ये ठेकेदार कौन होते हैं? कांग्रेस के कर्मठ कायकर्ताओं या उनके भाई-भतीजों को छोड़कर और कोई नहीं। अवैध व्यापार के बाद भी इनमें से अधिकांश ठेकेदारों के नाम सर्टिफिकट जारी होते हैं, रुपये हजम करने के आरोप में ये पकड़े जाते हैं, पर अंततः इनके ऊपरवाले नेता किसी प्रकार दोषमुक्त करवाकर इन्हें फिर से काम दिलवा देते हैं। नीचे से ऊपर तक-मंडल कमिटी से प्रांतीय कमिटी तक-गुटपरस्ती में लिप्त, जनता के सेवकों को इतनी फुर्सत कहां कि ऐसी घड़ी में, ऐसे महत्त्व के अवसरों का सदुपयोग करने की बात पर वे ध्यान दें। तब, प्रधानमंत्री और महाराजा के हवाई जहाज से उतरते समय या खनन के श्रीगणेश के क्षण अथवा जहाज पर पुनः सवार होते समय उनके साथ तस्वीरें उतरवाने का कोई-न-कोई अवसर उन्हें अवश्य मिल जायेगा। अगले चुनाव के पहले टिकट मांगने के समय अपनी कर्मठता और जनप्रियता को प्रमाणित करने के लिए इतना ही काफी है।
ऐसी हालत में कोई अबोध व्यक्ति या दल, भय और भ्रमपूर्ण यह सवाल लोगों से पूछता फिरे कि कोसी बांध भीमनगर (नेपाल) में बनाकर भारत सरकार ने क्या अदूरदर्शिता का परिचय नहीं दिया है? तो, उसकी शंका के निवारण के लिए पंचशील तटस्थता, भाईचारे, सांस्कृतिक एकता आदि शब्दों से खचित कोई वक्त्व पर्याप्त नहीं होगा। कोसी को वे ‘डायन’ मानते ही रहेंगे। डायन जो अपने ही बच्चों को खा जाती है। भारत-नेपाल मैत्री को बनाने और बिगाड़ने की जिम्मेदारी, बिहार-नेपाल की 300 मीलव्यापी सीमा पर बसनेवाली भारतीय-नेपाली जनता के सिर भी है, यह बात कौन-, किसे, कैसे समझायें? (1965)